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गुरुवार, 29 अगस्त 2019

1504...हे देव ज़हर सृष्टि में क्यों ?

सादर अभिवादन। 


हे 
देव 
ज़हर 
सृष्टि में क्यों? 
दया करना 
कृपा के सागर 
अमन हो बाग़ में। 
-रवीन्द्र 

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-



पर मैं टूटी नहीं बिखरी नहीं 

ख़ुद को समेटा अपनी दरारों को 

भर तो न पाई पर उन्हें इस तरह 

से ढका की वो खूबसूरत दिखने लगी 

और मैं उनके साथ जीने लगी 




जो हुआ, अच्छा हुआ, कहकर भुला दो सब कुछ 
बीती बातें याद करके, नए दर्द को बुलाओगे। 

दोस्त बनाए रखना, भले कहने भर को ही 
दोस्तों से हाथ धो बैठोगे, जब आज़माओगे। 





आँखों में गुज़ारा है तुमने, 
रात का हर पहर ,
ठुड्डी टिकाये रायफ़ल पर,  
निहारा है खुला आसमान, 
चाँद-सितारों से किया, 
 बखान अपना फ़साना गुमनाम ।




दिन के उजाले में 
दुनिया मायावी लगती है 
लेकिन रात के अंधरे में 
मुरझाया गुलाब
एक तेरे न होने से साथ मेरे 




कल उन्हें यात्रा पर निकलना है. बड़ा सा सूटकेस जो वे ले जाने वाले हैं, काफी भारी हो गया है. कभी-कभी खुद भी उठाना पड़ सकता है, न भी पड़े तो जो भी उठाएगा उसकी कमर पर असर पड़ सकता है. आज विश्व ऑटिज्म डे है, शायद मृणाल ज्योति में कुछ आयोजन हुआ हो इस उपलक्ष में. बाहर बच्चों के झूला झूलने की आवाजें आ रही हैं, कल से उन्हें पूरा बगीचा मिल जायेगा.


आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार। 

14 टिप्‍पणियां:


  1. सब देते हैं दग़ा, सब निकलते हैं मतलबी
    किस-किस को याद रखोगे, किसे भुलाओगे
    बिल्कुल ठीक कहा भाई जी।
    पर काश ! कोई ऐसी दवा हो जिससे बीते हुये वो लम्हे याद न हो..
    बहुत सुंदर प्रस्तुत, सभी को प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  2. शानदार अंक..
    स्तरीय रचनाएँ..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. पठनीय रचनाओं के सूत्रों की खबर देती हलचल..आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह! बहुत सुंदर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन प्रस्तुति रविन्द्र जी !

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
    मुझे स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार आप
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. शानदार प्रस्तुति उम्दा लिंक्स....
    सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  9. आदरणीय रवीन्द्र जी |

    अनुत्तरित प्रश्न -- हे देव जहर सृष्टि में क्यों ?

    ये कलुषित दोष दृष्टि में क्यों | सचमुच उसकी दया का ही अवलंबन है | सभी रचनाएँ पढ़ीं | अच्छा लगा | दिलबाग जी की गजल , रविन्द्र जी और रेवा की जी भावपूर्ण कवितायेँ और अनिता जी की कथा रोचक लगी जो आधुनिक जीवन में आधुनिकता की प्रचंडता में खोये आत्म मुग्ध जीवन का मार्मिक रेखाचित्र है | पर प्रिय अनिता सैनी जी की रचना शानदार रही जो अविस्मरनीय रचना है | सैनिक पति के लिए पत्नी और प्रेयसी का एक भावपूर्ण सृजन है | ये रचना एक सैनिक के दाम्पत्य जीवन का हृदयस्पर्शी चित्र प्रस्तुत करती है , जो पूरी प्रतिबद्धता से देश हित में . सीमा पर डटाहै तो पत्नी परिवार के भविष्य को संवारती घर के मोर्चे पर डटी है | पर मन के भाव कब काबू आये हैं ! वेदना के गीत साहित्य की अनमोल थाती हैं | ऐसी ही ये रचना है | सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें | इस सार्थक अंक के लिए आपको बधाई | सादर

    जवाब देंहटाएं

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