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शनिवार, 30 सितंबर 2017

806... विजयादशमी की ढ़ेरों शुभकामनाओं



सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष

यूँ तो कई समर हुए है ,
जीवन की गति देखकर ,
पर हर समर में उसकी आखरी मुहोब्बत ,
उसकी आखरी चूभन है|


आखरी उम्मीद


यह एक अजीब सी स्थिति थी । उस व्यक्ति को समझ नहीं आ रहा था
कि वह पानी पीये या उसे हैण्ड पम्प में डालकर चालू करे ।
उसके मन में तमाम सवाल उठने लगे, अगर पानी डालने पर भी पम्प नहीं चला ।
अगर यहाँ लिखी बात झूठी हुई और क्या पता जमीन के नीचे का पानी भी सूख चुका हो ।
लेकिन क्या पता पम्प चल ही पड़े, क्या पता यहाँ लिखी बात सच हो,
वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे ?


मेरी आखरी घड़ी


वक़्त ने कहाँ था की रूक जाऊंगा दो पल
मैंने कहाँ टी गुज़र जा; ये उनकी गुज़ारिश हैं...
बड़े सजके सज़दे किए औरो के लिए उन्होनें
मुझसे परे हों गएं यहीं अपनी रंजिश हैं...


अलविदा-ब्लाग-साथीयों


मुझे बहुत दूख है की ईतनी जलदी जाना पड रहा है।
सायद उस समय कमेंट पढने के लीये मेरे पास ईंटरनेट कनेक्शन नही हो।
मै कीसी के लीये सायद आसा और कीसी के लीये निराशा हूं…
दूखी हो के नही जा रहा हूं। और ना ही अपने मन से।


><><



विभा रानी श्रीवास्तव
स्त्री होना गर्व रहा सदा



शुक्रवार, 29 सितंबर 2017

805....कितने आसमान, किसके आसमान

सादर अभिवादन
माह सितम्बर का सूर्य
अस्ताचल की ओर...
.....
संगम दो उत्सवों का कल
देवी विसर्जन व दशहरा
एक साथ..
......
एक बार फिर कुआंरी पूजन
औेर कन्या भोजन..
.......
आज है मेरी पसंद...
खड़ी-पड़ी आकृतियाँ
इंसानी सी शक्लों की
झोंकें हैं अपने को
अपनी अपनी लय में,
भर भर आँखों से
कराने को निर्जीव देह
का अग्नि स्नान चिता पर

हर युग में परीक्षा मेरे अस्तित्व की है
सीता मैं राम की,अग्नि स्नान किया
द्रौपदी मैं,बँटी वस्तु सम पाँच पुरुष में 
मैं सावित्री यम से ले आयी पति प्राण,


ज़िन्दगी की किताब के पन्ने.. लोकेश नदीश
गूंजने लगी हैं कान में 
वो तमाम बातें 
जो कभी हमने की ही नहीं 
नज़र आई कुछ तस्वीरें 
जो वक़्त ने खींच ली होगी 

कलियों का मुस्कुराना....अज्ञात
आज़ादियाँ कहाँ वो, अब अपने घोसले की;
अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना;

लगती हो चोट दिल पर, आता है याद जिस दम;

शबनम के आँसुओं पर कलियों का मुस्कुराना;



किंकर्तव्यविमूढ....पुरुषोत्तम सिन्हा
रच लेता हूँ मन ही मन इक छोटा सा संसार,
समय की बहती धारा में मन को बस देता हूँ उतार,
सरसराहट होती, नैया जब बहती बीच धार,
निरुत्तर भावों से मैं फिर देखता, समय का विस्तार!

बदल गये हो......अमित जैन 'मौलिक'
डबडबाती कोरों 
से भी देखा,
दिखते तो हो तुम!
पर वैसे नही 
जैसे दिखते थे
संभवतः तुम 
बदल गये हो
हाँ!! तुम 
बदल गये हो।



उलूक का पन्ना....डॉ. सुशील जोशी
टुकड़ा टुकड़ा 
फटने के लिये 
चाहते हुऐ भी 
बट जाना 
हर किसी 
की सोच के 
अनुसार 
उसके लिये । 

आज्ञा दें यशोदा को







गुरुवार, 28 सितंबर 2017

804.....छोटी छोटी बातें ,बड़ी बनती गयीं....

