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शुक्रवार, 6 जुलाई 2018

1085..सब्र का जब बाँध टूटता


सुबह-सुबह अखबार खोलते ही लूट-खसोट,मार-काट,हिंसा,
स्त्री बच्चियों के साथ किये दुष्कृत्य
कोई न कोई नया घोटाला,टेलीविजन के समाचारों का भी वही हाल सोशल मीडिया पर बढ़ती आक्रोशित अभिव्यक्ति... उफ़। नकारात्मकता से भरपूर दिन की शुरुआत मन को वितृष्णा से भर देती हैं। अख़बार के अंदरूनी पन्नों पर सुविचार और जीवन में आशा और ऊर्जा देते,  प्रेरित करते दो चार पंक्तियों के संदेश मुँह चिढ़ाते है। ऐसा तो नहीं है न कि सबकुछ नकारात्मक ही घटित हो रहा हमारे आस-पास। आपके पड़ोसी,मित्र,सहकर्मी, परिवार के लोग सब बुरे ही तो नहीं न। अगर कुछ खराब है तो कुछ अच्छा भी होगा।
समाज और राजनीति में हो रही घटनाएं हमें प्रभावित करती हैं पर कृपया इन नकारात्मक समाचारों को अपने जीवन की सकारत्मक ऊर्जा को सोखने मत दीजिए।
सादर नमस्कार
चलिए आज की रचनाओं के संसार में
◆●◆
आदरणीया अनिता जी की अभिव्यक्ति

मिट गये वल्लि के पुतले
चंद श्वासों की कहानी,
किंतु जग अब भी वही है
है अमिट यह जिंदगानी !

●◆●

आदरणीय पुरुषोत्तम जी की लेखनी से

सब्र का जब बांध टूटा,
यूं हृदय से धैर्य का हाथ छूटा,
सुबकते नैन में ये भर गए,
जज्ब थे ये, अचानक फूटकर ये बह गए..


◆●◆


आदरणीय लोकेश जी की लिखी सुंदर नज़्म

न जाने
कितनी ही रातें गुजारी है मैंने
तेरे ख़्यालों में
उस ख़्वाब के आगोश में
जिसकी ताबीर* हो नहीं सकती
अक्सर आ बैठते हैं कुछ अश्क़
आँखों की मुंडेरों पर
◆●◆

आदरणीया संगीता जी की लेखनी से

ये एक उपहार है 
जिसके लिये प्रकृति ने तुम्हें चुना है
इसे सहेजना भी तुम्हारे बस में न है
बस, हो सके तो इसे महसूसना 
क्योकि
जिसकी भी आँखों से बहता है
अपनी आत्मिक तृप्तता को वही जानता है 


जंगल...पंकज भूषण पाठक
पेड़ों से बनता जंगल 
जंगल से होता मंगल 
आश्रित है जनजीवन 
सृष्टि का होता सृजन।



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और चलते-चलते
आदरणीया कविता रावत जी की विचारणीय लेखनी से

 न फूले तोरई, सदा न सावन होय, सदा न जीवन थिर रहे, सदा न जीवै कोय।" अर्थात् इस संसार में न तो सदा-सदा के लिए सावन  है, न फल-फूल, न कोई स्थिर है और नहीं जीवित रहता है। बाबजूद इसके मनुष्य प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है, 

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इस सप्ताह के हमक़दम का विषय

आज की प्रस्तुति आप सब को कैसी लगी
आप सबों की  बहुमूल्य 
प्रतिक्रिया की प्रतिक्षा में


17 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात सखी
    संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित प्रस्तुति
    पुरातन पोथी में पहले ही लिख दिया गया था
    कि कलिकाल मे अराजकता व लूट-पाट का वर्चस्व रहेगा
    बड़ी मछली का भोज्य पदार्थ है छोटी मछली
    सादर

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  2. जिससे नकारात्मकता आये उससे थोड़ी दूरी बनाने की कोशिश की जानी चाहिए
    क्या जरूरी है कि अखबार सुबह ही पढ़ी जाए
    बहुत बढ़ियाँ संकलन

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  3. आज की इस अनुपम संकलन में मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए हलचल और आदरणीय श्वेता जी का विशेष आभार।

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  4. आज के इस बेहतरीन संकलन में मेरी रचना का चयन मेरे लिये सम्मान की बात..... शुक्रिया आपका

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन संकलन
    उम्दा रचनाएँ
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. आम हो चुके मुद्दों पर ठिठककर विचार करने का एहसास दिलाती प्रस्तुति।
    चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।

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  7. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

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  8. वाह!!श्वेता ,बहुत खूबसूरत प्रस्तुति !!सभी चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई ।

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  9. बहुत ही सुन्दर संकलन श्वेता जी।

    जवाब देंहटाएं
  10. @न फूले तोरई, सदा न सावन होय, सदा न जीवन थिर रहे, सदा न जीवै कोय....इसको सत्य साबित करती ब्लागों की आज की स्थिति को प्राणवायु प्रदान करने की आपकी कोशिशों की जितनी सराहना की जाए कम है !

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  11. बहुत ही सारगर्भित बातों से सजी भूमिका के साथ सुंदर संकलन।सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।
    धन्यवाद

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  12. सुबह उठकर कुछ पल प्रकृति के साथ बिताएं और कुछ परम पिता के सुमिरन में..दुनिया तो सदा से ऐसी है ऐसी ही रहेगी..दृश्य के पीछे छिपे अदृश्य से दोस्ती बढ़ानी होगी..सुंदर संकलन रचनाओं का, आभार श्वेता जी !

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  13. सभी रचनाएं सुकून देने वाली हैं आभार

    जवाब देंहटाएं
  14. अखबार को अब सुबह का कलेवा न बना कर दोपहरी की चाय बनायें यानि पी तो पी नही तो चखी या आगे पीछे समयानुसार पी ली और सीधा मेरी तरह तीसरे पृष्ठ के बाद सरसरी निगाह से पढे और जो कुछ चित को आकर्षित करे उसे बिस्कुट समझ चाय मे हल्के से ड़ूबाडूबा कर प्रेम से गटक लें और चाय के साथ खत्म बात ।
    श्वेता सुंदर भुमिका सुंदर लिंक चयन सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  15. प्रिय श्वेता -- बहुत उम्दा संकलन | सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें |

    जवाब देंहटाएं

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