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गुरुवार, 30 नवंबर 2017

867...तुम सूरज न बन पाओ तो बादल बन के रहना.....

सादर अभिवादन। 
आज 30 नवम्बर अर्थात इस साल का 334 वां दिन।  
अब 31 दिन और शेष हैं 2018 का इंतज़ार ख़त्म होने में। 

समाचार आया है कि अँधेरे में मोबाइल का उपयोग करने वालों की 
आँखों की रौशनी जा सकती है अर्थात अँधा होने का ख़तरा !

आजकल आधार को लेकर अब भी भ्रम बरकरार है।  विभिन्न  योजनाओं के साथ आधार को लिंक करना सरकार ने अनिवार्य कर दिया और 31 दिसंबर 2017 की तारीख़  भी तय कर दी। अब इसे माननीय सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका के ज़रिये सुनवाई के लिए लाया गया है। संभव है अगले कुछ दिनों में माननीय सर्वोच्च न्यायालय कोई फ़ैसला दे। 
इस बीच ख़बर है कि लोगों को फ़र्ज़ी एसएमएस (SMS ) के ज़रिये ऑनलाइन ठग संदेश भेज रहे हैं कि आप अपना आधार कार्ड लिंक कीजिये। इस सम्बन्ध में LIC का ज़िक्र आया है जिसका नाम ठग उपयोग कर रहे थे।  
अब ऑनलाइन ठगी की घटनाऐं निरंतर बढ़ रहीं हैं अतः सावधानी बरतें और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले का भी इंतज़ार कर सकते हैं। 

चलिए अब आपको ले चलते हैं आज की पाँच पसंदीदा रचनाओं की ओर -

आदरणीय राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"  जी की नई रचना के संदेश पर मनन कीजिये - 




तुम सूरज ना बन पाओ,
तो बादल बन के रहना,
शत्रु ना बनना सूरज का
दोस्त बन के ही रहना। 

तुम चमको कभी शिखर पर
बाधाएं तो आएँगी,
कर्म न छोड़ना तुम कभी,
बाधाएं हट जाएँगी। 


शिक्षा एक ऐसा बिषय है जिसे हम जीवनभर सीखते ही रहते हैं। कुछ ऐसा ही प्रेरक संदेश इस ख़बर में बता रहे हैं यश रावत जी - 




तोशिको ने बताया कि वह 8 साल पहले काशी आयी थी लेकिन यहां आने से पहले वह काठमांडू, नेपाल घूमने आयी थी और नेपाली भाषा सीखने लगी, लेकिन जब उसे पता चला कि नेपाली भाषा का मूल संस्‍कृत है, तब उन्‍होंने संस्‍कृत सीखने का फैसला किया। उन्‍हें बताया गया कि अगर संस्‍कृत सीखना है तो भारत में काशी से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती है। तोशिको 2008 में काशी आयी और संस्‍कृत महाविद्यालय में प्रमाणपत्रीय पाठ्यक्रम में दाखिला लिया। 

अपने तीखे, तल्ख़, धारदार व्यंग के लिए मशहूर आदरणीय  गोपेश जसवाल जी का ताज़ा व्यंगात्मक संस्मरण  पढ़िए -


मेरी फ़ोटो


कई बार मैंने सोचा है कि मैं बच्चों को एअरपोर्ट तक छोड़ आऊँ पर उन दुष्टों को तो ऐसे कामों के लिए टैक्सी करना ही पसंद है.
पिताजी की ही तरह कार बैक करना मुझको आइन्स्टीन की थ्योरम जैसा कठिन लगता है. हमारे घर के गेट के बगल में एक पेड़ है. उस दुष्ट को पता नहीं क्यों मेरी बैक होती हुई कार से गले मिलना बहुत भाता है. अब तक कार और पेड़ की प्रेम लीला की वजह से मेरी चार बार बैक लाइट बदल चुकी हैं. डेंट पड़ने पर तो मैंने उन्हें ठीक करवाना भी छोड़ दिया है.

