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सोमवार, 24 सितंबर 2018

1165...हम-क़दम का सैंतीसवा क़दम


तृष्णा का अर्थ प्यास, इच्छा या आकांक्षा से है। सांंसारिक बंधन 
के जन्म से मृत्यु तक के चक्र में मानव जीवन की कथा लिखी 
जाती है।  मनुष्य को इस मायावी जग से बाँधे रखने के लिए काम,क्रोध,लोभ,मोह और अहंकार जैसे भाव होते है। मनुष्य 
मन में पनपे विचार,इच्छा के रुप में अंकुरित होते हैं और 
इस इच्छा की जड़े जब मजबूत होकर मन मस्तिष्क पर 
राज करने लगती है तो वह तृष्णा कहलाती है।
जिस प्रकार हवन में डाली जाने वाली समिधा से अग्नि प्रचंड होती है 
वैसे ही तृष्णा की तृप्ति दुष्कर है।
किसी को धन की तृष्णा, किसी को प्रेम की, किसी को जीवन की 
किसी को यश की,संपूर्ण जीवन मनुष्य अपनी तृष्णा को 
तृप्त करने के प्रयास में भटकता रहता है। 
 छलना जग की माया में
भ्रमित मृग-सा फिरता है
आना-जाना खाली "कर" 
 जाने भरता है किस घट को
हरपल तृष्णा मेंं झुलसता है

 -श्वेता
हमक़दम के विषय "तृष्णा" पर रचनाकारों की विलक्षण लेखनी से पल्लवित अद्भुत पुष्पों की सुगंध आप भी महसूस कीजिए।
चलिए आपके द्वारा सृजित रचनाओं के संसार में-
आदरणीया मीना भारद्वाज जी की लेखनी से

अभिव्यक्ति शून्य , भावों से रिक्त ।
तृष्णा से पंकिल , ढूंढता असीमित ।।

असीम गहराइयों में , डूबता-तिरता ।
निजत्व की खोज में ,रहता सदा विचलित ।।
★★★★★
आदरणीया  कुसुम कोठारी जी की लिखी रचना

कैसा तृष्णा घट भरा भरा
बस बूंद - बूंद छलकाता है 
तृषा, प्यास जीवन छल है
क्षण -क्षण छलता जाता है । 
★★★★★★

आदरणीया डॉ. इन्दिरा गुप्ता जी क़लम से

तिस तिस तृष्णा ना मिटे ,तिल तिल अगन  लगाये 
जिस दिन तृष्णा मिट गई ,वा दिन नमः शिवाय ! 
                
तृष्णा एक कोहरे की हवेली ,दल दल मैं खड़ी लुभाय
कदम बढ़ा कर घुसना चाहे ,तुरत अलोप हुई जाय ! 

★★★★★★

आदरणीया नीतू ठाकुर जी रचना

मेघ मल्हार सुनाने आये


जो इस जग की प्यास बुझाये
उसकी तृष्णा कौन मिटाये
तड़प रहा है वो भी तुम बिन
यह संदेश बताने आये
मेघ मल्हार सुनाने आये  ....
★★★★★

आदरणीया  साधना वैद जी की लेखनी से प्रसवित

हृदय की तृष्णा विकल हो बह रही
युगों से पीड़ा विरह की सह रही
प्रियमिलन की साध का यह मास है
व्यथित व्याकुल जा रहा मधुमास है !

आओगे कब फूल मुरझाने लगे
खुशनुमां अहसास भरमाने लगे
जतन से थामे हूँ जो भी पास है
आ भी जाओ जा रहा मधुमास है ! 
★★★★★
आदरणीय  ज़फ़र जी की लेखनी से

कौन सी पिपासा है कौन धुन सवार है,
मनुष्य को ये किसकी तलाश हैं
धन की धुरी पर चलता जीवन,
मृत तृष्णा  सा छलता जीवन
लक्ष्य कोई नही बस एक दौड़ जारी हैं
सब सिर एक बोझ भारी हैं
परस्पर संबंधो की किसको चिंता

★★★★★

आदरणीया अनुराधा चौहान जी क़लम से प्रस्फुटित

तृष्णाओं में फसे रहना
यह है मानव की प्रवृत्ति
इसलिए मशीन बन के
रह गई आज उनकी जिंदगी
लगे हुए है सब एक दूजे
की कमियों को टटोलने
दिखावे के इस दौर में
फिरते तन्हाइयों के खोजते
★★★★★★
आदरणीया आशा सक्सेना जी लेखनी से

