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बुधवार, 4 अप्रैल 2018

992..जो घर जले, थे वो इंसान के ही..




।।प्रात: वंदन।।

आंखें नम है

आजकल हँसी नहीं आती है

मजहब,जात के झगड़े में ..

जो घर जले, थे वो इंसान के ही..

(भारत बंद के होने के दौरान हिंसा..)



पर कहते है न..

पिक्चर अभी बाकी है 

सो कुछ अच्छी होने के उम्मीद के साथ आज के लिंकों पर गौर करें...✍

🔹
आदरणीय के.सी.वर्मा ''कमलेश'' जी की रचना..

ना आई अब तक सदा ,उस मोड़ से,
जहां हुए थे हम जुदा, सब छोड़ के।
गमे जुदाई है इक  ,ज़हर ज़िन्दगी में,
होता है धीरे धीरे असर,ज़िन्दगी में।
सब कुछ रुक जाएगा, एकदम एक दिन,
साथ छोड़ देगी ,सांसों की हवा एक दिन।

🔹

आदरणीय संजय ग्रोवर जी, की रचना..




बनियानें चिथड़े-चिथड़े हो गई थीं। भला हो सलीके-से रखे, सस्ते में बनें पुराने कपड़ों और स्वेटरों का जिनमें वे छिप जातीं थीं। दोनों तरफ़ के दांतों में ..

🔹
आदरणीया नूपुर जी की रचना..




मुसलसल सफ़र में रहो ।

मंज़िल तक पहुंचो,

ना पहुंचो ।

चलते रहो ।

मील के पत्थरों से राह पूछो ।

बरगद की छांव में कुछ देर सुस्ता लो ।

🔹
आदरणीय कौशल लाल जी की रचना..



जैसे जैसे रात भींग रही है। एक ख़ामोशी की पतली चादर पसारती जा रही है। टिमटिमाते तारे जैसे  उसे देखकर अपनी आँखे खोलता और बंद करता है। बीच बीच में सड़कों पर दौड़ती गाडी की रौशनी जैसे पुरे क्षमता से इन अंधरो को ललकारती है और इनके गुजरते ही फिर वही 

साया मुस्कुराते हुए बिखर जाती है। 

🔹
आदरणीया श्वेता जी की रचना..



आरक्षण के नाम पर 

घनघोर मचा है क्लेश

अधिकारों के दावानल में

पल-पल सुलगता देश

लालच विशेषाधिकार का

निज स्वार्थ में भ्रमित हो

क्या मिल जायेगा सोचो?

दूजे नीड़ के तिनकों से,

चुनकर के स्वप्न अवशेष

🔹
और अंत करती हूँ आदरणीया कुसुम कोठरी जी के शब्दों से..
फूलों सी सुकुमार राधिके 
सपने सरस सजाओं 
पट घूंघट के खोल सुलोचनी
आनन चंद्र दिखाओ 

आनन चंद्र दिखाओ राधिके 

🔹

हम-क़दम का तेरहवें क़दम
का विषय...
...........यहाँ देखिए...........



।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह..✍

18 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    नेताओं की राजनीति में
    आम जनता पिस जाती है...
    आधार चाहे कुछ भी हो,
    तर्क भी चाहे कुछ भी हो!
    देश में कौन-सी ऐसी जाति होगी
    जो आज अपने समुदाय को मिलने वाले
    आरक्षण का लाभ नहीं उठाना चाहेगी।
    और ऐसी कौन-सी राजनीतिक पार्टी होगी
    जो आज आरक्षण समाप्ति के पक्ष में होगी?
    सादर

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    उत्तर
    1. आपने नब्ज़ पर हाथ रख दिया .
      उंगली उठाने से पहले हम सबको सोचना चाहिए .

      हटाएं
  2. मंज़िल तक पहुंचो,
    ना पहुंचो,
    चलते रहो।.....बढ़िया संकलन!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद विश्वमोहन जी .

      एक शेर याद आया ..

      "मेरी ज़िन्दगी इक मुसलसल सफ़र है,
      जो मंजिल पे पहुंचा तो मंजिल बढ़ा दी."

      : )

      हटाएं
  3. आदरणीय पम्मी जी,
    सुप्रभात्।
    चंद पंक्तियों में सारगर्भित समसामयिक भूमिका का उल्लेख किया है आपने। आम जनता तो सदा से ही स्वार्थ पूर्ति का सरल मार्ग रही है।
    बहुत अच्छी रचनाओं का सराहनीय संयोजन किया है आपने आज के अंक में।
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका अति आभार।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  4. हम बस चिंता कर सकते हैं जो हल निकाल सकते हैं उनके आगे बीन बजाने सी हालात हैं
    उम्दा प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  5. शानदार प्रस्तुति।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर प्रस्तुति ...सभी रचनाएँ एक से बढकर एक ..

    जवाब देंहटाएं
  7. धन्यवाद पम्मीजी . आपने अच्छा चित्र चुना कविता के लिए . नाम की वर्तनी सही कर दीजियेगा . नूपुरं होना चाहिए .

    चर्चा के सम्बन्ध में मेरा विचार यह है कि नेताओं को हर समस्या के लिए दोषी ठहरा कर हम अपने उत्तरदायित्व से मुक्त हो लेते हैं .

    वो बहकाते हैं तो हम बहकते क्यों हैं ?
    कहीं ऐसा तो नहीं हम भी चाहते हैं वही ??

    पम्मीजी और सभी रचनाकारों को बधाई .

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  8. पिछले दिनों जो कुछ घटित हुआ, दुखद तो था ही, आम जन-मन को भी व्यथित करता गया ! जिसका असर रचनाओं पर साफ़ दृष्टिगोचर हो रहा है !

    जवाब देंहटाएं
  9. बात कोई भी हो, मुद्दा कोइ भी हो बस हिंसा नहीं होनी चाहिए। आरक्षण का मुद्दा बोतल का जिन्न है कभी अंदर कभी बाहर। विचार अलग हो सकते हैं लेकिन हिंसक व्यवहार से कोई सहमत नहीं होगा।
    सुन्दर और समीचीन प्रस्तुति।
    सादर

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  10. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...

    जवाब देंहटाएं
  11. सुन्दर लिंक संयोजन आदरणीया पम्मी जी द्वारा. सार्थक भूमिका. विचारणीय एवं सामयिक रचनाओं का चयन अंक को प्रभावशाली बना रहा है.
    इस अंक में चयनित सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें.

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  12. बेहतरीन लिंक्स के साथ उम्दा प्रस्तुति .....👍

    जवाब देंहटाएं
  13. संवेदनशील अनुभूति देती भुमिका सामायिक समस्याओं पर चिंता और चिंतन देती सार्थक प्रस्तुति।
    मेरी रचना को सामिल करने के लिये तहे दिल से शुक्रिया, साथी चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं

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