सादर अभिवादन 
दुर्गाष्टमी के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाऐं। 
"हम पंछी उन्मुक्त गगन के पिंजरबद्ध न रह पायेंगे" 
- डॉक्टर शिवमंगल सिंह "सुमन"

 आज प्रस्तुत हैं छह लिंक आपकी सेवा में -
पढ़िए आदरणीय  पंकज "प्रखर" जी का नारी शक्ति के सम्मान में विशेष लेख -

क्योंकि नारी सनातन शक्ति है और ये सामान्य जीवन में देखने में भी आता है की स्त्री अपने जीवन में इतने सामाजिक दायित्वों को उठाकर पुरुष के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चलती है | यदि उन दायित्वों का भार केवल पुरुष के कंधे पर ही डाल दिया जाए तो पुरुष मझदार में ही असंतुलित होकर गिर पढ़े |

आदरणीया निवेदिता श्रीवास्तव जी की जीवन के प्रवाह को 
अभिव्यक्त करती उत्कृष्ट रचना -


छोटे छोटे पल ,पलक से झरते रहे
छोटी छोटी बातें ,बड़ी बनती गयीं
निगाहें व्यतीत सी ,छलकती रहीं
यादें अतीत सी ,कसकती ही रहीं

पेश है जखीरा डॉट कॉम की नायाब पेशकश -

सोच रहा है इतना क्यूँ - शाहीद कमाल ….देवेंद्र गहलोद / 

 सोच रहा है इतना क्यूँ ऐ दस्त-ए-बे-ताख़ीर निकाल

तू ने अपने तरकश में जो रक्खा है वो तीर निकाल 

जिस का कुछ अंजाम नहीं वो जंग है दो नक़्क़ादों की 

लफ़्ज़ों की सफ़्फ़ाक सिनानें लहजों की शमशीर निकाल 

 

पाबंदियों का दंश झेलती बेटियों की आवाज़ को 
सशक्त अभिव्यक्ति दे रही हैं आदरणीया अपर्णा बाजपेयी जी -

ओ बेआवाज़ लड़कियों ! …. अपर्णा बाजपेयी 

बेआवाज़ लड़कियों !
उठों न, देखो तुम्हारे रुदन में........
कितनी किलकारियां खामोश हैं.
कितनी परियां गुमनाम हैं
तुम्हारे वज़ूद में.
तुम्हारी साँसे
लाशों को भी
ज़िंदगी बख़्श देती हैं....

नारी जीवन में सामाजिक वर्जनाओं ने कितनी गहरी जमा ली हैं अपनी जड़ें , महसूस कीजिये आदरणीया पूजा शर्मा राव जी की प्रहारक  रचना में-
तुमने कहा …..पूजा शर्मा राव
तुमने कहा 
लड़की हुई है 
और लिख दी 
एक अदृश्य 
काली स्याही से 
मेरी तक़दीर

बाल कवियत्री ऋतु पंचाल की ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति पेश की है "मेरी धरोहर" ब्लॉग पर आदरणीया यशोदा अग्रवाल जी ने जोकि 

अनेक सवालों को लेकर उपस्थित है -

हो गई हूँ, मैं जागरुक आज, 
जान गई हूँ, स्वार्थी है ये समाज, 
दोगले तर्कों से पूर्णतया संतप्त - 
घर में दुख हो तो मेरी बदकिस्मती होती है! 
अगर घर में आयें खुशियां, 
तो क्यों नहीं मेरी खुश-किस्मती होती? 


आज बस इतना ही। 
आपके अनमोल सुझावों की प्रतीक्षा में।
फिर मिलेंगे।

बुधवार, 27 सितंबर 2017

803.. हर शहर का आजकल मौसम बदला है


मांगल्यम  सुप्रभात

अथ श्री दुर्गा महासप्तमी 

तुम्हीं स्वाहा, स्वाधा और वष्टाकार हो
स्वर भी तुम्हारे ही रुप में निहित है
नित्य अक्षर प्रणव में आकार, उकार और मकार
 इन तीनों मात्राओं में तुम्हारी ही स्थिति है।

आप सबकी आमद के इन रचनाओं को
 पढ़िए और उभरते रचनाकारों की रहनुमाई और हौसला आफ़ज़ाई कीजिए

हर शहर का आजकल मौसम बदला है
रवायत और ज़दीदियत का  संगम है
पर...खूब खरा रंग निखरा ...




आईये आज इसी माहौल की शुरुआत करते है.
प्रस्तुत लिंको से  ब्लॉग के नाम क्रमशः
इस प्रकार से पढ़े ..



