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सोमवार, 23 जुलाई 2018

1102..हम-क़दम का अट्ठाईसवाँ कद़म...हिंडोला


हिंडोला यानि झूला
सबने जीवन में कभी न कभी झूला का आनंद तो अवश्य लिया होगा। झूला जीवन में उल्लास और उमंग का प्रतीक है। सावन के महीने में धरती की सुषमा द्विगुणित हो जाती है। चारों ओर बिखरी हरियाली हृदय को आहृ्लादित करती है और तन मन प्रफुल्लित हो उठता है, इस अवसर को जीवंत करने के लिए खुशी से झूमकर गीत गाकर और झूला झूलकर प्रकृति की हरीतिमा के उत्सव में भाग लिया जाता है।
देश के लगभग हर प्रांत में सावन और झूले को लेकर 
लोकगीत प्रचलित है।
हिंडोला संस्कृति और परंपरा तो है ही यह स्वास्थ्य के लिए भी बहुत अच्छा है। हरे-भरे पेड़ो के मध्य डाला गया झूला मानसिक तनाव को दूर करता है।   झूला झूलने से हमारे शरीर में स्थित निष्क्रिय सुस्त कोशिकाओं में ऑक्सीजन पहुँचकर ताजगी का अनुभव कराती है। हिंडोला के पींग या झोटे भरने से पैरों की मांसपेशियां मजबूत होती है।
अब तो शहरीकरण की संस्कृति में पेड़ ही लुप्त हो रहे हैं , व्यस्त जीवन की दिनचर्या में आने वाले दिनों में हिंडोले की यह परंपरा कितनी जीवित रहेगी यह भी एक प्रश्न है।
हिंडोला के इस गुणगान को विस्तृत रुप देती कुसुम जी के इस लेख को पढ़कर लोक संस्कृति की पावन सरिता में आप भी गोता लगाइये।



हिण्डोला एक परम्परा एक अनुराग!!


हिण्डोला याने झूला प्रायः सभी सभ्यताओं मे इस का वर्णन मिलता है राजस्थान मे कई प्रांतो मे इसे हिंडा या हिण्डोला बोलते हैं , और सावन के आते ही घर घर झूले पड़ जाते हैं, मजबूत और बड़े पेड़ों पर मोटी  सीधी साखा देख कर मोटे मजबूत जेवड़े ( जूट की रस्सी या रस्सा) से पुट्ठा बांध कर छोटे बडे हिण्डे तैयार करते है मोटियार (मर्द) लोग।

झूलती है औरतें और बच्चे सावन की तीज से भादो की तीज तक झूले की बहार  रहती है विवाहिताओं को तीज के संधारे के लिये पीहर बुलाया जाता है जहां उन्हें पकवान, सातू (सीके चने की दाल के बेसन मे पीसी चीनी घी देकर ऊपर बदाम पिस्ता गिरी से सजी एक राजस्थानी मिठाई जो परम्परा से सिर्फ सावन भादों मे ही बनाई जाती है) नये कपड़े और उपहार देकर विदा करते है शादी के बाद का पहला सावन बहुत हरख कोड से मनाया जाता है, हवेलीयों की पोलो (प्रोल ) बड़े विशाल प्रवेश द्वारों पर बडे छोटे झूले पड़ जाते हैं, सभी सखियाँ भाभीयां बहने साथ मिल खूब हंसी खुशी ये त्योहार मनाते हैं होड़ लगती है कौन कितना ऊपर झूला बढा पाता है, कोई भाईयों से मनुहार करती है वीरा सा हिंडा जोर से दो भाभियां चिहूकती है हां इतरा जोर से दो कि लाड़न को सीधा सासरा दिख जाय हंसी की फूलझड़ियां छूटती है छोटी उम्र की ब्याहताऐं अब ससुराल से बुलावे का संदेशे की बाट जोहती  है कभी बादल कभी हवा कभी सुवटे के द्वारा संदेशा भिजवाती है पीया जी आओ मोहे लेई जावो और 
फिर विदाईयां होती है सावन के बाद, गोरी धन चली ससुराल , 
गीतों मे कहती है सुवटडी...



अगले बरस  बाबोसा,वीरासा ने भेज बुलासो जी,

         सावन की जद आवेला तीज जी।

और अब चलते है हम हमारे आज के विषय हिंडोला पर लिखी गयी 
हमारे परमप्रिय रचनाकारोंं की विशेष कृतियों का आस्वादन लेते है-


आदरणीया नीतू ठाकुर जी की रचना

एक तरफ बाबुल की गलियाँ 
एक तरफ संसार पिया का 
किसको थामूं किसको छोडूं 
दोनों हैं आधार जिया का 

आगे कुँवा तो पीछे खाई 
जगने कैसी रीत बनाई 
किस्मत ने क्या खेल है खेला 
मनवा डोले जैसे हिंडोला
◆★◆★◆

आदरणीया उर्मिला जी की दो रचना
तन की तृष्णा तनिक है!
मन की तृष्णा है अनन्त !!
धन दौलत धरी रह जाये,
बुलावा जब पी का आये!!
हिंडोला झूल रही राधा प्यारी 
झुलावे कृष्ण मुरारी ना......
छाई काली घटा मतवारी
झुलावें कृष्ण मुरारी ना...

