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बुधवार, 12 दिसंबर 2018

1244..हिदायत है हमें कम सुनो ..



।।प्रातः वंदन।।


जनतंत्र के पर्व को मद्देनजर रखतें हुए ..
शेर पर गौर फरमाइए..



जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे

किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है

सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में 
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

राहत इन्दौरी 



इसी के साथ आगे बढ़ते हुए लिंकों पर नजर डाले. ..✍

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ब्लॉग उम्मीद तो हरी है ..से



इस धरती पर 
कुछ नया 
कुछ और नया होना चाहिये-----

चाहिये 

अल्हड़पन सी दीवानगी 

जीवन का 

मनोहारी संगीत 

अपनेपन का..

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थमा गई थी वो ख़त हाथ में मेरे फट से ...

कहाँ से आई कहाँ चूम के गई झट से 

शरारती सी थी तितली निकल गई ख़ट से

हसीन शोख़ निगाहों में कुछ इशारा था 
न जाने कौन से पल आँख दब गई पट से..
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ब्लॉग तिरछी नज़र ..से




यह किस्सा मुझे मेरे मौसाजी, स्वर्गीय प्रोफ़ेसर बंगालीमल टोंक, जो कि आगरा कॉलेज में इतिहास के प्रोफ़ेसर थे, उन्होंने सुनाया था.

नेहरु जी की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री आवास, 'तीन मूर्ति' को नेहरु पुस्तकालय और संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया था (सरकारी भवन का दुरूपयोग).
सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में यह भारत का सर्वश्रेष्ठ पुस्तकालय कहा जा सकता है...
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उन्मुक्त उड़ान से..




दुनियाँ की समझदारी सीखी थी

तन बलवान और माथा नर्म

दुनिया जीत लेने का उमंग

तभी बुढ़ापे ने दस्तक दी

सब कुछ सिमट गया

जवानी दौड गुजारी थी

रात दिन सब एक किया
अच्छा, बुरा सब भूलकर
घर को ही बाज़ार बनाया था..
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आज की प्रस्तुति की समाप्ति..
शुभम जी के ग़ज़ल के साथ..




आज से तुम्हें भूल जाने का वादा करते हैं।

मिरी जिस्मों जाँ में बसे हो तुम,तुम कहते हो

सो आज ख़ुद से मनमानी कुछ ज़्यादा करते हैं।

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चलते.. चलते..

सियासत इस कदर अवाम पे अहसान करती है,

पहले आँखे छीन लेती है फिर चश्में दान करती है... 
(अज्ञात)

हम-क़दम के उनचासवे अंक का विषय
यहाँ देखिए


।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह'तृप्ति'..✍


18 टिप्‍पणियां:



  1. जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे

    काश ! यह बात हम इंसान समझ पाते।
    सुंदर अंक के लिये प्रणाम

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात सखी...
    बेहतरीन रचनाएँ पढ़वाई
    आभार...
    सादर.

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभ प्रभात
    सुन्दर प्रस्तुति , उत्तम लिंक संयोजन,
    सभी रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
    किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
    अच्छी तरह समझा दिया..
    बेहतरीन प्रस्तुति..
    शुभकामनाएँ...
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  5. वाहः वाहः बस वाहः


    जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे

    किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है

    सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
    किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

    राहत इन्दौरी साहब गज़ब

    जवाब देंहटाएं
  6. राहत इंदौरी साहब का लाजवाब शेर और कमाल के लिंक्स ...
    आ हर मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए आज ...

    जवाब देंहटाएं
  7. वाहहह... जबरदस्त भूमिका....👌👌
    सुंदर संकलन पम्मी जी..बहुत ही उम्दा है सभी रचनाएँ...।

    जवाब देंहटाएं
  8. समसामयिक शेर के साथ अंक का आरम्भ और उतनी ही ख़ूबसूरत पंक्तियों के साथ उपसंहार। सुन्दर रचनाओं का चयन। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं।

    जवाब देंहटाएं
  9. शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सार्थक लिंक संयोजन प्रिय पम्मी जी | सस्नेह बधाई |

    जवाब देंहटाएं
  11. आदि से अंत तक संग्रहित करने योग्य अंक पम्मी जी।
    सच कहा आपने ओ अर्श पर चढ इतराने वाले न भूल की कल कहीं नजर ना आजाओ फर्श पे।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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