इस जिन्दगी के मेले में
अनगिनत झमेले हैं
माया तृष्णा मद मोह
मुझे चारो ओर से घेरे हैं |
ममता का आँचल
सर पर से हटते ही
घरती पर आ कर गिरी
तभी सच्चाई के दर्शन हुए |

★★★★★
आदरणीया अभिलाषा चौहान जी की प्रतिभासंपन्न 
लेखनी से पल्लवित दो रचनाएँ

डूबकर माया में तृप्ति रस की गागरी
सांसारिकता की मृगमरीचिका
ध्यान अपनी ओर खींचती
बढ जाती है और तृष्णा
जब तक ज्ञानज्योति जलती नहीं।

★★★
तृष्णा ऐसी डाकनी, मन को हर ले चैन ।
जाके हृदय जे उपजे, रहे सदा बैचेन । ।

जाके मन ना संतोष, जाके मन ना धीर।
तृष्णा पीड़ित वा मनुज, है रहत सदा अधीर ।।
★★★★★★
आदरणीया अनिता सैनी जी क़लम से

नैतिकता को दूर  बिठाती,
कृत्य अकृत्य सब करवाती,
राह सुगम  ओर,
जल्दी  पहुंचाये,
इसी   सोच  को  गले  लगाती,
यही  तृष्णा  मनु   को  नचाती ।
★★★★★★
आदरणीया उर्मिला दी की रचना
सागर  सी  तृष्णा, अंत न  जिसका होता
मृग मरीचिका सी तृष्णा जीवन घेरे रहता
मोह ,माया भौतिक जीवन,अपरमित इक्छायें
हे अनन्त!तेरी दिव्य ज्योति मुझे अपनी,
लघुता का पल छिन है आभास कराये!!
★★★★★

और चलते-चलते आदरणीया रेणु दी की रचना

डोरहीन   ये  बंधन  कैसा ?
यूँ अनुबंधहीन     विश्वास  कहाँ ?
  पास नही    पर प्याप्त  मुझमें

 ऐसा जीवन  -  उल्लास  कहाँ ?

 कोई गीत  कहाँ मैं  रच पाती ? 

तुम्हारी रचना ये शब्द प्रखर !!

आदरणीया रेणु जी की पसंद का एक गीत सुनिये-

अच्छे समय पे तुम आये कृष्णा -
मैं जा रही थी - ले के मन  में तृष्णा |

सबकी विदाई मैंने की-- हाय !
मुझको विदा करने ना वो आये
माँ के लिए  बच्चों  से हुआ ना इतना
अच्छे समय पे तुम आये कृष्णा

★★★★★

आपके द्वारा सृजित यह अंक आपको कैसा लगा कृपया 
अपनी बहूमूल्य प्रतिक्रिया के द्वारा अवगत करवाये
 आपके बहुमूल्य सहयोग से हमक़दम का यह सफ़र जारी है
आप सभी का हार्दिक आभार।


अगला विषय जानने के लिए कल का अंक पढ़ना न भूले।
अगले सोमवार को फिर उपस्थित रहूँगी आपकी रचनाओं के साथ

-श्वेता

24 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात।
    तृष्णा तो इतने प्रतिभाशाली रचनकारो ने कितने भिन्न भिन्न आयामो से बयान किया हैं।पड़कर बहुत आनंद आ गया।प्रतीक्षा थी इस अंक की पड़कर अच्छा लगा।सबकी बधाई।
    आभार स्वेता जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. जाने भरता है किस घट को
    हरपल तृष्णा मेंं झुलसता है


    तृष्णा पर बहुत सुदंर, ज्ञानवर्धक और सार्थक परिभाषा , सभी रचनाएं एक से बढ़ कर एक है।
    फिर भी इस माया जगत के बंधन को कायम रखने के लिये इसकी उपयोगिता है, अन्यथा यह जीवन ठहर जाए...

