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बुधवार, 23 मई 2018
1041..कलमकारों को मुक्त चिंतन के परिवेश के लिए...
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12 टिप्पणियां:
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पाँच लिंक्स की हलचल सुहावनी ख़ुशबू लिए सुंदर संयोजन कर रही है ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर संकलन रचनाओं का और आपका आभार मेरी रचना को यहाँ परस्तु करने के लिए ...
शुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएंइस बार आपने कलम पकड़कर कमर कसी है
बेहतरीन रचनाएँ...
सादर
सुप्रभातम्,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संदेशात्मक भूमिका लिखी है आपने पम्मी जी।
कलमकारों को मुक्त चिंतन के परिवेश के लिए कुछ करें..
बहुत बढ़िया👌👌
सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी।
सुंदर संकलन पढ़वाने के लिए आभार आपका।
अलग सा मार्ग प्रशस्त करती कुछ मौलिक चिंतन कलम कारों के लिये, सहज और सरस रचनाओं का चयन सशक्त प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनाकारों को बधाई।
वाह!!खूबसूरत भूमिका के साथ सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया अंक
जवाब देंहटाएंसुप्रभात पम्मी जी प्रथम मेरे लेखन को मान देने के लिये आभार ...उम्दा संकलन पढ़ने मैं सुकून का अहसास रहा
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भूमिका और प्रस्तुति आभार
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत सुंदर हलचल प्रस्तुति आदरणीया पम्मी जी की!
जवाब देंहटाएं'ये करें और वो करें
ऐसा करें वैसा करें
ज़िंदगी दो दिन की है
दो दिन में हम क्या क्या करें'....
चार पंक्तियों में बहुत कुछ कह गए नज़ीर बनारसी...
सच, यही लगता है बहुत बार....ना जाने क्यों, कितना भी दौड़ो वक्त के साथ, कमबख्त हाथ ही नहीं आता...
पर....हम भी इत्तफाक से ज़िद के मरीज हैं !!!
जिसे शौक हो,लगाव हो वह वक्त निकाल ही लेता है।
बहुत सुन्दर लिंक संयोजन....
जवाब देंहटाएंवाह ! खूबसूरत हलचल ! लाजवाब लिंक संयोजन ! बहुत खूब आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन , आपका आभार मेरी रचना को मान देने के लिये ...
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