---

रविवार, 20 अक्टूबर 2019

1556....मैं ढूँढ लूँगा खुद को


जय मां हाटेशवरी....
पांच पर्वों का महा-पर्व दिवाली आने वाला है.....
इस लिये आज की इस हलचल का प्रारंब इस खूबसूरत  *प्रेरक प्रसंग---* से.....
*एक माँ अपने पूजा-पाठ से फुर्सत पाकर अपने विदेश में रहने वाले बेटे से विडियो चैट करते वक्त पूछ बैठी-*
"बेटा! कुछ पूजा-पाठ भी करते हो या नहीं?"
बेटा बोला-
*"माँ, मैं एक जीव वैज्ञानिक हूँ। मैं अमेरिका में मानव के विकास पर काम कर रहा हूँ। विकास का सिद्धांत, चार्ल्स डार्विन.. क्या आपने उसके बारे में सुना भी है?"*
उसकी माँ मुस्कुराई और बोली.....
"मैं डार्विन के बारे में जानती हूँ बेटा.. 
उसने जो भी खोज की, वह वास्तव में सनातन-धर्म के लिए बहुत पुरानी खबर है।"
“हो सकता है माँ!” बेटे ने भी व्यंग्यपूर्वक कहा।
*“यदि तुम कुछ समझदार हो, तो इसे सुनो..” उसकी माँ ने प्रतिकार किया। 
“क्या तुमने दशावतार के बारे में सुना है?*
विष्णु के दस अवतार?”
बेटे ने सहमति में कहा...
"हाँ! पर दशावतार का मेरी रिसर्च से क्या लेना-देना?"
माँ फिर बोली-
"लेना-देना है.. मैं तुम्हें बताती हूँ कि तुम और मि. डार्विन क्या नहीं जानते हो ?"

“पहला अवतार था 'मत्स्य', यानि मछली। 
ऐसा इसलिए कि जीवन पानी में आरम्भ हुआ। यह बात सही है या नहीं?”
बेटा अब ध्यानपूर्वक सुनने लगा..

“उसके बाद आया दूसरा अवतार 'कूर्म', अर्थात् कछुआ। 
क्योंकि जीवन पानी से जमीन की ओर चला गया.. 'उभयचर (Amphibian)', 
तो कछुए ने समुद्र से जमीन की ओर के विकास को दर्शाया।”

“तीसरा था 'वराह' अवतार, । 
जिसका मतलब वे जंगली जानवर, 
जिनमें अधिक बुद्धि नहीं होती है। तुम उन्हें डायनासोर कहते हो।”
बेटे ने आंखें फैलाते हुए सहमति जताई..

“चौथा अवतार था 'नृसिंह', आधा मानव, आधा पशु। 
जिसने दर्शाया जंगली जानवरों से बुद्धिमान जीवों का विकास।”


“पांचवें 'वामन' हुए, बौना जो वास्तव में लंबा बढ़ सकता था। 
क्या तुम जानते हो ऐसा क्यों है? क्योंकि मनुष्य दो प्रकार के होते थे- होमो इरेक्टस(नरवानर) और
होमो सेपिअंस (मानव), और होमो सेपिअंस ने विकास की लड़ाई जीत ली।”
*बेटा दशावतार की प्रासंगिकता सुन के स्तब्ध रह गया..*
माँ ने बोलना जारी रखा-

“छठा अवतार था 'परशुराम', 
जिनके पास शस्त्र (कुल्हाड़ी) की ताकत थी।* वे दर्शाते हैं उस मानव को, 
जो गुफा और वन में रहा..

“सातवां अवतार थे 'मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम', 
सोच युक्त प्रथम सामाजिक व्यक्ति।* जिन्होंने समाज के नियम बनाए और 
समस्त रिश्तों का आधार।”

“आठवां अवतार थे 'भगवान श्री कृष्ण', राजनेता, राजनीतिज्ञ, प्रेमी। 
जिन्होंने समाज के नियमों का आनन्द लेते हुए यह सिखाया कि सामाजिक ढांचे में 
रहकर कैसे फला-फूला जा सकता है।”
बेटा सुनता रहा, चकित और विस्मित..
*माँ ने ज्ञान की गंगा प्रवाहित रखी -

“नवां अवतार थे 'महात्मा बुद्ध', 
वे व्यक्ति जिन्होंने नृसिंह से उठे मानव के सही स्वभाव को खोजा। 
उन्होंने मानव द्वारा ज्ञान की अंतिम खोज की पहचान की।”

