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शुक्रवार, 8 जून 2018

1057....कब्ज पेट का जैसा, दिमाग में हो जाता है, बात समझ से बाहर हो जाती है

धरती पर भगवान का दूसरा रुप कहलाते हैंं डॉक्टर।
सदैव ही उन्हें समाज में विशेष स्थान प्राप्त रहा है। अमीर हो या गरीब बीमारी में 
अपने इस भगवान को याद करते हैं।

बदलते परिदृश्य में डॉक्टरों और हॉस्पिटल से जुड़े अन्य जिम्मेदार ईकाइयों के द्वारा बीमारों और 
जरुरतमंदों के साथ किये गये व्यवहार ने सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या चिकित्सा 
सेवा से जुड़े लोग असंवेदनशील हो गये हैं?

हाल ही में झारखंड के लाईफ लाइन कहे जाने वाले रिम्स (राँची) हॉस्पिटल में मेडिकल स्टॉफ के 
द्वारा किये हड़ताल से  22 मरीजों की मौत हो गयी। इनकी माँगें स्वीकृत भी हो गयी और  
ये जश्न मनाकर काम पर वापस लौट आये पर जिन मरीजों ने इलाज़ के 
अभाव में असमय दम तोड़ दिया उनका क्या??
एक ज़रा भी मलाल नहीं इन्हें।
ये कैसी सेवा है मानवता की?

इस घटना से आहत मन अनगिनत प्रश्नों जूझ रहा है।
क्या एक डॉक्टर, नर्स या जीवनदाता हॉस्पिटल से जुड़े लोगों से हम यही उम्मीद रखते है?
क्या डॉक्टर बनने का उद्देश्य मरीजों से अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई का खर्चा वसूलना है?
दया और सेवा के लिए समर्पित लोगों के द्वारा ऐसी घटना कोई पहली नहीं है अनगिनत आंकड़े हैंं 
और इन आंकड़़ोंं में दिन-ब-दिन होती बढ़ोतरी गंभीर चिंता का विषय है।

सादर नमस्कार

मेरे विचारों की लेखनी को यही विराम देकर चलते हैंं आज की आपकी रचनात्मकता की यात्रा पर
🌸🔷🌸

आदरणीय विश्वमोहन जी की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति
कासे कहूँ हिया के हाल
धडके छतिया, फड़के अँखियाँ
एने ओने मन बउआत
सिसके सेनुर,कलपे कंगना
बहके अहक अहिवात
कासे कहूँ हिया की बात !
🔷🌸🔷

आदरणीया अनीता जी की बेहद सुंदर अभिव्यक्ति
सागर तपता है 

जब आत्मज्योति का पुष्प खिलेगा उस जल में
प्रीत की पवन बहेगी
उस पुष्प की महक
बिखरेगी चहुँ दिशाओं में
तपाये बिना जीवन का कोई रूप नहीं ढलता
तपाये बिना अहंकार नहीं पिघलता
🔷🌸🔷

आदरणीय ज्योति खरे जी की शानदार रचना
विकलांग
मेरी फ़ोटो
निकले थे 
गमझे में कुछ जरुरी सामान बांध कर   
किसी पुराने पेड़ के नीचे बैठकर 
बीनकर लाये हुए कंडों को सुलगाकर 
गक्क्ड़ भरता बनायेंगे 
तपती दोपहर की छाँव में बैठकर 
भरपेट खायेंगे
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आदरणीय पुरुषोत्तम जी की रचना
आज का दौर



संबंधों में खूश्बू की आस,
करीबी रिश्तों में भरोसे की तलाश,
घटता अपनत्व, टूटता विश्वास,
सब छोड़कर, सब पाने की होड़,
बारिश में दो बूंद की प्यास,
मिश्री की घटती मिठास,
अंजान राहों पे अंतहीन सफर,
सब कुछ सहेजा फिर भी उलझा सा,

