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सोमवार, 9 जुलाई 2018

1088..... हमक़दम....का छब्बीसवां क़दम..मेघ-मल्हार

भारतीय संगीत की सबसे बड़ी खूबी यह है की इसका हर सुर, राग और हर पल, घड़ी, 
दिन और मौसम के हिसाब से रचे गए हैं। किस समय किस राग को गाया जाना चाहिए, 
इसकी जानकारी संगीतज्ञों को होती है। 
आत्मा,प्रकृति और संगीत का प्रगाढ़ संबंध हैं। या यों कहें कि प्रकृति ही संगीत है। प्रकृति के कण-कण में 
समाया राग जीवन में विविध भाव उत्पन्न करता है। प्रकृति का अनूठा वरदान वर्षा ऋतु का आनंद 
अवर्णनीय है। छनकती बूँदें तन-मन में स्फुरण जगाकर उल्लास और उमंग से भर देती है। तपती धरती 
और गरम थपेड़ोंं से व्याकुल तन-मन पर ठंडी फुहारों की रागिनी का आनंद शब्दों से परे है।

 कारे-कजरारे बादलों और तरंगित बूँदों की रागिनी से उत्पन्न संगीत मेघ-मल्हार है। ऐसा माना जाता है 
मेघ-मल्हार मेघों का आह्वान करने में सक्षम है। इस राग से मेघाच्छन्न आकाश, बूँदों का नर्तन,दामिनी 
गर्जन जैसी सुखद अनुभूति होती है। रिमझिम फुहारों में भींगने को आमंत्रित करती वर्षा ऋतु के रस और 
गंध में डूबी संगीत-संरचना मेघ-मल्हार है। राग की बात हो और तानसेन को भूल जाये ये संभव कैसे हो?

संगीत के गगन को असंख्य राग-रागनियों से सजाने वाले तानसेन के संबंध में अनेक लोकोक्तियाँ 
प्रचलित है। जैसे दीपक राग गाने से गर्मी उत्पन्न होना और राग मेघ-मल्हार से मेघों का घुमड़कर 
बारिश हो जाना।सच चाहे जो भी हो किंतु यह सत्य है कि मेघ मल्हार जीवन का वह संगीत है 
जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

आज के विषय मेघ-मल्हार पर हमारे रचनाकारोंं की क़लम ने शब्दों की बूँदें बरसाकर सोंधी खुशबू बिखेर दी है और बूँदों की रागिनी से झंकृत हृदय सुंदर रचनाओं का रसपान कर रहा है।

आइये आपकी रचनाओं के संसार में चलते हैं-
आदरणीया शुभा मेहता जी की रचना
मेघ मल्हार
गरज आए बदरा कारे 
  चहुँ ओर पावस भर लाए 
मोर -पपीहा झूमे -नाचे 
कोयल छेड़े राग मल्हार 
धरती भी तो झूम रही है 
पहन चुनरिया धानी 
पत्ती -पत्ती सजी हुई है

◆●◆

आदरणीया मीना शर्मा जी की रचना
मेघ मल्हार

कण - कण से फूट रहे,
आनंद अंकुर,
झरनों ने छेड़ दिए
मधुर राग - सुर !
प्यासी पृथ्वी भीगे
अमृत बौछार ।
मन मगन मदमस्त गाए,
मेघ मल्हार ।।

●◆●
आदरणीया साधना वैद जी की क़लम से
कहाँ हो तुम ?
क्या तुमने भी कलयुग में आकर
अपनी प्रथाएँ और
परम्परायें बदल ली हैं ?
क्योंकि
नहीं करते ये मेघ अब
विश्वसनीय दूत का काम,
नहीं लाकर देते ये सन्देश
◆●◆
आदरणीया अपर्णा वाजपेई जी की रचना
कविताओं की खेती

कवितायेँ भी... पीछा ही नहीं छोड़ती,
धमक पड़ती हैं कभी भी
मानती ही नहीं बिना लिखवाये,
कागज़ की नावों पर सैर कराती
मेघ की मल्हार पर कथक करवाती हैं,
तबले की थाप और बाँसुरी की धुन बनी,
पोर-पोर सरगम सी घुल घुल जाती हैं,
◆●◆
आदरणीया रेणुबाला जी की अभिव्यक्ति
ये जो श्वेत,आवारा,बादल

किसकी  छवि पे मुग्ध  मयूरा
सुध बुध खो  नर्तन करता ?
कोकिल  सु -स्वर दिग्दिगंत में
आनंद  कैसे भर पाता ? 
  