बस थोड़ी देर और ये नज़ारा रहेगा,
कुछ पल और धूप का किनारा रहेगा।
हो जाएगें आकाश के कोर सुनहरे लाल,
परिंदों की ख़ामोशी शाम का इशारा रहेगा।



"और वे जी उठे" !
मैं 'निराला' नहीं 
प्रतिबिम्ब ज़रूर हूँ 
'दुष्यंत' की लेखनी का 
गुरूर ज़रूर हूँ 
'मुंशी' जी गायेंगे मेरे शब्दों में 
कुछ दर्द सुनायेंगे 

ट्रोल-नाके से गुज़रने का अनुभव !
सोशल मीडिया पर टहल रहा था।अचानक कई जगह अलग-अलग वैरायटी की गालियाँ दिखाई दीं।
मन ख़ुश हो गया कि हम किसी दूसरी दुनिया में नहीं पहुँचे हैं।यहाँ भी हमारे गली-मुहल्ले का-सा अपनापा है।
वही तू-तू,मैं-मैं,वही मौलिक अभिव्यक्ति।गालियों के मामले में क्या पढ़े-लिखे और क्या अनपढ़ !
इस कला में सभी दक्ष दिखते हैं।सोशल मीडिया अब इसके लिए कोचिंग सेंटर
का काम कर रहा है।लोग यहीं निपट रहे हैं,निपटा रहे हैं।
वेस्ट-मैनेजमेंटका सबसे बढ़िया उदाहरण है यह।
हर प्रकार का कूड़ा यहाँ खप जाता है।
वो भी बिलकुल मुफ़्त में।अन्तर्जाल
में गालियों पर शोधपत्र छापे जा रहे



आज जो जोगन गीत वो गाऊं.
अधरों के सम्पुट क्या खोलूं ,
मूक कंठों से अब क्या बोलूं.
भावों की उच्छल जलधि में,
आंसू से दृग पट तो धो लूँ .


किस्सा दर्द का है फिर भी सुनाता हूं इसे गुनगुना कर ।

वो रूठ कर खुश हो ले, मैं भी खुश होता हूँ उसे मनाकर ।

एक रात के मुसाफिर से तू इजहार-ए-मोहब्बत न कर ,


सुबह होते ही चला जाऊंगा मैं तो तुझे रुलाकर ।


समय के साथ हम  सभी रचनाकार और  बढेंगे समीक्षा होनी ही चाहिए..
💭✍

।। इति शम।।

आभार 

पम्मी सिंह


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मंगलवार, 26 सितंबर 2017

802...शक्तिस्वरूपा मां दुर्गा की आराधना महिलाओं के अदम्य साहस, धैर्य और स्वयंसिद्धा व्यक्तित्व को समर्पित है.


जय मां हाटेशवरी....
शक्तिस्वरूपा मां दुर्गा की आराधना महिलाओं के अदम्य साहस, धैर्य और स्वयंसिद्धा व्यक्तित्व को समर्पित है. शक्ति की पूजा करनेवाला समाज में महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किसी विडंबना से कम नहीं. हर महिला एक दुर्गा है. उसमें वही त्याग, करुणा, साहस, धैर्य और विषय परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने की
ताकत है. वह न सिर्फ स्वावलंबी है, बल्कि परिवार और समाज को भी संवारती है.
समय कुछ कम था....
 कुछ अधिक नहीं पढ़ा....
पर पांच रचनाएं....तो मिल ही गयी....


माँ ...
सब सो जाते तब सोती, पर सबसे पहले उठती माँ
चिंतन मनन, नसीहत निश्चय, साहस निर्णय, कर्मठता
पल-पल आशा संस्कार, जीवन में पोषित करती माँ

चंद्रघंटा माँ ( कुण्डलिया )
घंटे का आकार,  चंद्रघंटा कहलाये
अस्त्र शस्त्र दस हाथ,पुष्प उज्ज्वल अति भाये
माँ से पा लो शांति,करो मत तेरा मेरा
सरिता करे अर्पण,  दिया जो मैया तेरा।।

कहीं लंका ना लगा दे BHU का ये ‘कन्या पूजन...खुशदीप
नवरात्र चल रहे हैं. गुरुवार 28 सितंबर को अष्टमी पर कन्या पूजन होना है. लेकिन बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में शनिवार रात को पुलिस के ‘पुरुष शूरवीरों’ ने एक अलग तरह का ही ‘कन्या पूजन’ किया, छात्राओं पर लाठियां बरसा कर. विडंबना देखिए, एक तरफ हज़ारों किलोमीटर दूर संयुक्त राष्ट्र में सुषमा स्वराज दुर्गा की
तरह गरज रही थीं, ठीक उसी वक्त बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के मुख्य गेट पर ‘लाठी चलाओ, बेटी भगाओ' का ‘पराक्रम’ दिखाया जा रहा था. ये दृश्य देखकर महामना पंडित  मदन मोहन मालवीय की आत्मा भी धन्य हो गई होगी जिन्होंने 101 साल पहले वसंत पंचमी के दिन बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की नींव रखी थी.

