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शनिवार, 17 फ़रवरी 2018

946... काव्य-कथा



सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष

श्रव्य काव्य दो प्रकार का होता है, गद्य और पद्य।
पद्य काव्य के महाकाव्य और खंडकाव्य दो भेद कहे जा चुके हैं।
गद्य काव्य के भी दो भेद किए गए हैं- कथा और आख्यायिका।

उन्नीसवीं सदी में गद्य में एक नई विधा का विकास हुआ 
जिसे कहानी के नाम से जाना गया। बंगला में इसे गल्प कहा जाता है।
गल्प= गप भावपूर्ण या विचार-प्रधान

कहानी सुनने-सुनाने की भारतीय पद्धति को कथा कहते हैं


घर में बजी शहनाई , तब फिर बंटी मिठाई |
सुन्दर सलोनी मॉडर्न , बहू भी घर में आई ||
मम्मी के दुःख के दिन अब, ढलने लगे थे सुख में |
बहू नहीं बेटी है , हर वक़्त था यह मुख में ||



मोती कुत्ता है बाहर बैठा, उसकी सीधी पूंछ करो तुम,
पूरा जब हो काम तुम्हारा, तब ही आना पास मेरे तुम.
पति से जाकर के वह बोली, अब तुम बिना डरे सो जाओ,
आलस को है तुम तज करके, कल से स्वयं खेत में जाओ



और फिर जोर से चिल्लाया...
‘कुछ तो शर्म कीजिए, जानवर और इंसान में फर्क कीजिए
ऐसा वादा इंसानों में किया जाता है,
कह के कुछ और कुछ और किया जाता है



हम मौत से भाग रहे थे
एक दिन हमें अचानक मालूम हुआ
कि वो हमारे पीछे-पीछे चल रही थी
हमारा हर क़दम मौत के आगे था
और उसका हर क़दम हमारे पीछे



नहीं समय पर उठती थी वो, ना करती थी काम, 
नहीं समय पर पढ़ती थी वो, ना स्कूल का काम 
जब भी उसको काम बताओ बन जाती बीमार, 
हरदम नये बहाने गढ़ती, थी बेहद मक्कार 


फिर मिलेंगे .... ओह्ह ... थोड़ा तो ठहरिये

तुम मेरी जिंदगी हो...
और मै तुम्हारी याद ही सही...
पर वो जिंदगी भी क्या..
जिसमे मेरी जिंदगी तुम नही .
><
चलिए अब बारी है हम-क़दम के 
छठवें क़दम की ओर
हम-क़दम 
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम छठवें क़दम की ओर
इस सप्ताह का विषय है
:::: खलल ::::
उदाहरणः
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं 
चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता हैं 

मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नहीं कट सकता
कोई फव्वारा नही हूँ जो उबल पड़ता हैं 

कल वहाँ चाँद उगा करते थे हर आहट पर
अपने रास्ते में जो वीरान महल पड़ता हैं 

ना त-आरूफ़ ना त-अल्लुक हैं मगर दिल अक्सर
नाम सुनता हैं तुम्हारा तो उछल पड़ता हैं 

उसकी याद आई हैं साँसों ज़रा धीरे चलो
धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता हैं
-राहत इंदौरी

आप अपनी रचना आज 
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं।
चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक
19 फरवरी 2018  को प्रकाशित की जाएगी । 
इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी हेतु हमारे पिछले गुरुवारीय अंक 
11 जनवरी 2018  का अवलोकन करें

16 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात दीदी
    सादर नमन
    नई जानकारी दी आपने
    उत्तम प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. विभा दी,
    सुप्रभात।
    ज्ञानवर्द्धक भूमिका के साथ अति सराहनीय रचनाएँ है दी। सब एक से बढ़कर एक। एक विषय पर आपकी सबसे अलग प्रस्तुति हमेशा सराहनीय है।
    बहुत आभार दी।

    जवाब देंहटाएं
  3. चरणस्पर्श दीदी
    बेहतरीन संयोजन
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात दी,
    लेखन विद्या पर बहुत अच्छी प्रस्तुति..
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  5. ज्ञान वर्धक भूमिका के लिए आभार। सुन्दर रचनाओं का संकलन। हमेशा की तरह खास प्रस्तुति।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर काव्य कथाओं का संकलन.
    काव्य कथा लेखन विधा पर अच्छी प्रस्तुति .
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहद सुन्दर‎ प्रस्तुतीकरण.

