30 नवंबर 1944
देश की चर्चित हिंदी लेखिका एवं दिल्ली साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष मैत्रेयी पुष्पा का आज जन्मदिन है। वह अकादमी उपाध्यक्ष मनोनीत किए जाने पर सुर्खियों में आ जाती हैं तो कभी अपने वैवाहिक जीवन पर व्यक्त विचारों और कृतियों में स्त्रियों पर साहसिक लेखन के लिए। अलीगढ़ (उ.प्र.) के सिकुर्रा गांव की रहने वाली प्रसिद्ध कथा लेखिका एवं दिल्ली हिन्दी अकादमी उपाध्यक्ष मैत्रेयी पुष्पा का आज (30 नवंबर) जन्मदिन है। उनके जीवन का शुरुआती दौर बुंदेलखण्ड में बीता है। अब लंबे समय से दिल्ली में रह रही हैं। किसी भी विषय पर स्पष्ट, बेबाक बयानबाजी और निर्भीक लेखन के लिए चर्चित पुष्पा जी
अत्यंत प्रतिभा संपन्न लेखनी की धनी हैं।
अत्यंत प्रतिभा संपन्न लेखनी की धनी हैं।
उनके द्वारा रचित उपन्यास, कहानी संग्रह,कविता संग्रह,आत्मकथा, यात्रा-संस्मरण,लेख संग्रह साहित्य की अनमोल धरोहर है। उनके जन्मदिन पर अनंत शुभकामनाएँ ।
पढ़िए उनकी लिखी एक कहानी
बाद में कारण समझ में आ गया था, जब मैंने सारी औरतों को एक ही भाव से आह्लादित देखा। उमंगों-तरंगों का भीतरी आलोड़न चेहरों पर झलक रहा था। ब्लॉक प्रमुख की पत्नी होने के नाते घर-घर जाकर अपनी बहनों का धन्यवाद करना जब संभव नहीं हो सका तो मैं ‘पथनवारे’ में जा पहुँची। आप जानते तो हैं कि हर गाँव में पथनवारा एक तरह से महिला बैठकी का सुरक्षित स्थान होता है। गोबर-मिट्टी से सने हाथों, कंड़ा थापते समय, औरतें अकसर आप बीती भी
एक-दूसरे को सुना लेती हैं।
एक-दूसरे को सुना लेती हैं।
★★★★★
चलिए अब आज की रचनाएँ पढ़ते हैं
★★★
आदरणीया शशि पुरवार जी
जीवन तपती रेत सा, अंतहीन सी प्यास
झरी बूँद जो प्रेम की, ठहर गया मधुमास
ठहर गया मधुमास, गजब का दिल सौदागर
बूँद बूँद भरने लगा, प्रेम अमरत्व की गागर
कहती शशि यह सत्य, उधेड़ों मन की सीवन
भरो सुहाने रंग, मिला है सुन्दर जीवन
★★★★★
आदरणीय दिलबाग सिंह'विर्क' जी
बड़ा महँगा पड़े है दस्तूर तोड़ना
वफ़ा क्यों की, इसलिए सज़ा दी है।
बाक़ी रहते हैं अक्सर ज़ख़्मों के निशां
यूँ तो बीती हुई हर बात भुला दी है।
★★★★★
थोकने की साजिशें होतीं सदा नवजात पर
★★★★★
★★★★★
आदरणीया डॉ.वर्षा जी
अधमरी सी चेतना के चिन्ह होते हैं लगे
भोथरे से फूल पर या जंग खाए पात पर
बुजबुजाती झाग वाली धूसरी धर्मांधता
★★★★★
आदरणीया दीपशिखा जी
झंकृत जीवन-वीणा पर
उर ने छेड़ी
तान है
कामनाओं के
इंद्रधनुष ने
सजाया नया वितान है
★★★★★
आदरणीया अनिता जी
जो बेशर्त बरसता निशदिन
निर्मल जल धार की मानिंद,
स्वर्ण रश्मियों सा छू लेता
अमल पंखुरियों को सानंद !
कर हजार उसके चहूँ ओर
थामे हैं हर दिशा-दिशा से,
दृष्टिगोचर कहीं ना होता
इस जीवन का अर्थ उसी से !
★★★★★
आदरणीया अपर्णा जी
आंखों से लुढ़कने वाले आँसू
रेत का दामन थाम
बस गए हैं आंखों में,
लौट आने की उम्मीद में,
गायब हो रही हैं पगडंडियां,
उदास हैं अम्मी और अब्बू!
न पैसे न औलाद,
कोई नहीं लौटता,
निगल लेती है मजबूरी,
गुम हो रही है पानी से तरंग
★★★★★
और चलते-चलते आदरणीया मालती जी की
लेखनी से पढ़िएवो नहीं आया
गरमाहट से ठीक हो जाएगा इसी उम्मीद से हम
अंदर जाने लगे, बड़ी बेटी अंदर गई पर मेरे जाने
से पहले ही वह पिल्ला अंदर चला गया। मैंने उसे
बाहर निकाला और फिर जैसे ही अंदर जाने के
लिए पैर बढ़ाती वह मेरे पैर के नीचे से मुझसे
पहले ही अंदर होता। हमें उसकी चालाकी पर
हँसी भी आ रही थी, उसकी दयनीय दशा पर
दया भी आ रही थी पर अगर उसे अंदर रखते
तो वो घर में गंदगी फैलाता इसका भी डर था,
समझ नहीं आ रहा था क्या करें...
कुछ देर के लिए तो यह अंदर जाना-बाहर
आना खेल सा बन गया पर
ऐसा कब तक चलता! मैंने अपने हसबेंड को
फोन करके उन्हें सारी बात बताई और उस पिल्ले
की चतुराई भी तो उन्होनें सलाह दी कि उसे गेट
के अंदर आने दूँ और किसी छोटी रस्सी से अंदर
ही गेट से बाँध दूँ।
★★★★★
आज का यह अंक आपसभी को
कैसा लगा?
कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया
के द्वारा अपने सुझाव
अवश्य प्रेषित करें।
इस सप्ताह के हमक़दम के
विषय के लिए
कल का अंक पढ़ना न भूलियेगा
कल आ रही है आदरणीया विभा दी
अपनी विशेष प्रस्तुति लेकर।
आज के लिए इतना ही