बहुत हो गई बात-चीत...अब आज की पढ़ी रचनाओं पर एक नजर...
शब्द हो गये मौन....श्वेता सिन्हा
कौन से जाने शब्द गढ़ूँ मैं
तू मुस्काये पुष्प झरे फिर,
किन नयनों से तुझे निहारूँ
नेह के प्याले मधु भरे फिर।
घट पीयूष....पुरुषोत्तम सिन्हा
अंजुरी भर-भर छक कर मै पी लेता,
दो चार घड़ी क्या,मैं सदियों पल भर में जी लेता,
क्यूँ कर मैं उस सागर तट जाता?
गर पीयूष घट मेरी ही हाथों में होता!
लहरों के पीछे क्यूँ जीवन मैं अपना खोता?
मानवता और मजहब....रिंकी राऊत
उसकी बहन उसे बस पर चढ़ाने आई, शायद वो पहली बार
अपने आप यात्रा कर रही थी...उसने बहन से कहा कण्डक्टर को
बता दे कि मुझे अन्धन्य मोड़ के पास उतार दे.....
छठ पर्व का अवसर है....असर तो होना ही चाहिए हम पर भी
भोजपुरी भाषा में भी कुछ रचनाएँ...
हमरी ताउम्र की पतझर भइली.....डॉ .राकेश श्रीवास्तव
ना पसीजी कसम ओ विनती से ;
रउवा काहे कठोर हो गइली .
प्रेम की ज्योति बुझइलू रउवा ;
आग हमरी घंघोर हो गइली .
रउवा कोंपल नई उगा लेबू ;
हमरी ताउम्र की पतझर भइली .
जबे बेटी फुदुकते आ.. सटावे गाल से गाले .....सौरभ
फलनवा बन गइल मुखिया रङाइल गोड़ माथा ले
बनल खेला बिगाड़े के.. चिलनवा ठाढ़ लाठा ले
बड़ा अउलाह झामा-झम भइल बरखा सनूखी में
दलानी से चुल्हानी ले अशरफी लूटु छाता ले !
सखी श्वेता जी बता रही हैं
छठ पर्व का उद्गम व रीति-रिवाज....
छठ : आस्था का पावन त्योहार....श्वेता सिन्हा
लोक आस्था के इस महापर्व का उल्लेख रामायण और महाभारत में भी मिलता है।ऐसी मान्यता है कि आठवीं सदी में औरंगाबाद(बिहार) स्थित देव जिले में छठ पर्व की परंपरागत शुरूआत हुई थी।
चार दिवसीय इस त्योहार में आस्था का ऐसा अद्भुत रंग अपने आप में अनूठा है।यह ऐसा एक त्योहार है जो कि बिना पुरोहित के सम्पन्न होता है।साफ-सफाई और शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है।घर तो जैसे मंदिर में तबदील हो जाता है।घर की रसोई में लहसुन-प्याज दिवाली के दिन से ही निषिद्ध हो जाता है।
घर की हर चीज नहा-धोकर पूजा में सम्मिलित होने के लिए तैयार हो जाती है।
नहाय-खाय यानि त्योहार के प्रथम दिवस पर , व्रती महिला भोर में ही नहा धोकर पूरी शुचिता से लौकी में चने की दाल डालकर सब्जी और अरवा चावल का भात बनाती है। सेंधा नमक और खल में कूटे गये मसालों से जो प्रसाद बनता है उसका स्वाद अवर्णनीय है।
आज के लिए इतना ही
आज्ञा दें यशोदा को
सुप्रभात आदरणीय दी:)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सार्थक संदेश दिया है आपने, जुआ खेलने जैसी बेकार की प्रथाओं का कोई अर्थ नहीं।
महापर्व छठ के रंग में रंगी सुंदर रचनाएँ एवं गीत अति मनमोहक है।आप सभी को इस पावन त्योहार की हार्दिक शुभकामनाएँ मेरी।
और दी विशेष आभार आपके इतने सारे मान के लिए,आपके मार्गदर्शन में अवश्य हम नयी जिम्मेदारी निभा पायेगे।
मेरी रचनाओं को मान देने के लिए तहेदिल से बहुत बहुत आभार दी।
सभी साथी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंछठ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं। आदरणीया श्वेता जी का हार्दिक स्वागत है पांच लिंकों का आनंद परिवार में। आज के विचारणीय अग्रलेख के लिए आदरणीया यशोदा बहन जी को हार्दिक बधाई। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं। सभी रचनाएं अपना प्रभाव छोड़ती हुईं। आभार सादर। नई कार्यक्रम सारणी का स्वागत है। आदरणीया पम्मी जी को सभी मिस कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संदेश दिया है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर छट पर्व की शुभकामनाएं....
जवाब देंहटाएंछठ की छटा ही निराली है...
जवाब देंहटाएंहमें तो प्रसाद में ठेकुआ स्वादिष्ट लगता है...
शुगर होने के बावजूद दो पीस तो खा ही लेते हैं
महाव्रती महिलाओं को नमन...
सादर....
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति । सुंदर रचनाओं के साथ साथ बेहतरीन रचना-सी भूमिका यानि सोने में सुहागा । यही इस मंच की विशेषता है । सभी रचनाकारों को बधाई । बहन पम्मीजी के लौटने का इंतजार है ।
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जवाब देंहटाएंआदरणीया दीदी प्रणाम आज का अंक विशेष लगा, आभार "एकलव्य"
बहुत शानदार प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुतिकरण सुन्दर लिंक संकलन...
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