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शुक्रवार, 25 मई 2018

1043..तप्त शिलाओं को सिक्त बूंदों से सहला

रचनाकारों की लेखनी समय -समय पर समसामयिक 
गतिविधियों पर,सामाजिक मूल्यों पर ताथ अन्य मुद्दों पर 
सक्रिय रही है।किसी भी विषय के संदर्भ में एक लेखक के 
विचार पक्ष या विपक्ष में हो सकते है पर लेखन के किसी भी 
जाति या धर्म से परे,निष्पक्ष,स्वतंत्र और व्यापक दृष्टिकोण 
से ही  सार्थक रचनात्मकता का जन्म होता है।

हाँ, यह सही है कि अपनी आत्मिक संतुष्टि के लिए लिखना पहली प्राथमिकता होती है पर शायद कुछ भी लिखने के पहले किसी भी 
लेखक को उस रचना के सकारात्मक और नकारात्मक 
प्रभाव के बारे में विचार कर लेना चाहिए।
 ||सादर नमस्कार ||

चलिए अब आपकी रचनात्मकता की दुनिया में 

आदरणीय ज्योति खरे जी
चाहती है नदी 
पहाड़ को चूमते बहना
और पहाड़ 
रगड़ खाने के बाद भी 
टूटना नहीं चाहता


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आदरणीया वसुंधरा पांडे जी
धुसर आकाश आँधी से घुटा-घुटा सा
आपस मे ख़ुसूर-फुसुर करते कमरे के परदे
अजीब हतासा से फड़फड़ा रहे
बाहर पीली भूरी रेत ही रेत छाई हुई
घुसर आकाश आंधी से घुटा-घुटा सा
ऐसे सांझ से उबरना मुश्किल
अकसर भीतर का घना अवसाद
सूरज की बुझती रोशनी के साथ


🔷💠🔷



आदरणीय पुरुषोत्तम जी


जा सागर से मिल, जा तू बूंदे भर ला,
प्यासी है ये नदियां, दो घूंट पिला,
सूखे झरनों को नव यौवन दे,
तप्त शिलाओं को सिक्त बूंदों से सहला,
बहता चल तू मौजों के साथ यूं ही....
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आदरणीय लोकेश जी


बिखर गई गुले-एहसास पे ग़म की शबनम
मिला रक़ीब बन के था जो मोतबर यारों

मिला नहीं है अपने आप से मुद्दत से नदीश
उलझ गया है वो रिश्तों में इस कदर यारों

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आदरणीया प्रियंका श्री जी
वो चार लोग क्या कहेंगे

पर वक़्त,
उस पल न था साथ,
पर कहती हूँ,
आप सब से,
मन की यही बात।
जो ठाना है ,
गर तुमने कुछ करने का,
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आदरणीया कविता रावत जी




मैं मेधावी छात्र योजना के अंतर्गत भी नहीं आता हूँ क्योंकि मेरा प्रवेश वर्ष 2016 में हुआ जबकि यह योजना 2017 शुरू हुई है। मेरी घर 
की माली हालत किसी से छिपी नहीं है। घर में पिताजी फलों का 
हाथ ठेला कर जैसे-तैसे घर चला रहे हैं और मैं अपना थोड़ा-बहुत 
खर्च अपनी पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर 
बड़े ही संघर्षपूर्ण ढंग से निकाल पा रहा हूँ।


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हम-क़दम के 20 वें अंक के लिए 
कृपया यहाँ देखें

आपके द्वारा सृजित रचनाओं का संसार कैसा लगा
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में


उम्मीद से भरी हर सुबह का आकाश चाहिए

न बुझे कभी, चीर दे तम ऐसा प्रकाश चाहिए

इसके बाद थोड़ा सा मुस्कुरा भी दीजिए

16 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    गहन सोच
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात, मेरी रचना को सम्मान देने हेतु बहुत बहुत धन्न्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. सस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग
    मुस्कान बिखरने आई हूँ
    बढ़ियाँ संकलन

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात..
    बहुत ही उम्दा प्रस्तुति ..।

    जवाब देंहटाएं
  5. रावत जी की "सार्वजनिक अपील" सभी तक पहुंचनी चाहिए...ज्यादा से ज्यादा शेयर करनी चाहिए.
    कोण जाने कब किस भामाशाह तक पहुँच जाये.
    सभी लिंक्स खुबसुरत हैं...उम्दा रचनाएँ सामिल की गयी है.

    जवाब देंहटाएं
  6. विचारणीय सार्थक भूमिका।
    हर रचनाकार का दायित्व है कि अपने लेखन को व्यक्तिगत पूर्वाग्रह और दुराग्रह से बचाये और छींटाकशी से ऊपल होकर लिखे, सुंदर कथन श्वेता ।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर संदेशात्मक भूमिका के साथ अच्छी लिंकों का चयन।सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवम् शुभकामनाएँँ।

    जवाब देंहटाएं
  9. उम्दा चयन
    उम्दा संकलन
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  10. उम्दा प्रस्तुति श्वेता जी संदेशनात्म्क संकलन

    जवाब देंहटाएं
  11. रचनात्मकता पर प्रस्तावाना में की गयी चर्चा उलझी हुई है,केवल संकेत किया गया है. रचना को मान्यता तभी मिलती है जब उसमें शब्द और भाव के साथ संवेदना का समावेश हो. आत्मकथ्य भी एक शैली है जिसमें प्रभावशाली सृजन हुआ है.
    आज के अंक में सुन्दर रचनाओं का समावेश है. चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  12. लाजवाब प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...

    जवाब देंहटाएं
  13. प्रिय श्वेता -- आज के लिंक बहुत अच्छे लगे | मेरी शुभकामनाये आपको और सभी रचनाकारों को | सस्नेह |

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत ख़ूब सभी को शुभकमाएँ

    जवाब देंहटाएं
  15. देर से उपस्थित होने के लिए हांथ जोड़कर क्षमा
    आदरणीया हलचल परिवार रचनाकारों के रचनाकर्म को दिल से प्रोत्साहित करता है
    साधुवाद
    सुंदर संकलन
    मुझे सम्मलित करने का आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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