टप-टप    गिरती बूंदों  बिन -
कैसे आंगन में उत्सव सजता ?
दमक दामिनी  संग व्याकुल हो 
जो मेघ-राग  मल्हार ना गाता ?
◆●◆
आदरणीया डॉ. इन्दिरा गुप्ता की लेखनी से तीन रचनाओं का राग
मेघ मल्हार

मेघ मल्हार ऋतु आई बसन्ती 
पावस नार हुई  रसवन्ती 
बूँद बूँद पायल  सी छनके 
चले नार कोई रसवन्ती ! 
मेघ मल्हार ऋतु .......
भर भराय बदरा झरी आये 

पावस ऋतु पिय घर को आये 
भरे नयन पर लब मुस्काये 
मेघ मल्हार सी भई विरहणी 
जल तरंग तन  लरजत जाये ! 
चटख चटख नव वृंद खिल्रे है 

छलक रहे मधु रस के प्याले 
कली कली भँवरे रस पीते 
मदमाते मति भ्रम में फिरते !

बिजुरिया चमकत ज्यों नभ गरजत 
कुँज कुँज में बोले कोयलिया 
कजरारे नैन पिय तरसत
पिय आवन की देय खबरिया !

◆●◆
आदरणीया अभिलाषा चौहान जी की रचना
विहग अवली झूमती जाती गगन में
बन गलहार मेघ का सत्कार करने
पवन मुक्त छंद स्वागत गान करते
वृक्ष भी लय ताल संग नृत्य करते
◆●◆
आदरणीय पंकज प्रियम जी की लेखनी से
मेघ मल्हार

घनर घनर घनघोर घटा, गाये मेघ मल्हार
चमक चमक चमके बिजुरी, तेज कटार।
कारे कारे बदरा छाए,झूम के पपीहा गाये
छमक छमक छमछम नाचे बरखा बहार।
चांदी से चमकती आँगन नाचती बर्षा बूंदे

●◆●
आदरणीया  कुसुम कोठारी जी की अद्भुत दो रचनाएँ
सरसती बूँदों का श्रृंगार मेघ मल्हार

घुमड़ता मेघ, मल्हार गा रहा
 मदमाती बूंदों का श्रृंगार गा रहा
  सरसती धरा का प्यार गा रहा
  खिलते फूलों का अनुराग गा
कलियों का सोलह सिंगार गा रहा
मन की झांझर ऐसी झनकी
रुनझुन रुनझुन बोल रही है
छेडी सरगम मधुर रागिनी
मन के भेद भी खोल रही है।
आज सखी मन खनक खनक जाय।

प्रीत गगरिया छलक रही है
ज्यो  अमृत  उड़ेल रही  है
मन को घट  रीतो प्यासो है
बूंद - बूंद रस घोल  रही  है
आज सखी मन खनक खनक जाय ।
◆●◆

आदरणीया आशा सक्सेना जी लेखनी से प्रसवित दो रचनाएँ
पहली फुहार

छाई घन घोर  घटाएं
वारिध भर लाए जल के घट
उनसे बोझिल वे आपस में टकराते
गरज गरज जल बरसाते
दामिनी दमकती
 हो सम्मिलित खुशी में
नभ में आतिशबाजी होती
झिमिर झिमिर बूँदें झरतीं |
विरही मन
देख काली घटाएं
हुआ बेकल
अश्रुओं की वर्षा करता
जल प्लावन का
 सन्देश दे रहा 
मेघ आषाढ़ का
◆●◆
आदरणीया सुप्रिया पाण्डेय जी की रचना
मेघ मल्हार....
जेठ से तपन से सूखी प्रकृति,
समंदर भी अब खौल रहा,
नदियों का जल सुख चला है,
धरती का आनन जल रहा,
बरसाने को अम्बर से रस फुहार रे,
आओ गाएँ मेघ मल्हार रे...

