---

रविवार, 8 जुलाई 2018

1087...नियम नहीं हैं कोई गल नहीं, बिना नियम के चलवा देंगे हजूर, हम समझा देंगे

सादर अभिवादन
देवी जी की तबियत गुरुवार से नरम है
आज वे अपने कमरे से बाहर आई हैं
खैर जो भी है सब सही हो गया है....
आज की हमारी पसंदीदा रचनाएँ....


ये प्रधानमंत्री के बॉडीगार्ड्स के ब्रीफ़केस में होता क्या है
अभय शंकर
इस बार जब आपने 26 जनवरी की परेड देखी होगी तो आपके दिमाग में एक सवाल ज़रूर आया होगा कि आखिर देश के प्रधानमंत्री के साथ ये जो उनके बॉडीगार्ड चलते हैं, उनके ब्रीफ़केस में आख़िर होता क्या है? या फिर आपने कभी इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया? 
ऐसा सालों से होता आ रहा है लेकिन क्या वाकई आपके दिमाग में कभी ये बात नहीं आई? चलिए कोई बात नहीं आज हम आपको बताते हैं कि आखिर वो ब्रीफ़केस जैसी दिखने वाली चीज़ क्या होती है!

गीतों में बहना..शशि पुरवार

कभी कभी, अच्छा लगता है,
कुछ  तनहा रहना। 

तन्हाई में भीतर का
सन्नाटा भी बोले
कथ्य वही जो बंद ह्रदय के
दरवाजे खोले। 

कचरे में ज़िंदगी की तलाश.....श्वेता सिन्हा

अक्सर गली के उस मुहाने पर आकर
थम जाते है मेरे पैर
जहाँ मुहल्लेभर का कचरा 
बजबजाते कूड़ेदान के आस-पास बिखरा होता है
आवारा कुत्तों की छीना-झपटी के बीच
चीकट,मटमैली 
फटी कमीज, गंदला निकर पहने
वो साँवले मासूम बच्चे


वर्षा तो अभी अल्हड़ है....कुसुम कोठारी
वर्षा तो अभी अल्हड़ है
कोई न जाने कैसी राह चली
मस्त,मदंग,मतंग मतवाली
अपनी चाल चली
कोई देखे हसरत से
फिर भी नही रुकी
कहीं सरसा हो सरसी
कहीं प्रचंड बरसी

असमंजस....ओंकार केडिया
बहुत संभलकर बोलता हूँ मैं,
तौलता हूँ शब्दों को बार-बार,
पर लोग हैं 
कि निकाल ही लेते हैं
मेरे थोड़े-से शब्दों के 
कई-कई अर्थ.

आलिंगन.... पुरुषोत्त सिन्हा

कभी इक तपिश थी बदन में,
सबल थे ये मेरे कांधे,
ऊंगलियों में थी मीठी सी चुभन,
इक व्यग्रता थी,
चंचलता थी चेहरे पर,
गीत यूं ही बज उठते थे मन में,
अंजाने से धुन पर थिरकते थे कदम,
न ही थे अपने आप में हम,
व्यग्र रहते थे तुम भी,
भींचकर ले लेने को मेरा ये आलिंगन!



आवारा पागल इश्क़....
‌होता तो है पागलपन इश्क़ में
और होती आवारगी भी है
एक पागलपन आशिक़ी में हो
ये बदस्तूर होता चला आया है
और मान भी लिया है सबने
और ये होता हर प्यार में है।

धरा की व्याकुलता ....अभिलाषा चौहान

थक चुकी है वह
तुम्हारी उपेक्षा से
तुम्हारे व्यवहार से
नष्ट कर उसकी सुंदरता
खड़े किए कंक्रीट के जंगल
नष्ट कर दिए हरे भरे वन
जिनमें बसता था जीवन

उलूक टाईम्स में
डॉ. सुशील जी जोशी


किसी 
दिन आकर 
तुझे भी 
दो चार दिन 
देश चलाने की 
किताब के 
दो पन्ने 
तेरे शहर 
के पढ़ा देंगे 

आज बस यहीं तक
आज्ञा दीजिए
कुछ सरकार सेवा करनी है
दिग्विजय






















11 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात आदरणीय सर।
    मौसम का बदलाव स्वास्थ्य संबंधी परेशानी लेकर आता है।
    बहुत सुंदर रचनाओं का संयोजन आज के अंक में।
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार सर।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाआआह
    विविध रचनाओं का अदभुत संग्रह
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. आप झटपट अति सुंदर संकलन कैसे बना लेते हैं...

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय सर, शुभ प्रभात मेरी रचना को संकलन में
    स्थान देने के लिए सादर आभार
    बहुत सुंदर संकलन। सभी लोगों का स्वास्थ्य उत्तम रहे
    हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर संकलन उम्दा सूत्रों का। 'उलूक' की बकबक को भी साथ में जोड़ने के लिये आभार दिग्विजय जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर संकलन बेहतरीन रचनाएं आभार आदरणीय

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर हलचल प्रस्तुति, अच्छी रचनाओं का संकलन मेरी रचना को स्थान देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।