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शनिवार, 12 मई 2018

1030... बहुएं





सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष

बेटियों को प्यार करना स्वाभाविक है
गर्भनाल का रिश्ता है
क्या समधन की बेटी को स्वाभाविक प्यार मिलता है!
आज हम बातें कर लेते हैं उनकी जो सजाती हैं
घर आँगन ड्योढ़ी को और उन्हें पुकारते हैं


क्यों लादे इतने नियम,क्यूँ छीनी आजादी,
घर छूटा, माँ-बाप छूटे,भाई-बहन,सहेलियां छूटी,
आजादी छीनी घूमने की,कही आने-जाने की,
पहनने की,हँसने-बोलने की,
नौकरी करने की,निर्णय लेने की,

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बहुएं आपके परिवार का हिस्सा है कामवाली नहीं: सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट के इस बयान के बाद देश के कई हिस्सों से महिलाओं ने इसका मजबूती के साथ सर्मथन किया है। कई महिलाओं ने कहा कि इस बयान से उन्हें काफी खुशी हुई क्योंकि इस बार भी हमेशा की तरह सुप्रीम कोर्ट उनके साथ खड़ा नजर आया।

बहुएं अब सास को दबाने लगी हैं


रेशम की तरह, आपस में उलझा हुआ। जिसे आसानी से सत्य या असत्य करार दे देना,
 बहू/बेटी/ माँ/सास की कोमल भावनाओं पर कुठाराघात होगा,
 क्योंकि यह कथनना तो पूर्णतः सत्य है ना ही असत्य। 
इसे समझने हेतु आइये जरा अपने दृष्टिकोण को विस्तृत रूप प्रदान करते हैं।
 कारण कि इनके मध्य जो विभाजन रेखा है वह कर्त्तव्य 
व अधिकार की प्राथमिकता से पृथकता प्राप्त करती है

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मेरे सम्मुख अब बोलने को कुछ न था शायद इसीलिए मेरे मुख से निकला-“भाभी अब कैसी हो। चाय पी लो फिर चलती हूँ।”
“जीजी पहले आप चाय पी लो ।ऑफिस से आने के बाद आपने भी तो नही पी।”
और अब मैं भाभी  के प्यार के सामने खुद को बौना पाने लगी।

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 प्रभा पर वज्र-सा गिर पड़ा—उसके हृदय के टुकड़े हो गये—सारी आशाओं पर पानी फिर गय। उसका निर्बल शरीर इस आघात का सहन न कर सका। उसे ज्वर आने लगा। और किसी को उसके जीवन की आशा न रही। वह स्वयं मृत्यु की अभिलाषिणी थी और मालूम भी होता था कि मौत किसी सर्प की भांति उसकी देह से लिपट गई है। लेकिन बुलने से मौत भी नही आती। ज्वर शान्त हो गया और प्रभा फिर वही आशाविह विहीन जीवन व्यतीत करने लगी

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फिर मिलेंगे....

हम-क़दम 
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम  अट्ठारहवें क़दम की ओर
इस सप्ताह का विषय है
इंतजार, इज़हार, गुलाब, ख़्वाब, वफ़ा, नशा
उसे पाने की कोशिशें तमाम हुई सरेआम हुई
उपरोक्त दो पंक्तियों 
को आधार मान कर रचना लिखनी है
सबको अपने ढंग से पूरी कविता लिखने की आज़ादी है
रचनाकारः रोहिताश घोड़ेला

आप अपनी रचना शनिवार 12  मई 2018  
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी 
सोमवारीय अंक 14 मई 2018  को प्रकाशित की जाएगी । 
रचनाएँ  पाँच लिंकों का आनन्द ब्लॉग के सम्पर्क प्रारूप द्वारा प्रेषित करें






12 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात दीदी
    सादर नमन
    वआआह...
    बेहतरीन प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभातम् दी:)
    वाह्ह्ह...वाह्ह्ह...बहुत-बहुत सुंदर रचनाएँ है दी सारी।
    बहुएँ.. क्या बढ़िया अंक लायीं है दी..लाज़वाब👌👌
    बहुत ही लाज़वाब प्रस्तुति है।
    आभार दी
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात,
    सुन्दर प्रस्तुती,
    आभार|

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। विशेषकर वीडियो। हर घर इसी तरह महके।

    जवाब देंहटाएं
  5. हमेशा की तरह अपने अलग अंदाज में प्रस्तुति लाई हैं आदरणीया विभा दी ! सबसे पहले तो विशेष आभार, मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी के लिए....पूजा उपाध्याय की कविताएँ, डॉ चेतना उपाध्याय का लेख,दीपशिखा पुंज द्वारा साझा किया गया राहत भरा समाचार, सिमी भाटिया की लघुकथा,साथ में खूबसूरत वीडियो क्लिप....कुल मिलाकर एक परिपूर्ण अंक। बहुत बहुत बधाई व धन्यवाद इस सुंदर प्रस्तुति के लिए !

    जवाब देंहटाएं
  6. सही में न पांच लिंक कुछ ख़ास है! अद्भुत प्रस्तुति !!!

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह!!बहुत सुंदर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर प्रस्तुति..
    खूबसूरत विडियों के साथ।
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  10. आपकी प्रस्तुति का अंदाज हर बार की तरह निराला और हृदय तक पैठता विषय वाह लाजवाब अद्भुत।
    सभी रचनाऐं बहुत गहरी और रिश्तों मे सुंदर रंग भर्ती।

    जवाब देंहटाएं
  11. सभी को प्रणाम,
    आजकल हमारे समाज मे स्त्री सम्मान को व्यवहारिक रूप मिलने लगा है।
    मुझे सबसे अच्छी बात ये लगी कि एक स्त्री; दूसरी स्त्री का सम्मान करना बखूबी सीख गयीं हैं ।
    पांचों लिंक्स अद्भुत हैं।

    ये कैसी दुविदा है कि मेरी ही रचना पर रचनाएं रची जा रही हैं और मैं ब्लॉगिंग के लिए समय नहीं निकाल पा रहा हूँ।
    मंगलवार के बाद आराम की संभावना है। इसके बाद जी भर कर ब्लॉगिंग कर पाऊंगा।

    जवाब देंहटाएं
  12. आदरनीय विभा दीदी -- सादर प्रणाम | देरी के लिए क्षमा प्रार्थी | आपके पिछले अंक में भी बिजली की वजह से अनुपस्थित रह जाना पड़ा | बहुओं को समर्पित ये खास दिन बहुत मुबारक है | अच्छा लगा कि बहुओं के लिए भी कोई आयोहन संभव है | इस अभिनव प्रस्तुति के लीये हार्दिक बधाई | और हृदयस्पर्शी वीडियो ने मन मोह लिया मैं भी शादी के बाईस साल से मेरे सास - ससुर के साथ रह रही हूँ | मेरा भी ऐसा ही अनुभव है कि मेरी माँ ने मुझे काम सिखाया पर सासु माँ ने मुझे सुदक्ष गृहणी बनाया | आज हमारा रिश्ता माँ बेटी जैसा है | बेहतरीन अंक की हार्दिक शुभकामनाये | सादर --

    जवाब देंहटाएं

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