आप के द्वारा सृजित हमक़दम का यह अंक 
आपको कैसा लगा कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के 
द्वारा अवश्य अवगत करवाइयेगा।

हमक़दम का अगला विषय जानने के लिए
कल का अंक देखना न भूले।
अगले सोमवार फिर मिलेंगे नये विषय पर  
आपके द्वारा सृजित रचनाओं के साथ।

आज के लिए बस इतना ही

-श्वेता सिन्हा


24 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात सबको,मेघ मल्हार हमारे हलचल का असर दिखाया और रचनाओं की बारिश हुई है जो मन हराभरा कर गयी,सभी रचनाकारों को ढेरो शुभकामनाएँ,यूँही हलचल पर कविताओं की फुहार पड़ती रहे सालों सालों तक...आप सबका दिन मङ्गलमय हो

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  2. पटना/बिहार का मेघ पूरी तरह रूठा है ऐंठा है
    रचनाओं में भीग सुखद अनुभति
    सस्नेहाशीष

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीया
      मुंबई आ जाइए। इस समय मेघ अपने पूरे सौदर्य के साथ यहाँ विराजमान हैं ।
      सादर ।

      हटाएं
  3. शुभप्रभात
    आदरणीया श्वेता जी, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद । सभी संकलित
    रचनाएं पावस ऋतु का मनभावन चित्रण कर रही हैं
    बहुत सुंदर संकलन

    जवाब देंहटाएं
  4. मनभावन भूमिका, सरस संकलन। आभार!!!

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  5. वाह!!हलचल पर तो मेघ मल्हार की आहट.. बहुत सुंदर पर हमारे यहाँ बारिश क्या! काले बादल का टुकड़ा भी नहीं.. पर आज की प्रस्तुति ठंडक भरी बारिश से कम नहीं।सभी रचनाकारों को बधाई एवम् धन्यवाद।

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  6. वाह ! बहुत ही सुन्दर व मनभावन रचनाओं की रिमझिम फुहारों में भिगोता आज का अंक ! भौतिक जगत के बादल भले ही रूठे हों साहित्य जगत के बादल तो खूब सक्रिय हैं और उर अंतर को भिगो भी रहे हैं ! सभी रचनाकारों का हार्दिक अभिनन्दन ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी !

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  7. बहुत खूब! एक से बढ़कर एक रचनाएं। आभार मेरी रचना शामिल करने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत खूब! एक से बढ़कर एक रचनाएं। आभार मेरी रचना शामिल करने के लिए

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  9. उम्दा रचनाएँ
    अप्रतिम संकलन

    जवाब देंहटाएं
  10. मल्हार ने आखिर अपना रंग दिखा ही दिया
    हमारी सखी श्वेता के नेत्रों से अश्रुओं की धारा बहने लगी
    कारण सच में सही है कि हमारी प्रतिक्र्या हरदम के माफिक
    पहली क्यूँ नहीं....दरअसल हम परेशान से थे.....
    सो भूल गए.... नज़रअंदाज़ कीजिए...
    सादर

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    1. जी मैं भी सुबह बहुत देर तक इंतज़ार की आपकी प्रतिक्रिया की आपकी प्रतिक्रिया क्रम में हो न हो आप हमेशा सबसे पहले ही हैं आदरणीया

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  11. प्रिय श्वेता जी
    नमस्कार । मेघों की चर्चा संगीत के बिना पूरी नहीं होती ।
    चर्चा में इसे स्थान देकर इस विषय को पूर्ण कर दिया ।
    मेघों की छाँव में बैठ कर मेघ राग के सुरीले सुरों की बारिश ने आत्मा तक को तृप्त कर दिया है । प्रकृति के सभी साधकों की सुरीली लेखनी को मेरा सादर नमन ।
    सस्नेह ।

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  12. कविताओं, रचनाओं में तो खूब बरस रहे हैं पर सच्चाई में कुछ रूठे-रूठे से नजर आते हैं, आस दिखा कर निराश करते ये मेघराज !