“..और अंत में दसवां अवतार 'कल्कि' आएगा। 
वह मानव जिस पर तुम काम कर रहे हो.. वह मानव, जो आनुवंशिक रूप से श्रेष्ठतम होगा।”*
बेटा अपनी माँ को अवाक् होकर देखता रह गया..
*अंत में वह बोल पड़ा-*
“यह अद्भुत है माँ.. हिंदू दर्शन वास्तव में अर्थपूर्ण है!”
मित्रों..
वेद, पुराण, ग्रंथ, उपनिषद इत्यादि सब अर्थपूर्ण हैं। सिर्फ आपका देखने का नज़रिया होना चाहिए। 
फिर चाहे वह धार्मिक हो या वैज्ञानिक...!
अब पेश है....
आज के लिये मेरी पसंद....
*🚩जय श्री राम 🚩*
*🌹जय श्री कृष्ण **ॐ नमो भगवते वासुदेवाय!*
*🙏जय महादेव🙏


जैसे इक माला के फूल
    तोड़ न पाए इस माला को
कोई दुश्मन .............,
     करले चाहे कोशिश कितनी
चाहे जितना जोर लगाए
आओ हम सब  .. .


राम के बने मंदिर
घर घर होती है उनकी पूजा।
विभीषण को सबने भुला दिया
उसे किसी ने नहीं पूछा।
राम अमर हो गये इतिहास में
और विभीषण चले गए
विस्मृति के गर्त में।
विभीषण के जीवन का यथार्थ
भा्रतृ द्रोह का परिणाम बतलाता है
देश द्रोह की परिणिति समझाता है


एक अफ़सोस इतना है कि
कुछ वक़्त हाथ से निकल गया
जो शायद फिर नहीं आने वाला

लोगों  मानना है वो मेरी उम्र थी
जो निकल गयी
मगर कौन जाने खुद के मिलने पर
उसका भी मन बदले
फिर जवानी खिले रंग भरे
"आखिर जन्म और मौत
दो ही तो लकीरें है जीवन में
बाकी के पड़ाव तो मानने की चीज़े हैं"

जरा रुक के
पूरी
फिल्म
अभी तो
सामने से
आनी है
झटके का
नहीं आता है
खेल उसे
बेवकूफ ‘उलूक’
हलाल
सब को
सिखाने की
जिसने
मन में ठानी है ।

अब मुझे मौत से डर नहीं लगता,
रात के अँधेरों से डर नहीं लगता,
दर्द की नग्नता से डर नहीं लगता,
मेरे भीतर का मौन कचोटता नहीं है मुझे
मैं वो जीवित शिलालेख बन चुकी हूँ
जिस पर बादल बरसकर भी नहीं बरसते,
हवा का ओज कौमार्य भर देता है
निष्प्राण देह में,
काल भृमण करता है मुझ पर
मेरी उम्र बढ़ाने को...

 मूल्यांकन करता समय, कर्म न जाता व्यर्थ।
अमर उसी का नाम है, जिसकी कलम समर्थ।।
कई सदी के बाद ही, आँका जाता काम।
गुणवत्ता मरती नहीं, जीवित रखती नाम ।।


आज बस इतना ही.....
जब बभ्रुवाहन को अपने पिता अर्जुन के आने का समाचार मिला तो उनका स्वागत करने के लिए 
वह नगर के द्वार पर आया। अपने पुत्र को देखकर अर्जुन बहुत खुश हुए पर नियमों
से बंधे होने के कारण मजबूरीवश उन्हें कहना पड़ा कि यज्ञ के घोड़े को यहां रोका गया है, 
जिसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी मेरी है इसलिए तुम्हें मुझसे युद्ध करना पडेगा
बभ्रुवाहन ने ऐसी परिस्थिति की कल्पना भी नहीं की थी ! पर अर्जुन भी अपनी बातों पर अड़े हुए थे !  
इसी वाद-विवाद के बीच अर्जुन की एक और पत्नी नागकन्या उलूपी
भी वहां आ गई और बभ्रुवाहन को अर्जुन के साथ युद्ध करने के लिए उकसाना शुरू कर दिया ! 
अपने पिता के हठ व सौतेली माता उलूपी के कहने पर बभ्रुवाहन युद्ध के लिए
तैयार हो गया। पिता पुत्र में भयंकर युद्ध हुआ। अपने पुत्र का पराक्रम देखकर अर्जुन बहुत प्रसन्न हुए। 
दोनों बुरी तरह घायल और थक चुके थे। इसी बीच बभ्रुवाहन
का एक तीक्ष्ण बाण सीधा आ अर्जुन को लगा जिसकी चोट से अर्जुन गिर पड़े 
और उनकी मृत्यु हो गयी ! उधर बभ्रुवाहन भी बेहोश हो धरती पर गिर पड़ा। पति और पुत्र की
यह हालत  देख चित्रांगदा पर तो मानो पहाड़ ही टूट पड़ा ! कुछ देर बाद जब बभ्रुवाहन को होश आया 
तब वह भी अपने पिता की हालत देख शोकाकुल हो उठा और ऐसे जघन्य कृत
के लिए अपने को दोषी मान विलाप करने लगा।
चलते-चलते ये भी अवश्य  पढ़ें....

