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शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

1456....कहब त लाग जाई धक् से

स्नेहिल नमस्कार
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वैचारिकी मंथन के क्षण में मन से फूटे कुछ सवाल..। बुद्धिजीवी वर्ग तक सीमित कविताओं का 
आम जीवन में क्या योगदान है?
सोच रही हूँ कविता क्या है? प्रतिदिन उकेरे 
जाने वाले मनोभावों की सार्थकता कितनी है? 
क्या लिखना चाहिए?
प्रकृति,प्रेम,समाज,राजनीति आखिर कौन सा 
विषय लिखना कवि या कवियित्री 
की परिभाषा तय करता है?
वैसे लेखक जिसके पाठक वर्ग सीमित है 
एक निश्चित परिधि में के बीच घूमती 
कविताओं को किस श्रेणी में रखा जाय?
उपर्युक्त सारे सवालों का मेरा मन एक ही 
जवाब दे रहा है।
कविता चाहे किसी भी संदर्भ में हो,
कविता वही सार्थक है जो अपने शब्दों और 
भावों को पाठक के मन से जोड़ती है।
जब कविता में रचे सारे मनोभाव साधारण पाठक स्वयं के भीतर महसूस करे तो रचनात्मकता सफल है।आप क्या सोचते हैं आपके विचार सादर आमंत्रित हैं।

अब चलिये आज की रचनाओं के संसार में-
विश्वमोहन जी
पुरुष के प्राणों के पण में,
प्रकृति लहराती है।
शिव के सम्पुट खोलकर शक्ति,
स्वयं बाहर आ जाती है।

तप्त-तरल और शीतल  ऋतु-चक्र,
आवर्ती यह रीत सनातन।
शक्ति में शिव, शिव में शक्ति,
चेतन में जड़, जड़ में चेतन।
★★★★★★
अमित निश्छल जी
भ्रमर वीर मतवाला

चिहुँक - चिहुँक कर नेत्र खोलता,
कुसुम पंख के नीचे
बंधन पर विश्वास नहीं है,
बरबस आँखें मीचे;
मगर बँधा है मोहपाश में, मोहित करनेवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।


★★★★★★
डॉ.जफर जी
मैं आज भी ऐसे तेरा वचन निभाता हूँ

जमाने भर की जिलालत से तो लड़ भी लेता हूँ,
घर आकर तुम्हारे मसलों से हार जाता हूँ,

दुसरो की गलतियों में बहुत चीख़ता चिल्लाता हूँ,
अपनी गुस्ताखियों बड़े सऊर से पर्दे लगाता हूँ,

शौक से तुम जॉगिंग पर टहलने जाते हो,
एक ध्याड़ी मज़दूरी पर दिनभर पसीना बहाता हूँ,


★★★★★★


कुसुम कोठरी जी

क्या जीत क्या हारा

हार गया सम्मान आंखों से
क्या हारा क्या जीता का
हिसाब बहुत ही टेढ़ा है
जीत हार का मान दंड
सदा अलग सा होता है
सभी जीत का जश्न मनाते
हार गये तो रोता है


★★★★★★


अनिता सैनी जी
कल्पित कविता कल्पनालोक ने


करुण  चित्त  का  कल्लोल ,

कल्पना  ने  कल्पा  संयोग ,

शब्द  साँसों  में  सिहर  उठे ,



 जब अंतरमन  से  उलझा वियोग  |

★★★★★★
विकास नैनवाल"अंजान"जी
बस तुम्हारे लिये


मैं हूँ एक स्वार्थी प्रेमी,
और वो शब्द रहेंगे केवल हमारे,
मैं कहूँगा उन एहसासों सिर्फ तुम्हारे कान में,
ताकि मेरे साँसों की तपिश से तुम जान सको
★★★★★