न जाने किन गिरहों को खोलता इन्सान.....
🔷🌸🔷

आदरणीया अपर्णा जी की बेहद सुंदर रचना


माना अजनबी हूं अभी, मगर यकीं है मुझको
जाते हुये रोकोगे, ऐसे जज्बात सी कर जाऊंगा

तेरे दिल के कई जख्म, मुझे मेरे जैसे ही लगे
कुछ सुकूं में आये तू, ऐसी सौगात देकर जाऊंगा
🔷🌸🔷

 पढ़िये आदरणीया कुसुम दी की लेखनी से सरस रचना
गुजरिया


बांह चम्पई खन खनकत  चूरियां
लचकत कमर बांध करधनिया
केशरी लहंगा रतनार  चुनरिया
चलत  छमकत  पांव पैजनिया ।

🌸🔷🌸
और चलते-चलते
यहीं पर ‘उलूक’ 
की बक बक पटरी 
से उतरती हुई 
भी नजर आती है 
बात कब्ज से 
शुरु होती है 
वापस लौट कर
कब्ज पर ही 
आ जाती है 
प्रश्न उठ जाये 
अगर किसी क्षण 
दिमाग में हो रहे

🌸🔷🌸



हमक़दम के इस सप्ताह के विषय जानने के लिए
यहाँ देखिए

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अपने सुझाव अवश्य प्रेषित करें

आज के लिए आज्ञा दें।

--श्वेता सिन्हा

10 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात सखी
    उचित मुद्दा
    अस्पतालों में हड़ताल करने का
    नियम बना देना चाहिए
    क्या रहेगा नियम..
    यह चर्चा का विषय है
    सुन्दर रचनाएँ
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. अंतर्मन को आंदोलित करता आमुख! काम रोकने वाले हर ताल को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए. कार्य अवधि से बाहर विरोध हो. और इन नालायक नौकरशाहों से निजात कब मिलेगी? जब मांगे स्वीकार किये जाने लायक थी तो बिना हड़ताल किये ही क्यों नहीं मान लिया. सुनील जी के उलूक ने समाज पर कब्जा जमा लिया है. हडतालियो और बेवकूफ बाबुओं , दोनों पर हत्या का केस दर्ज होना चाहिए. तभी समाधान का संधान होगा, अन्यथा एक घटना मात्र! प्रस्तुति प्रशंसा के परे!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हा हा विश्व मोहन जी 'उलूक' को हो गये कब्ज को आप कब्जा बना दिये :)

      हटाएं
  3. मनु और मानवता इतिहास में दर्ज कहानियों की बात होकर रह गया है इस युग में
    बहुत बढ़ियाँ संकलन

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर प्रस्तुति। आभार श्वेता जी 'उलूक' के दिमागी कब्ज का जिक्र भी करने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  5. सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक हैं...सुंदर संयोजन के लिए बधाई..आभार मुझे भी शामिल करने के लिए..

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर संकलन के साथ प्रस्तुति.. बधाई

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत अच्छी भूमिका के साथ सार्थक हलचल प्रस्तुति ..
    सेवा का प्रयाय माना जाने वाला चिकित्सा कार्य इतना दूषित हो जाएगा, कभी किसी ने भी नहीं सोचा होगा। पीड़ित व्यक्ति के लिए उसका डॉक्टर किसी भगवान् से काम नहीं होता है, क्योंकि जीवन की डोर ही उस समय उसके हाथ में होती है। लेकिन आज जिस तरह की लापरवाही सामने आ रही है वह बेहद चिंताजनक तो है ही अक्षम्य भी है। निहित स्वार्थों के कारण कुछ चिकत्सकों ने इस पावन सेवा कार्य को बदनाम कर दिया है। समाचार पत्रों में आये दिन छपने वाले समाचार इनकी लापरवाही के उदाहरण मन को व्यथित करते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  8. सुंदर प्रस्तुति के साथ उम्दा लिंक संयोजन ।

    जवाब देंहटाएं
  9. कमाल की भूमिका
    सुंदर संयोजन
    सभी रचनाकारों को बधाई
    मुझे सम्मलित करने का आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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