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गुरुवार, 5 जुलाई 2018

1084...बादल तेरे आ जाने से जाने क्यूँ मन भर आता है !

सादर अभिवादन।
आजकल सोशल-मीडिया की अनियंत्रित अराजकता हमें सोचने पर मजबूर कर रही है। मानव व्यवहार की बर्बर निरंकुशता गंभीर चिंतनीय बिषय बन गया है। सस्ते डेटा प्लान्स ने लोगों की सोशल-मीडिया तक पहुँच को आसान बना दिया है। इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन कुछ भी टाइप करके प्रकाशित करने पर आप ग्लोबल रायटर बन जाते हैं तो यह लाज़मी है कि इससे जुड़ी गंभीर जवाबदेही हम अवश्य समझें और अन्य लोगों को जागरूक करें। 

आइये आपको आज की पसंदीदा रचनाओं ओर चलें -       




तेरे हर गर्जन के स्वर में 
मेरी भी पीर झलकती है,
तेरे हर घर्षण के संग-संग 
अंतर की धरा दरकती है ! 
तेरा ऐसे रिमझिम रोना 
मेरी आँखें छलकाता है , 
बादल तेरे आ जाने से 
जाने क्यूँ मन भर आता है ! 





हुआ है 'इल्म' अब
इस वाकया का
और होने लगा है
एहसास
अपने 'वजूद' का!





चन्दन की खुशबू छोड़ गए
धानी चूनर धो गए
तुम आये अधरों पर बंधी
इंद्रधनुषी हंसी 
खोल गए




मेरी फ़ोटो

हैं हम सब के साझे सपने
गैर नहीं यहां सब हैं अपने ।
खुशियों से ये पलछिन बीते 
सावन से तो जुड़ी उम्मीदें ।।




भला हो ऐ मालिक, उस मिस्त्री का
न बनाया जिसने खून के रंगों को जुदा,
वरना लाल हिंदू, मुसलमां हरा और
सफेद ईसाई के ज़ख्मों की रंगत होती;
नयी इक जात हम बनाते, सभी मिलकर
फिर लड़ाई वतन में, लहू के रंगों की होती,

हम-क़दम के छब्बीसवें क़दम
का विषय...
........... यहाँ देखिए ...........


आज के लिये बस इतना ही 
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार। 
कल की चर्चाकार हैं - आदरणीया श्वेता सिन्हा जी। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

18 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात रवीन्द्र भाई
    ग्लोबल रायटर....
    अपने घर की व आस-पास की घटनाओं पर
    अपनी भड़ास निकालना
    विविध रचनाएँ
    पसंद आई
    सादर

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  2. शुभ प्रभात आदरणीय बढ़िया संकलन वर्तमान परिस्थितियों
    को देखकर मन क्षोभ से भर उठता है ऐसे में आपका प्रयास सराहनीय है।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात रवींद्र जी,
    सही और सार्थक सीख, अपने आस-पास की घटनाओं पर लिखना ही काफी नहीं शायद अब अपनी भूमिका भी तय करनी होगी कि तमाम बर्बरतापूर्ण और अमानवीय कृत्यों से किस प्रकार समाज की रक्षा की जाये। अपनी खोलो में सिमटकर चंद पंक्तियों में आक्रोश व्यक्त कर हम समाज के प्रति अपने दायित्वों से मुक्त नहीं हो सकते।
    विचारणीय भूमिका के बेहद सुंलर सारगर्भित रचनाओं का आस्वादन करवाने के लिए बहुत आभार आपका।
    सुंदर प्रस्तुति के बहुत बधाई एवं सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  4. सभी सम्मानित रचनाकारों को मेरा नमस्कार
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए रविंद्र जी को साहृदय धन्यवाद

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  5. बहुत सुंदर रचनाएं सही सीख देती हूई सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  6. सोशल-मीडिया की अनियंत्रित अराजकता के विषय को इंगित करती हुई सकारात्मक भूमिका के साथ सुन्दर प्रस्तुति रविन्द्र सिंह जी । सभी रचनाएं अत्यंत सुन्दर हैं मेरी रचना को शामिल कर मान देने के लिए हार्दिक आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह!!रविन्द्र जी ,बहुत सुंदर प्रस्तुति ..भूमिका ,विचारणीय है ..

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  8. सारगर्भित तथ्य है ये, सोशल मिडिया "बंदर के हाथ उस्तरा" जैसा,विनाश कारी संभावनाएं बढती जा रही है ।
    ना सेंसर ना अपारर्दिता,मूल्य ग्रहणिय भुमिका के साथ सुंदर रचनाओं का संकलन सभी रचनाकारों को बधाई

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  10. रविन्द्र जी की प्रासंगिक टिप्पणी और अमित जी के निश्छल उद्गार का अत्यंत आभार!परिमार्जन की परंपरा का प्रारंभ परिवार से ही होना चाहिए। बाकी कोई निदान नही।सभी अपने परिवार को संभाले समाज स्वतः कुसंस्कृतियों से मुक्त हो जाएगा। जब परिवार में ही मूल्य दम तोड़ने लगे तो फिर सब लफ़्फ़ाज़ी है। सुंदर रचनाओं के संकलन का साधुवाद!!!

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  11. शुक्रिया मित्रगणों ..आज का मंच कुछ भिन्न और उत्प्रेरक लगा ..रवींद्र जी का कथन उत्तम लेखन का संग्रह उस पर भाई अमित जी की अद्भुत व्याख्या और पूर्ण समर्थन देते विश्व मोहन जी के उदगार ...सब सारगर्भित और विचारणीय ..सिर्फ .सुनने पढ़ने की नहीं चिंतन मनन की
    बात ! अति आभार सभी का ..🙏

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  12. मन को प्रफुल्लित करने वाली रचनाएं हैं

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  13. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

  14. सोशल-मीडिया की अनियंत्रित अराजकता के विषय को रौशन करती हुई भूमिका के साथ सुंदर संकलन।
    आभार।

    जवाब देंहटाएं
  15. sadhana vaid5 जुलाई 2018 को 11:02 am
    खूबसूरत रचनाओं को संकलित किये हुए शानदार संकलन आज का ! मेरी रचना को आज के इस अंक में चुनिन्दा रचनाओं के साथ स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! !

    जवाब देंहटाएं

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