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जन्म भूमि का इतिहास लाखो वर्ष पुराना है । 
इस पोस्ट में विभिन्न पुस्तकों से मिले कुछ तथ्यों को संकलित करने का प्रयास कर रहा
हूँ, जिससे रामजन्मभूमि और इतिहास के बारे में वास्तविक जानकारी का संग्रहण,
विवेचना और ज्ञान हो सके। ये सारे तथ्य विभिन्न पुस्तकों में उपलब्ध हैं, मगर सरकारी
मशीनरी और तुस्टीकरण के पुजारी उन्हें सामान्य जनमानस  तक नहीं आने देते मैंने सिर्फ उन तथ्यों का संकलन करके आप के सामने प्रस्तुत किया है॥ इसमे प्रमुखता से
स्वर्गीय पंडित रंगोपाल पांडे "शारद" द्वारा लिखे गए तथ्यों को आप के सामने आने 
वाली सभी कड़ियों मे रखने का प्रयास करूंगा ॥


धन्यवाद।
















13 टिप्‍पणियां:

  1. आज आपकी भूमिका में स्वामी विवेकानंद की झलक दिख रही है। जिन्होंने विदेश में सनातन धर्म का शंखनाद कर , इस मिथक को खंडित किया भारत सभ्यता एवं संस्कृति में पिछड़े हुये लोगों का देश है।
    सच तो यह है कि कभी हम अपने वैज्ञानिकों ( ऋषि) के विचारों पर सार्थक चिंतन करते ही नहीं हैं।
    और डार्विन ने जो बताया उसपर वाह-वाह करते हैं।
    परंपराओं का खंडन तो आसानी से कर देते हैं, उसमें छिपे जीवन मूल्यों को नहीं समझ पाते हैं ।
    सभी को प्रणाम , रचनाएं भी इसी तरह सुंदर है।

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्तम प्रस्तुति..
    आभार आपको...
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. सस्नेहाशीष पुत्तर जी
    अद्धभुत भूमिका संग बेमिसाल प्रस्तुतीकरण
    साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. संग्रहणीय योग्य प्रस्तुति..
    बहुत बढ़िया।

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह ! लिंक्स पर तो अभी जा ही नहीं पाई ! आपकी प्रतिनिधि कहानी ने ही चमत्कृत कर दिया ! डार्विन की थ्योरी और हमारे दशावतार के क्रमिक विकास की गाथा को जान कर सच में अभिभूत हूँ ! इस संकलन को बुक मार्क कर लिया है अन्य लोगों के ज्ञानवर्धन के लिए ! हार्दिक धन्यवाद कुलदीप भाई !

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह!!शानदार भूमिका !! सभी लिंक बहुत ही उम्दा ! मेरी रचना को स्थान देने हेतु बहुत-बहुत आभार । सभी को दीपावली की अग्रिम शुभकामनाएं 🙏

    जवाब देंहटाएं
  7. ज्ञानवर्धक भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...।

    जवाब देंहटाएं
  8. बेहतरीन प्रस्तुति दशावतार की सुंदर व्याख्या भातीय संस्कृति की महत्ता अद्भुत ,अतुलनीय

    जवाब देंहटाएं
  9. अद्भुत संकलन बेहतरीन रचनाएँ और सराहनीय प्रस्तुति आदरणीय कुलदीप जी।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत शानदार प्रस्तुति, सहेजने योग्य अंक, सराहनीय संकलन । अपूर्व।

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।