पी..पी..पपिहा सुर में गावे
कोयल प्यारी कुक सुनावे
मादक स्वर बंसी के बाजे
सुध बुध खोवें राधा रानी ना....
झुलावें कृष्ण मुरारी ना.....
◆★◆★◆★◆

आदरणीया कुसुम कोठारी जी की दो रचना

गढ़ प्रोल्या मे सज्यो हिण्डोलो


छोटी छोटी बूंद बरसे बदरिया
बाबुल मोहे हिण्डन की मन आई
कदम्ब डारी डारो हिण्डोला
लम्बी डोर लकड़िन का पुठ्ठा
भारी सजा लाडन का हिण्डोला
आई सखियाँ ,भाभी ,बहना,
वीराजी हिण्डावे दई दई झोटा


ओढ के धानी चुनर प्रीत की
संग सांवलिया के झुलन जाऊँ
पेंग बढ़ाऊं ,
पायल बोले रुनझुन रुनझुन
मन के संदल महके
पपीहरा गीत सुनाऐ

◆★◆★◆★◆
आदरणीया साधना वैद जी

सूना री हिंडोला अम्बुआ की डार पे जी
ए जी कोई मैया ना, अम्बे कोई बाबुल ना
देने को पुकार !
छूट गया बहना
देखो मेरा मायका जी !
◆★◆★◆★◆
आदरणीया आशा सक्सेना जी

चलो  री सखी चलें अमराई में
झूलन के दिन आए
नीम की डाली पे झुला डलाया
लकड़ी की पाटी  मंगवाई
रस्सी मगवाई बीकानेर से
भाबी जी आना भतीजी को भी लाना
काम का  समय निकाल कर पर आजाना

◆★◆★◆★◆
आदरणीया अभिलाषा चौहान जी


बैठ सखी मैं पवन हिंडोला
पिय से मिलने जाऊंगी

कहां बसे है पिय मोरे प्यारे
अब कैसे पता लगाऊंगी

लोग कहत हैं प्रियतम मेरे
घट घट में हैं वास करें

◆★◆★◆
आदरणीया अनुराधा चौहान जी की दो रचना

घिर आई काली घटा मतवाली
झूले पड़ गए कदम की डाली
राधा संग झूलें झूलना श्री कृष्ण मुरारी
कूक रही कोयलिया काली
नाचे मोर नाचे पपीहा
नाच रहीं गोप कुमारीl
★■★
सखी डाला रे हिण्डोला यादों का
पहले झूली मैया की यादें
बड़े प्यार से हिंडोला झुलाएं
आंखों से ममता रस बरसे
आंखें मेरी भर भर आएं
सखी ..........................

◆★◆★◆★◆
और चलते-चलते आदरणीया सुप्रिया रानू जी की बेहद सुंदर रचना
बचपन के सखियन के साथे
बाग बगीचे में झुमल गावल,
सावन के महीने में 
हिंडोला पे झुलल,
और बदरा के साथ भींजल
सब बिसर गइल अब मायके में ही,
अब त जीवन हिंडोला हो गइल....

-*-*-*-*-
और अब 
 फिल्म बन्दिनी का गीत
सुनिए आप भी....

अगले विषय के लिए कल का अँक अवश्य देखें
श्वेता ...




19 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात सखी
    आपके व्यस्त समय में किया गया श्रम नज़र आ रहा है
    बहुत सुन्दर.....
    आभार
    सादर

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  2. शुभ प्रभात बेहद रोचक संकलन,झूले पर झूलने का आनंद और आज की रचनाएं तनिक भी कम नही हैं सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं,विशेष बात यह कि आज झूला महिला रचनाकारों ने ही सजाया है हलचल के आंगन में,
    और श्वेता की यह जो सबसे आखिर में आपने गीत का चयन किया ही अद्भुत,मैं बचपन से सुनती आयी हुन और आज भी मन को छूता है ये...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. क्षमा चाहूंगी श्वेता जी की जगह टंकण में त्रुटि से श्वेता की हो लिख दिया है,

      हटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहद खूबसूरत संकलन
    विषय मनमोहक था
    शायद ही कोई कन्या स्त्री होगी जिसे झूला नहीं पसंद हो
    मुझे तो कहीं दिख जाए झूला बिन झूले पग आगे ही नहीं बढ़ते

