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रविवार, 16 जून 2019

1430 एक ही ब्लॉग से...मेरे मन का एक कोना

सादर अभिवादन
आज भी भाई कुलदीप जी नहीं हैं
आज हम प्रस्तुति मे एक नया प्रयोग कर रहे हैं
आज की प्रस्तुति है एक ही ब्लॉग से
वो ब्लॉग है

मेरे मन का एक कोना
ब्लॉगर बहन हैं
आत्ममुग्धा

एक साधारण होममेकर जिसका दिमाग खुराफाती है। सक्रिय मस्तिष्क जो कही भी रचनात्मकता देखता है तो तुरंत अवचेतन मन में सहेज लेता है। अंतरंगी सी हूँ, सतरंगी सपने सजा कर चलती हूँ। छोटी छोटी बातों में खुशियाँ ढ़ूंढ़ती हूँ।

पिता ...
सिर्फ पिता होते हैं
एक समय में
एक ही किरदार होते हैं
वे पूरी तरह से
सिर्फ पिता होते हैं
वे पिघल के
बरसते नहीं हैं
बहुत कुछ सहते हैं
लेकिन 
कभी कुछ भी 
कहते नहीं हैं
पिता
सिर्फ पिता होते हैं


क्या आसान है प्रेम को समझ पाना
शायद नहीं....
पर मुश्किल भी नहीं, लेकिन
इसकी परिभाषा इतनी गहन बना दी गई है कि
साधारण इंसान समझ ही न पाये
असल में प्रेम परिभाषाओं के परे है
बस महसूस कर पाने की अवस्था है

देह के समीकरण से परे देखना कभी उसे
समूचा ब्रह्मांड समेट के रखती  है 
खिलखिलाते लबों के पीछे मुस्कुराती सी
जिंद़गानी सहेजे रखती है 
देखना कभी नजरे मिलाकर, न जाने कितने 
सैलाब समेटकर रखती है 

जीवन की राह में चलते हुए
अचानक दिख जाता है एक आईना
एक वजूद के रुप में
असमंजस होता है 
हुबहू कोई हम जैसा भी होता है
अजनबी होता है,लेकिन 
दिल की गहराइयों में 
स्थापित हो जाता है अनायास ही

हर चीज से परे उसकी हँसी
जादू सी है उसकी हँसी
मुझे चिंतन में डालती
चंचल सी चितवन उसकी 
हर बार वारी जाऊँ जिस पर
ऐसी है उसकी हँसी



तुम देह को भोग कर आना
अपना सारा इश्क़ करके आना
जब बातों से जी भर जाये
तब आना
तुम तब आना 
जब सूरज अस्त होते होते
थोड़ा सा बचा हो
सिंदूरी आसमाँ रात की अगवाई में सजा हो

मैं सपने देखती हूँ
हाँ.....मैं अब भी सपने देखती हूँ
चार दशक जीने के बाद
रिश्ते नातों की लंबी फेहरिस्त में
खुद को घोल देने के बाद
हर कटू शब्द को जीते हुए
कुछ प्रशंसाओं को पीते हुए
अपने अंदर कुछ बचा पाती हूँ
हाँ.....मैं अब भी सपने देखती हूँ

आज अब बस
आज्ञा दें
यशोदा

23 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    पितृ दिवस पर शुभकामनाएँ..
    बेहतरीन रचनाओं से परिपूर्ण ब्लॉग...
    आभार..
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहद प्यारी-प्यारी रचनाओँ के संकलन से जोड़ने के लिए आभार आपका ...

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी
    रचनाएं उत्तम

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  5. सस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाएं छोटी बहना
    आत्ममुग्धा जी उम्दा लेखन करती हैं
    सराहनीय संकलन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दीदी, आपकी सराहना मन को प्रफुल्लित कर गई ....आगे भी आपका स्नेहाशीष मिलता रहे

      हटाएं
  6. दी,
    उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़वाने के लिए बहुत बहुत आभार।
    आत्मुग्धा जी की लेखनी को अशेष शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति... आत्ममुग्धा जी का लेखन लाजवाब है उनको हार्दिक शुभकामनाएं एवं आभार आपका इतने सुन्दर ब्लॉग को पढ़वाने के लिए ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपने पढ़ा और आपको पसंद आया.....बस, बात यही लाजवाब है....दिल से धन्यवाद

      हटाएं
  8. मनभावन प्रस्तुति । जितनी भी प्रशंसा करूँ कम है। पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ये आपका बड़प्पन है और मेरा सौभाग्य..... पितृ दिवस की आपको भी शुभकामनाएं

      हटाएं
  9. सुन्दर प्रस्तुति। आत्म्मुग्धा जी के लिये शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  10. एक अछुता कोरा आत्म मुग्ध करता ब्लॉग। सुंदर रचनाओं की शानदार प्रस्तुति।
    आत्म मुग्धा जी को बहुत बहुत बधाई और काव्य यात्रा के लिए तहे दिल से मंगलकामना।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपके ये शब्द मेरे लिये संजीवनी समान......दिल की गहराइयों से शुक्रिया

      हटाएं
  11. आदरणीय दीदी -- आजके अंक में सखी आत्ममुग्धा जी के ब्लॉग का परिचय पाकर बहुत ख़ुशी हुई | अंक में शामिल सभी रचनाएँ उनकी बहुमुखी प्रतिभा की परिचायक हैं | ये नारी मन की अव्यक्त भावनाओं का आईना है | कवयित्री आत्ममुग्धा अपनी रचनाओं के जरिये अपने नाम को सार्थक करती हैं | य्न्हे हार्दिक शुभकामनायें आजकी इस उपलब्धि के लिए | पञ्च लिंकन में एक दिन का अतिथि होना बहुत सुखद है | आपको भी आभार एक प्रतिभाशाली रचनाकार से परिचय करवाने के लिए |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आज के अंक के लिये मेरा चयन वाकई मेरे लिये उपलब्धि है और आप जैसे दिग्गजों के मुख से इतने सुंदर शब्दों को सुनकर मैं और मेरी रचनाएँ भावविह्वल है.....आगे भी मार्गदर्शन चाहूँगी

      हटाएं
  12. आज के अंक में एक नये प्रयोग के तौर पर मेरी रचनाओं का प्रकाशन मेरे लिये बहुत बड़ी उपलब्धि है । भाव विभोर है ये आत्ममुग्धा..... सच में....निशब्द हूँ.....आपने निसंदेह मेरा उत्साह बढ़ाया है और मुझे लिखते रहने को प्रेरित किया है

    जवाब देंहटाएं

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