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शुक्रवार, 30 अगस्त 2019

1505 ...अपने घर को अपनी कब्र मत बनाओ

स्नेहिल नमस्कार
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जीवन मानव का
हर पल एक युद्ध है
मन के अंतर्द्वन्द्व का
स्वयं के विरुद्ध स्वयं से
सत्य और असत्य के सीमा रेखा
पर झूलते असंख्य बातों को
घसीटकर अपने मन की अदालत में
खड़ा कर अपने मन मुताबिक
फैसला करते हम
धर्म-अधर्म को तोलते छानते
आवश्यकताओं की छलनी में बारीक
फिर सहजता से घोषणा करते
महाज्ञानी बनकर क्या सही क्या गलत
हम ही अर्जुन और हम ही कृष्ण भी
जीवन के युद्ध में गांधारी बनकर ही
जीवित रहा जा सकता है
वक्त शकुनि की चाल में जकड़कर भी
जीवन के लाक्षागृह में तपकर 
कुंदन बन बाहर निकलते है 
हर व्यूह को भेदते हुए
जीवन के अंतिम श्वास तक संघर्षरत
मानव जीवन एक युद्ध ही है।
-श्वेता
★★★★★★
आइये आज की रचनाएँ पढ़ते है-

लाल गली से गुज़री है कागज़ की कश्ती
बारिश के लावारिस पानी पर बैठी बेचारी कश्ती
शहर की आवारा गलियों से सहमी-सहमी पूछ रही हैं 


एक लम्हा दिल फिर से
उन गलियों में चाहता है घूमना
जहाँ धूल से अटे
बिन बात के खिलखिलाते हुए
कई बरस बिताये थे हमने ..
बहुत दिन हुए ...........
फिर से हंसी कि बरसात का
बेमौसम वो सावन नहीं देखा ...

वेदना को ये  भी है कसक
असहनीय    मौन      तेरा
निर्मोही   हो  गये  हो  तुम
वियोगी  मन बना  के मेरा।
प्रेम    का    प्रसंग    लिखूं
या   दावानल    विरह  का
विलाप   गर  समझ  सको
खोलूं राज  की  गिरह  का।

शून्य


शून्य में ब्रह्म छुपा
शून्य है परमात्मा
अनेकों रहस्य लिए
शून्य ही है आत्मा


रसीद नहीं आई? ऐसा कैसे हो सकता है? रसीद तो मैंने उसी रात को भिजवा दी थी। लिफाफे में। तुम्हारे पापा के नाम का लिफाफा था।’




लहरों का जादू ऐसा होता है कि जितना भी वक़्त इनके साथ बिताओ कम ही लगता है. घंटों समन्दर में पड़े-पड़े त्वचा फूलने लगती है फिर भी मन बाहर आने का करता ही नहीं. भूख, प्यास मानो सब स्थगित. जब रात काफी हो गयी और सिक्योरिटी अलर्ट के चलते बाहर आने को बोला जाने लगा तब कोई चारा नहीं था. लेकिन डिनर वहीँ समन्दर के किनारे ही किया ताकि नजर से ओझल न हो पल भर समन्दर. 

★★★★★★★
आज का अंक आप सभी को कैसा लगा?
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कल का अंक पढ़ना न भूले
कल आ रही हैं विभा दी एक
विशेष विशेषांक के साथ।

हवा में बारुद की गंध मत उड़ाओ
माचिस नफ़रतों की मत सुलगाओ
अरे दुष्टों! ज़रा अक्ल भी आजमाओ
अपने घर को अपनी कब्र मत बनाओ


11 टिप्‍पणियां:

  1. व्वाहहहह..
    बेहतरीन प्रस्तुति..
    तीज की शुभकामनाएँ..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा लिंक्स चयन
    सराहनीय प्रस्तुतीकरण
    साधुवाद छूटकी

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!श्वेता ,बेहतरीन प्रस्तुति!!

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी

    जवाब देंहटाएं
  5. श्वेता जी ! आज के अंक में शून्य से अनंत तक को दर्शाती रचनाओं की सुंदरता आपकी शुरूआती भूमिका से और भी अलंकृत हो जा रही है...

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह बेहतरीन रचनाओं का संगम।बेहतरीन प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  8. प्रेम के पर्याय इस मधुर मानव जीवन पर प्रचंड युद्ध की भीषण भूमिका से निकलता परम शांति का मृदुल नाद :
    शून्य में ब्रह्म छुपा
    शून्य है परमात्मा
    अनेकों रहस्य लिए
    शून्य ही है आत्मा....!!!
    सुंदर रचनाओं का संकलन। आभार।

    जवाब देंहटाएं

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