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मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

991...मिटा सके जो वजूद हमारा जिंदगी की  औकात क्या है?


जय मां हाटेशवरी....
स्वागत है आप सभी का.....
हम आप सभी के सहयोग से  जल्द ही 1000  अंकों का सफर पूरा करने वाले हैं.....
बहुत आनंद मिलता है.....आप सभी का साथ पाकर....
हमारी  सोच को जो हिला न सके वो जज़्बात क्या है?
इन परेशानियों से जो हुयी हैं वो मुलाकात क्या है?
हम तो लिखने आयें हैं एक नई दास्तान धरती पर
मिटा सके जो वजूद हमारा जिंदगी की  औकात क्या है?
अब पेश है आज के लिये मेरी पसंद...


जिसका जितना आँचल था....
मीना कुमारी
मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली
होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में, सादा-सी जो बात मिली


रुका हुआ पंखा
 बलराम अग्रवाल
 “आजकल के बच्चों का कुछ भरोसा नहीं है… पता नहीं किस बात पर… !” कहते-कहते उनकी नजर मेरी नजर से टकरा गयी।
तो यह बात थी!!!—यह सुन, एकाएक ही मेरी आँखें उन्हें देखते हुए डबडबा आईं।

तो कहानी शुरू होती है....
देवांशु निगम
 तीसरा इन उपलब्ध पॉसिबल प्रॉस्पेक्ट में से काफ़ी ने इन्हें राखी के बंधन में बाँध लिया था । साथ ही दूसरे मोहल्ले और कॉलोनी के लड़कों से इनकी सुरक्षा का अनकहा ज़िम्मा भी इनके मज़बूत कंधों पर दे दिया गया था या इन्होंने ले रखा था । अब चूँकि इस तरह के ज़िम्मेदार अन्य मोहल्ले और कॉलोनी में भी  थे इसलिए और कहीं जहाँ भी इन्होंने दाल का कुकर चढ़ाया कोई ना  कोई सीटी निकाल भागा ।


सुकून नहीं संभलता
प्रतिभा कटियार
वो एक हाथ जो ठीक उस वक़्त काँधे पर महसूस होता है जब आप तन्हाइयों के रसातल में डूबते जा रहे हों उस हाथ की छुअन का जादू नहीं संभलता. इंतजार संभल जाता है,
बाट जोहना संभल जाता है, महबूब की एक नज़र नहीं संभलती,आंसू संभल जाते हैं, पीड़ा की तो जैसे आदत सी हो चली हो, लेकिन राहत भरा एक पल का साथ नहीं संभलता. दूर देश बैठे किसी की याद में होने वाली आवाजाही नहीं संभलती, उस देश की हवाओं में घुलकर आने वाली सांसों की जुम्बिश नहीं संभलती, चौदस का चाँद संभल जाता है, रातरानी की खुशबू संभल जाती है, दोस्त की हथेलियों में हथेलियाँ छुपा देना और चुपचाप साथ चलते जाने का सुख नहीं संभलता...



बिखरी लाली
पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
खेलती है लहरों पर किरणें,
या लहरों से कुछ बोलती हैं किरणें!
आ सुन ले इनकी बोली,
झिलमिल रंगों की ये बारात लेकर,
मीठी सी ये बात लेकर,
चल उस ओर चलें संग आलि!
चलों चुन लाएं, क्षितिज से वो बिखरी लाली.....



कमर कस लो कोई बाकी कसर ना रहे
शैल सिंह
ठोकरों ने जब स्वर्णिम अवसर दिया है
तो बांट रहे हो जहन को किन खेमों में
चमन सर्वोपरि बन्धु हमारे तुम्हारे लिए
सोचो कि हरदम सुन्दर पहर नहीं होता
चलो,गूनें,मथें लें संकल्प सदा के लिए


"तन्हाई रास आने लगी"
बस तू और ये इन्टरनैट
साथ रहे ......
तो समझो सब कुछ सैट
अब तो बस .…......
तुझ पर ही मन लगाने लगी,
तब से..........सच में........
तन्हाई रास आने लगी......!!!!

अब बारी है
हम-क़दम 
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम  तेरहवें क़दम की ओर
इस सप्ताह का विषय है
:::: उड़ान  ::::
:::: उदाहरण ::::
कब करेगा ये समाज
मेरे आन्तरिक गुणों का मूल्यांकन?
नारी हूँ मैं।
आकाश दिख रहा है 
विस्तार देख लेंगें
अब पंख मिल गये हैं
उड़ान भर लेंगें !!!!!!!!

आप अपनी रचना शनिवार 07  अप्रैल 2018  
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक 09 अपैल 2018  को प्रकाशित की जाएगी । 
रचनाएँ ब्लॉग सम्पर्क प्रारूप द्वारा प्रेषित करें

धन्यवाद



15 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात भाई कुलदीप जी,
    बेहतरीन प्रस्तुति...
    शानदार रचनाएँ..
    आभार...
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात बहुत सुन्दर प्रस्तुतीकरण |

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार....

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह!!बेहतरीन संकलन ।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन संकलन ।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर अंक आदरणीय।
    सारी रचनाएँ बेहद सराहनीय है।
    सुंदर अंक के लिए आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर प्रस्तुति..
    सभी रचनाकारों को बधाई
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  8. आज की सभी रचनाएँ बहुत सुंदर हैं। अच्छी गद्य रचनाओं को सामने लाने के लिए सादर धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  9. वाह सुंदर प्रस्तुति, बेहद शानदार रचनाऐं ।
    सभी चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  10. अति उत्तम प्रस्तुति....
    वाह।

    जवाब देंहटाएं

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