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शनिवार, 28 अक्टूबर 2017

834... आस्था


सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष

दशहरा दीवाली छठ बताते हैं
बुराई से लड़ने की ताकत
और जीत दिलाती है
हमारी संस्कृति और हमारी

आस्था


झौंक देंगे पूरे शहर को  आग में
रहबरों का ही आसरा है उनको
इसलिये बड़ा हुआ है हौंसला
कोई उनका क्या बिगाड़ सकता है।


धर्म के नाम पर धोखा


लाचारों को गुमराह कर,
अपना साम्राज्य बना रहे हैं,
भक्ति के नाम पर ,
विवेक मिटा सही गलत की समझ मिटा रहे,
यह कैसा धंधा भगवान के नाम पर,
मासूम जिंदगियां लगा रहे दांव पर,


अनास्था के दौर में आस्था


यदि जडता परम्परा है तो परिवर्तन आधुनिकता है ।
परिवर्तन ही बनी बनाई धारणाओं का खंडन करके प्रेम के पक्ष मे माहौल तैयार करता है ।
जी हां प्रेम युद्ध का प्रतिपक्ष है ।
इस कृति मे महज विरोध और विश्लेषण भर नही है
 प्रेम का  सकारात्मक अनुचिन्तन है


प्रयोगवादी कविता


मैं आस्था हूं
तो मैं निरंतर उठते रहने की शक्ति हूं
...    ...    ...
जो मेरा कर्म है,उसमें मुझे संशय का नाम नहीं
वह मेरी अपनी सांस-सा पहचाना है


फूस के छप्पर पर


समझ से परे
जिंदगी के कई मोड़
जी चुके कई पल, कई लम्हें, कई कथाएं
लताओं के लिए अथाह सागर
पूरा जीवन सिमटता नजर आता


><><

फिर मिलेंगे




11 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात दीदी
    सादर नमन
    हमेशा की तरह वेहतरीन प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभप्रभात आदरणीया विभा दी,
    हमेशा की तरह आपकी एक विषय पर चुनी हुई सुंदर पठनीय रचनाएँ बहुत अच्छी लगी। सुंदर संयोजन।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात।
    सादर नमन आदरणीया दीदी।
    आस्था जैसे गंभीर बिषय पर आपने अलग -अलग दृष्टिकोण की रचनाओं का सुंदर संकलन तैयार कर सुधि पाठकों को चिंतन के नए आयाम दिए हैं। आपका बिषय आधारित साप्ताहिकप्रस्तुतीकरण जोकि शोधपरक होता है अत्यंत प्रभावशाली है। गंभीर रचनाओं के मर्मज्ञ पाठक आपके अंक का इंतज़ार अवश्य करते होंगे।
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं।
    आभार सादर।

    जवाब देंहटाएं
  4. सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय आंटी बहुत खूब...हमे हमेशा आप की प्रस्तुति में एक नया रंग व आनंद प्रतीत होता है....
    आभार आप का....

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीया ,
    आज का अंक अच्छा लगा।

    जवाब देंहटाएं

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