पेश है आदरणीया अभिलाषा जी की एक विचारशील  रचना जो स्त्री-पुरुष मानसिकता पर गंभीर सवाल खड़े करती है-  


समा लेती है
स्त्री 
उसे अपने अंदर 
तन से,
मन से,
अर्पण से,
फिर भी 
पुरुष दम्भी 
और 
स्त्री कुंठित क्यों???

आज पहली बार इस मंच पर हम परिचय करा रहे हैं नए ब्लॉगर शोएब अख्तर जी का।  पढ़िए उनकी यथार्थपरक रचना -


 कितना सुखद अहसास है
एक भर्ती बीमार के लिए
लो हो गई छुट्टी अस्पताल से
छुट्टी!
एक हकीकत है जिंदगी की
एक दिन हो जाएगी छुट्टी
    इस जिंदगी से    



आज बस इतना ही।  
आपकी उत्साहवर्धन करती अनमोल प्रतिक्रियाओं और उपयोगी सुझावों की प्रतीक्षा में। 
फिर मिलेंगे। 
रवीन्द्र सिंह यादव 

                                           

16 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात बहुत ही सुंदर चर्चा आनंद आ गया आभार आपका उ

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  2. शुभ प्रभात
    बहुत सुन्दर
    साधुवाद
    सादर

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  3. सुप्रभात.. हमेशा की तरह कई रंगों को समेटे हुए मनमोहक प्रस्तुति विशेष कर .. विरासत (गोपेश जसवाल)जी की व्यंग्य रचना को पढ़ना मन आह्रलदित हो उठा, नए प्रतिभाओं को मौका देना ये वाकई बहुत बड़ी चेष्टा है, इसके लिए आप बधाई के पात्र हो ..शोएब जी की छुट्टी ने प्रभावित किया ...अन्य सभी रचनाएं भी अच्छी है.. अंततः...आधार को लेकर आपकी वर्तमान जानकारी अहम है,आप बेहतर प्रस्तुता है समय की नब्ज को जांचना आपको बखुबी आता है...सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं...!!

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति रवींद्र जी।

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  5. हमेशा की तरह बहुत सुन्दर प्रस्तुति रवींद्र जी

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  6. मेरी रचना को पांच लिंकों का आनंद पर शीर्षक बनाकर जो सम्मान आपने दिया है उसके लिए आभार रवींद्र जी, उम्दा प्रस्तुति के लिए बधाई। इस चर्चा में सम्मलित सभी रचनाकारों को भी बधाई।

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  7. आधार से सम्बंधित जानकारी के साथ बहुत सुंदर प्रस्तुति..
    एक से बढ़ कर एक रचनाएँ सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।धन्यवाद

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  8. Dhanyawad manyavar mujhe sthan dene ke liye.
    Sabhi rachnakaron ko badhai.
    Rachna karna nisandeh mushkil kaam hai par chayan karna bed mushkil. Main to har nayi kriti padhkar sochti hi rah jati hun ki ye kitni achhi likhi gayi hai fir inme se kuchh ka chayan to asambhav hai mere liye.
    Aap sabka prayas sarahniya hai. Halchal ka nirantar vistaar ho yahi shubhkamna hai.

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  9. आदरणीय रविंद्र जी प्रणाम ! आपकी भूमिका की सराहना क्या करूँ ? निरुत्तर हूँ ! आपकी सोच व तर्कसंगत विचार जिसका जवाब नहीं। सारी रचनायें पढ़ीं रम गया उन्हीं में। संकलन भी बेहतरीन ,सादर

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  10. आदरणीय रविन्द्र जी -- आज का सार्थक जानकारी से भरा संकलन देख पढ़ बहुत अच्छा लगा | भूमिका में आधार और मोबाइल पर उपयोगी जानकारी मिली | इसे पढ़कर मुझे यद् आया --मेरे मेल बॉक्स में मैंने भी ऐसे कई मेल देखे पर गंभीरता से नहीं लिया | लिंक की सभी रचनाये पढ़ी | सभी बहुत अच्छी हैं -- पर व्यंग बहुत ही उल्लेखनीय है | सभी सम्मिलित रचनाकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें |आपको आजके लिंक के सफल संयोजन पर हार्दिक बधाई |

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  11. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण एवं उम्दादा लिंक संकलन....

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