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभ प्रभात
    लिखने का तरीका सुधर रहा है
    या ये कहिए मंजने लगी है कलम
    अच्छी रचनाएँ
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति , सदैव की भांति बेहतरीन..., मेरी रचना को इस संकलन में शामिल कर मान देने के लिए हार्दिक आभार श्वेता जी ।

    जवाब देंहटाएं
  5. जफ़र साब व रेनू जी की कविता शानदार हैं.
    सभी रचनाकारों ने बठिया काम किया है.
    बधाई.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक आभार रोहित जी -- मंच पर आपके शब्दों ने मेरा मान बढ़ाया है |

      हटाएं
    2. बहुत बहुत आभार रोहितास जी।अपने मेरी रचना को इस लायक समझा

      हटाएं
  6. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,
    मेरी रचना को इस अंक में स्थान देने के लिए,
    हार्दिक आभार श्वेता जी ।
    सादर

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  7. सादर आभार मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए 🙏 बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है सभी रचनाएं तृष्णा
    की असीमता को परिभाषित कर रही हैं वास्तव में
    यह तृष्णा ही है जो उलझाती भी है भटकाती भी है
    और सही राह मिल जाए तो परम सत्य का साक्षात्कार भी कराती है बधाई सभी रचनाकारों को और आपको भी श्वेता जी

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  8. बहुत उम्दा रचनाएं
    बेहतरीन प्रस्तुतिकरण

    जवाब देंहटाएं
  9. सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई सुंदर रचनाएं पढ़ने को मिली आपका बहुत बहुत आभार श्वेता जी
    मेरी रचना को सुंदर प्रस्तुति का हिस्सा बनाने के लिए 🙏

    जवाब देंहटाएं
  10. प्रिय श्वेता -- आज फिर से हमकदम आयोजन के साथ परम प्रिय मंच पांच लिंकों की महफ़िल सजी है | विषय दुरूह था पर कलम के धनी रचनाकार भे कम प्रतिभा शाली नहीं हैं | उन्होंने बेजोड़ सृजन किया | संकलन का सबसे अहम हिस्सा -- तृष्णा पर आपकी लघुनिबंधात्मक विवेचना से सार्थक हो गया -- बहुत सही भूमिका लिखी है आपने , जो सराहनीय तो है ही चिन्तनपरक भे
    भी है | संसार अपनी - अपनी तृष्णा की धुरी पर ही गतिमान है | सब मोह अतंतः तृष्णा बन जीवन का चाहे - अनचाहे सम्बल बन जाते हैं और जीवन में रूचि को कायम रखते हैं | प्रिय इंदिरा जी ने बहुत ही सही लिखा है -
    तिस तिस तृष्णा ना मिटे ,तिल तिल अगन लगाये
    जिस दिन तृष्णा मिट गई ,वा दिन नमः शिवाय !!!!!!!!
    आज के लिंक सभी सहभागी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें | अभी नजर भर मारी है रचनाओं पर लेक्नी शीघ्र ही दुबारा भ्रमण होगा सभी लिंकों पर | मेरी रचना और पसंद के गीत को को स्थान मिला पञ्च लिंक मंच को कोटिश आभार और नमन | और आपके अत्यंत मेहनत से सजाये इस लंक के लिए आपको हार्दिक स्नेह के साथ बधाई |

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  11. बहुत स़ुदर प्रस्तुति.. सभी रचनाकारों को शुभकामनाएँँ
    धन्यवाद

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  12. लाजवाब प्रस्तुतिकरण.....एक से बढकर एक तृषित रचना ....तृष्णा के इतने रंग...वाह!!!
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  13. 'तृष्णा' शीर्षक पर रचित कविताएँ पढी। बहुत सार्थक और सफल प्रयास है। हार्दिक शुभकामनाएं!

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत सुन्दर संकलन , बधाई सभी रचनाकारों को
    वास्तव में सुन्दर “तृष्णा “ विषय पर कलमकारों ने अपनी क़लम ख़ूब चलायीं है । शुबकामनाए

    जवाब देंहटाएं
  15. अनुपम अद्भुत रचनाओं का बहुत ही सुन्दर सार्थक अनूठा संकलन ! सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ! मेरी रचना सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! अभिनन्दन !

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  16. व्याख्यात्मक विशिष्टता लिये सांगोपांग भुमिका,
    श्वेता आपकी लेखनी हर दिल अजीज और हर फन मौला है, बहुत शानदार प्रस्तुति है तुसीदास जी कि एक पंक्ति बार बार स्मरण होती है "ममता क्यों न गई मोरे मन से"।
    सभी रचनाऐं बहुत सुंदर है और तृष्णा का सही चित्र खिंचती है कल आपकी भी तृष्णा पर एक अप्रतिम मनभावन रचना पढी आप उसे भी देते तो अच्छा लगता।
    मेरी रचना को सामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया,
    सभी रचनाकारों को बधाई।

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  17. बहुत सुन्दर संकलन ,
    बधाई सभी रचनाकारों को 🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  18. तृष्णा से खूब परिचय कराया आज की इस हलचल ने
    बहुत सुंदर संकलन

    जवाब देंहटाएं

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