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  5. बेहतरीन प्रस्तुति शानदार रचनाएं बचपन की यादें ताजा हो गईं हिंडोले का सुंदर संकलन देख 👌👌

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  6. आज की प्रस्तुति अप्रतिम है श्वेता जी, झूले मिले न मिले पर सावन व झूलों का अटूट संबंध रहा है।
    आज आपने सभी स्मृतियों को जीवंत कर दिया। आपका आभार 🙏 🙏

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  7. वाह!!श्वेता ,बेहतरीन संकलन । सावन और झूला दोनों एक दूसरे के पर्याय बन जाते हैं ..राजस्थान में तो तीज के त्यौहार की छटा ही निराली होती है ....सच में याद आ गए मायके के वो दिन ,खूब झूला करते थे ...।

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  8. 'वो अमवा का झूलना, वो पीपल की छाँव.......' शायद ही कोई "बचपन" होगा जिसने पींगें न भरी हों !

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  9. मनमोहक हलचल की प्रस्तुति के लिए श्वेता जी को बधाई
    सभी रचनाकारों ने बहुत ही खूबसूरत शब्दों से हिन्डोला पर रची रचनाएँ।
    धन्यवाद।

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  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार।

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  11. वाह! इस संकलन की रचनाएँ सावन के सुहावन हिंडोले हैं या झूलों के झकझोरते झोटे! भूमिका से लेकर उपसंहार तक हिन्डोलें ही हिन्डोलें!!! बधाई, शुभकामनाएं और आभार!!!

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  12. बहुत ही सुंदर संकलन हिंडोलों का...हिंडोलों से कई अच्छी यादों के साथ एक दुःखद याद भी जुड़ी है। फिर भी कभी मौका मिले तो झूले पर बैठने से खुद को रोक नहीं पाती। आजकल तो कॉलोनियों में नीचे पार्क में झूले होते हैं। बच्चों के साथ साथ कभी कभी कोई बिंदास बड़े भी झूलते दिख जाते हैं उन पर, वहीं कुछ लोग तो "लोग क्या कहेंगे" सोचते रह जाते हैं और नहीं झूलते। कितना बड़ा आनंद गँवा देते हैं वे ! और अब तो घरों में भी झूला लटका लेना फैशन हो गया है। चाहे जितने प्रकार के झूलों या हिंडोलों में बैठ लीजिए, असली झूला तो वही होता था जो सावन महीना लगते ही भैया या चाचा नीम की डाली से बाँध देते थे.... जिस पर दोपहर बारह बजे, साँझ पड़े और रात में झूलना मना होता था.... वही हिंडोले यादों में बसे हैं !!!!
    खूबसूरत प्रस्तुति के लिए बधाई। राजस्थानी हूँ तो तीज, सिंधारा और हिंडोले के संदर्भ से यहाँ मायका मिल गया जैसे.....

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  13. झुले का स्वास्थ्य के लिये भी.. उपयोगी जानकारी और झूले को आध्यात्म से भी जोडा गया है इधर से ऊधर भव भटकती आत्मा आदि....
    शानदार भुमिका जानदार प्रस्तुति और मेरे अनाड़ी हाथो से लिखा आलेख मारवाड़ी भाषा के शब्द के अवगूंठन मे कुछ दोष फिर भी प्रकाशित किया, ढेर सी कृतज्ञता ।
    सुंदर प्रस्तुति की बधाई श्वेता।
    झूले को देख कर आज भी झूले मे बैठ कर कुछ झोटे लेना और पिंग बढाना और ये सोचना कि लोग क्या कहेंगे! कहते रहें भला,..
    मेरी दो रचनाओं को सामिल किया बहुत बहुत आभार, सभी सह रचनाकारों को बधाई।

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  14. झूले के हर पहलुओं पर विस्तार से जानकारी मिली बढ़िया लगा।

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  15. झूले के विविध पक्षों का सुंदर और सजीव शब्दचित्र , बढ़िया लगा पढ़ कर।

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  16. अद्भुत रचनाओं का अविस्मरणीय संकलन ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका श्वेता जी यद्यपि वह किसी भी दृष्टिकोण से आज के अंक में सम्मिलित करने के योग्य न थी ! हर्षोल्लास से भरी सुखद स्मृतियों को संजोता यह विषय स्त्रियों को अपने प्यार दुलार भरे खिलखिलाते बचपन की याद दिलाता है वहीं मेरी रचना ने सबका मूड खराब किया होगा ! हृदय से आप सबसे क्षमा याचना करती हूँ ! इस संकलन से इस रचना को प्लीज़ हटा दें यह मेरा आपसे विनम्र निवेदन है !

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