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  9. आदरणीय विभा दीदी -- सादर प्रणाम | आपकी विशेष प्रस्तुती का बहुत इन्तजार रहता है | आज काव्य कथा के रूप में काव्य में गुंथी कई कहानिया मिली | जीवन के कई रंगों से सुसज्जित ये काव्य बहुत ही अच्छा लगा | लोक गीतोंमे भी अनेक कथाएं और जीवन के संदर्भ मिलते हैं उन्हें भी जीवन का कथा काव्य कह सकते हैं | आज के सभी सहभागी रचनाकारों को मेरी शुभकामनाएं और आपको भी इस सराहनीय नितांत नयी कल्पना से भरे संयोजन के लिए आभार और बधाई | इस अंक के बहाने स्कूल के दिनों में प्राथमिक कक्षा में पढ़ी साहित्य सौरभ आदरणीय मैथिलीशरणशरण गुप्त जी की प्रसिद्ध रचना स्मरण हो आई जिसमे यशोधरा से उनका पुत्र कहानी सुनाने की जिद करता है | करुना से सराबोर ये काव्य साहित्य जगत में अमर काव्य कथा का अनुपम उदाहरण है | विनम्रता पूर्वक गूगल से साभार ले इसे यहाँ लिखना चाहूंगी |---

    माँ कह एक कहानी।”
    बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?”
    “कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी
    कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?
    माँ कह एक कहानी।”

    “तू है हठी, मानधन मेरे, सुन उपवन में बड़े सवेरे,
    तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभि मनमानी।”
    “जहाँ सुरभि मनमानी! हाँ माँ यही कहानी।”

    वर्ण वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,
    हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।”
    “लहराता था पानी, हाँ-हाँ यही कहानी।”

    “गाते थे खग कल-कल स्वर से, सहसा एक हंस ऊपर से,
    गिरा बिद्ध होकर खग शर से, हुई पक्षी की हानी।”
    “हुई पक्षी की हानी? करुणा भरी कहानी!”

    चौंक उन्होंने उसे उठाया, नया जन्म सा उसने पाया,
    इतने में आखेटक आया, लक्ष सिद्धि का मानी।”
    “लक्ष सिद्धि का मानी! कोमल कठिन कहानी।”

    “मांगा उसने आहत पक्षी, तेरे तात किन्तु थे रक्षी,
    तब उसने जो था खगभक्षी, हठ करने की ठानी।”
    “हठ करने की ठानी! अब बढ़ चली कहानी।”

    हुआ विवाद सदय निर्दय में, उभय आग्रही थे स्वविषय में,
    गयी बात तब न्यायालय में, सुनी सभी ने जानी।”
    “सुनी सभी ने जानी! व्यापक हुई कहानी।”

    राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?
    कह दे निर्भय जय हो जिसका, सुन लँ तेरी बानी”
    “माँ मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी|
    कोई निरपराध को मारे तो क्यों अन्य उसे न उबारे?
    रक्षक पर भक्षक को वारे, न्याय दया का दानी।”
    “न्याय दया का दानी! तूने गुनी कहानी।”

    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अहो आश्चर्यम् !!! कितने अचरज की बात है रेणुजी कि कल दोपहर मैं बोर्ड के कई साल पुराने हिंदी प्रश्नपत्रों को खंगाल रही थी। जल्दी ही यहाँ दसवीं और बारहवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाएँ शुरू होने वाली हैं और अपने विद्यार्थियों को बहुत सारा अभ्यास कराने के लिए मेरे पास उन कक्षाओं से संबंधित जो भी पठन पाठन सामग्री है, उसमें से अपठित गद्यांश और पद्यांश मैं छाँट रही थी। एक प्रश्नपत्र में मुझे इस कविता का अंतिम भाग अपठित पद्यांश में मिला। यह कविता बहुत वर्षों पहले पढ़ी थी और कुछ लगभग स्मृति से लुप्त हो चुकी थी। मैंने सोचा कि समय मिलते ही इस संपूर्ण कविता को खोजकर अपने संग्रह में लिखूँगी.... कल सोचा और आज इसे यहाँ आपसे पाया !!! आभार कैसे करूँ ? कभी कभी दिल यूँ भी मिल जाया करते हैं....

      हटाएं
  10. आदरणीया विभा जी,
    सादर नमन। 'काव्य कथा 'लिंगों के संग्रह ने पुस्तक पठन का सा आनंद प्रदान किया । इस विधा में रचनात्मकता की प्रेरणा भी दी । आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  11. आपके ब्लॉग आकर बहुत अच्छा लगा, बेहतरीन रचना!

    Saral Gharelu Upay

    जवाब देंहटाएं
  12. आदरणीय विभा दीदी,बहुत सुंदर संकलन लाई हैं आप काव्य कथा का। अनेक अनेक आभार ! आपके इस संकलन पर रेणुजी की टिप्पणी से मेरे मन की भी एक साध पूरी हो गई । सारा श्रेय आपको ! सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  13. प्रिय मीना बहन -- मैंने ये टिपण्णी बड़ी विनम्रता से लिखी थी और थोड़ा डरकर भी | पर ये काव्य कथा '' माँ कह एक कहानी
    राजा था या रानी ?'
    मेरे मानस से कभी विस्मृत नहीं होती | ना जाने क्यों बुद्ध मेरे सर्वाधिक प्रिय विषय हैं | और ये कविता साहित्य में अमर है | आपने खुले दिल से इसका स्वागत किया बहुत आभारी हूँ | सच में कभी - कभी दिल यूँ भी मिल जाया करते हैं | कितना अच्छा लगता है ना ? मेरा प्यार |

    जवाब देंहटाएं

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