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  13. सुन्दर लिंक्स, सपने को शामिल करने हेतु हृदय से आभार

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  14. वाह ...क्या खूब ..लाजवाब संकलन प्रिय श्वेता ..
    👌👌👌👌👌👌👌
    मेघ मल्हार झूम कर बरसे
    लिंक हुआ बहुरंगी
    हर काव्य एक सरस बदरिया
    मन हुआ जल तरंगी !

    मेरे काव्य को सरसने के लिये शामिल किया आभार !
    नमन

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  15. सरस सी भुमिका राग और मेघ का सुंदर संगम शानदार अभिव्यक्तियों से सुशोभित संकलन और मेरी दो रचनाओं को स्थान देने के लिये सस्नेह शुक्रिया।
    सभी सह रचनाकारों को बधाई।

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  16. शानदार संकलन और सभी रचनाकारों को बधाई।

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  17. प्रिय श्वेता --- आज का संकलन बहुत ही कोमल सुंदर रचनाओं और प्रकृति के सुंदर रूप का अद्भुत संग्रह है | भूमिका बहुत ही शानदार लगी मुझे | राग मल्हार और तानसेन का सम्बन्ध बहुत प्रसिद्ध है | और औपचारिक संगीत से अलग मेघ का जीवन से जुडा अभिन्न सम्बन्ध है | उसके मल्हार राग से ही धरा पर अन्न धन और सब वैभव संभव हैं |पेड़ों के ऊपर बरस महीनों जमी धूल को साफ सुथरा करने के बाद जब अपने राग में डूब कर बादल बरसते हैं तो भीगती सृष्टि बूंद - बूंद से तृप्त होती हुई एक आलौकिक रूप में नजर आती है | ईश्वर का सबसे अतुलनीय उपहार मेघ ही धरा पर सब वैभव सजाता है |नदियाँ ,तालाब , पोखर सब भर जाते है | धरती के अंतस की प्यास बुझाकर धरतीपुत्र की मेहनत को लहलहाती फसलों के रूप में साकार करते हैं | जैसा की सभी ने लिखा भले ही बादल के आगमन में दिन प्रतिदिन देरी होती जा रही है पर सभी रचनाकारों ने बहुत ही लाजवाब सृजन कर साहित्य की थाती अनमोल रचनाओं का सृजन किया है | सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाये | आपको बेहतरीन भूमिका और सफल लिंक संयोजन के लिए बहुत बधाई और मेरा प्यार |

    वर्षा की विहंगमता को समर्पित --

    सृजन की ये अद्भुत बेला
    चले सृष्टि के रास का खेला ;
    बरसे अम्बर झूमे धरती
    तन --मन में बूंद - बूंद रस भरती
    हरित वसन में सजा है कण कण
    संतप्त हृदय को शीतल करती
    खग दल ने अम्बर चूम लिया
    लगा रहे कलरव का मेला
    सृजन की ये अद्भुत बेला !!






    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. यहाँ मुंबई में तो वर्षारानी झूमकर बरस रही है। चार दिन से सूर्यदेवता छुपे हुए हैं। जगह जगह पानी भर गया और लोकल ट्रेनों का यातायात बाधित हो गया था शनिवार को तो। मुंबईवासी सारी तकलीफें उठाकर भी बारिश का मौसम एंजाय करते हैं।

      हटाएं
  18. बहुत ही सुंदर संकलन,मन को भाव फुहारों में भिगोता हुआ....बहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचना को सम्मिलित करने हेतु। सादर।

    जवाब देंहटाएं

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