और चलते-चलते
प्रीति अज्ञात जी
कहब त लाग जाई धक् से

कहब त लाग जाइ धक् से
कहब त लाग जाइ धक् से
बड़े-बड़े लोगन के महला-दुमहला
और भइया झूमर अलग से
हमरे गरीबन के झुग्गी-झोपड़िया
आंधी आए गिर जाए धड़ से
बड़े-बड़े लोगन के हलुआ पराँठा
और मिनरल वाटर अलग से
हमरे गरीबन के चटनी और रोटी
पानी पीयें बालू वाला नल से
कहब त लाग जाइ धक् से

★★★★★★

आज का यह अंक आपको कैसा लगा?
आपकी बहुमूल्य
 प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहती है।

हमक़दम के विषय के लिए

यहाँ देखिये

कल का अंक पढ़ना न भूले कल आ रहींं हैं 
आदरणीया विभा दी हमेशा की तरह 
अपनी विशेष प्रस्तुति के साथ।

#श्वेता सिन्हा

15 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात...
    बेमिसाल संकलन..
    सोच रही हूँ कविता क्या है? प्रतिदिन उकेरे
    जाने वाले मनोभावों की सार्थकता कितनी है?
    क्या लिखना चाहिए?
    सार्थक अग्रालेख..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात,
    कितने सवाल उठाए हैं अपने आरम्भ में,वो वास्तव में एक कवि के मन की समझ को व्यक्त करते हैं।लिंक्स भी शानदार हैं।
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रभावशाली चिन्तन के साथ बेहद खूबसूरत संकलन ।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर संकलन। कविता क्या है ये मुझे नहीं पता। शायद अपने मन के भावों को लयबद्ध करना ही कविता है। भाव फिर चाहे जिस भी विषय के हों अगर वो मन से उपजे हैं तो शायद एक सार्थक कविता बनाते हैं।
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  5. उत्तर
    1. छुटकी के छह-छह
      कविता गज़ब के,
      आर्टिकल15 अलग से।
      कहब त लग जाई धक से!!! 😊😊😊😊

      हटाएं
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    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन प्रस्तुति 👌,
    बहुत ही सुन्दर रचनाएँ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें, मुझे स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार प्रिय श्वेता दी जी |
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह!!श्वेता ,बेहतरीन प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  9. क्या बात है..श्वेता जी..सच में प्रस्तुति लग गई धक् से।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत शानदार प्रस्तुति सभी रचनाएं पठनीय प्रश्न उठाती भुमिका कविता आखिर है क्या?
    अभी प्रश्न को प्रश्न ही रखती हूं खाते में जवाब फिर जरुर दूंगी।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।

    जवाब देंहटाएं
  11. कविता वही सार्थक है जो अपने शब्दों और
    भावों को पाठक के मन से जोड़ती है।
    बहुत सटीक...
    लाजवाब प्रस्तुति करण उम्दा लिंक संकलन...

    जवाब देंहटाएं
  12. सच कहा, जब एक की अभिव्यक्ति दूसरे के ह्रदय को स्पर्श करे..वही सच्ची कविता और सार्थक लेखन है. बहुत अच्छी प्रस्तुति. मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  13. हर उस व्यक्ति के मन का प्रश्न है ये जो कुछ ना कुछ लिखता है। पहले इतने सारे प्लेटफॉर्म नहीं थे अभिव्यक्ति के तो लिखना केवल डायरियों में ही सीमित हो कर रह जाता था परंतु अब लोग चाहते हैं कि उनका लिखा अन्य लोग पढ़ें और बताएँ भी कि कैसा लिखा है। मैं इतना ही कहूँगी कि अगर किसी का मन करे लिखने का तो जरूर लिखना चाहिए पर अपने लेखन की जाँच करने के लिए दूसरों का लिखा हुआ पढ़ना ही सर्वोत्तम उपाय है।
    सभी सुंदर रचनाएँ आज के अंक में। भूमिका बहुत सार्थक है। आभार प्रिय श्वेता।

    जवाब देंहटाएं

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