सुनो लड़कियों अब सुधर जाओ ------------ mangopeople
                         आज के समय में तुम्हारे विरोध प्रदर्शनों का केवल राजनैतिक स्तेमाल ही होगा | तुम्हारे मुद्दे कही पीछे छूट जायेंगे बाकी सरकार और विपक्ष अपनी राजनीति चमकायेंगे | सब के सब वही पुरुषवादी सोच के है जिसके खिलाफ तुम लड़ रही हो | ये कभी तुम्हारी बात नहीं समझेंगे आज जो तुम्हारे साथ है वो
कल गद्दी पर बैठते ही तुम्हारे खिलाफ होगा और जो आज तुम्हारे खिलाफ है वो गद्दी जाते ही तुम्हे पुचकारने आ जायेंगे | समाज प्रशासन और राजनीति इन में सो कोई भी तुम्हारी मदद नहीं कर सकता इन समस्याओ के लिए क्योकि ये समस्याए उन्ही की पैदा की गई है , वो तुम्हारी रक्षा उससे क्या करेंगी , वो तुम्हे ही सुरक्षा के
नाम पर कैद कर जायेंगी | कुछ किया भी तो वो ज्यादा प्रभावी नहीं होगा , एक सड़क पर पुलिस बैठेगी तो गली नुक्कड़ पर छेड़ी जाओगी , हिम्मत करके हर छेड़ने वाले को सबक खुद सिखाओगी तो हर लफंगे में डर बैठेगा | अपनी रक्षा करने का आत्मविवास और हिम्मत आएगी तो एक सड़क एक गली नहीं हर जगह सुरक्षित रहोगी  और हमेशा रहोगी |

पूरा हो जाये एक चक्र ......
शायद अगले ही पल
दम घुट जाये और
सांसों से आजाद हो जाए
वो डगमगाती नन्ही सी बाती
और पूरा हो जाये एक चक्र ......

दुस्साहस
क्योंकि अगर सामने से भगाऊंगा तो मेरे नाम होगा और उन लड़कों की ऊपर महफ़िल जमी है।  वह लोग एक आध घंटे में यहाँ आएंगे।  तुम छिपी रहना और मैं खिड़की खुली छोड़ दूंगा जिससे वह समझेंगे की तुम खुद भाग गयी हो। "
"फिर काका आप को तो कुछ नहीं करेंगे ?"
"मेरी चिंता छोडो बेटी , ये गुजरी जिंदगी कितने पाप होते हुए देख चुकी है।अपनी बेटी तो न बचा सका। दूसरी बेटी की जिंदगी अब अपने हाथ से  बचा लूँ तो अहोभाग्य


धन्यवाद...

सोमवार, 25 सितंबर 2017

801....एक दीपक रात भर जलता रहा

सादर नमस्कार
मैं ये सोचती हूँ
इससे अच्छा कोई अभिवादन नहीं
आज अचानक मैं..क्यों
भाई ध्रुव जी अपरिहार्य करणों से प्रवास पर हैं.....
प्रस्तुति बनाने की शैली नही आती उनके समान 
फिर भी कोशिश करती हूँ..बताइएगा.... 
मैं पास हुई या फिर फेल
चलिए देखते हैं आज क्या है...

और तो और..
उँगलियाँ मेरी..
करते करते टाईप 
बहक-बहक सी 
जाती थी.. 
झिड़कने पर 
कहती थी उँगलिया..
जो मेरे मन में आ रही.. 
जा रही उसी अक्षर पर..

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हरसिंगार... श्वेता सिन्हा
भोर किरण को छूकर चूमे
दूब के गीले छोर,
शापित देव न चरण चढ़े
व्यथित छलकती कोर,
रवि चंदा के मिलन पे बिछड़े
खिले है हरसिंगार।




मित्रता... नूपुरम
तुमने मुझे 
कुछ कम पाया
और जताया,
रंग तुम्हारे फीके हैं,
और कई जगह दरार है,
कुछ करो ।


क्या एक बेटी को बचा नहीं सकते....ऋतु पंचाल
बहुत अत्याचार तुम्हारा सह चुकी, 
जो कहना था वो मैं कह चुकी, 
अब मुझे और न सताना, 
मुझे दोबारा न पड़े, ये बताना। 


बस, यूँ ही....मीना शर्मा
एक दीपक रात भर जलता रहा,
तमस की तकदीर फूटी, बस यूँ ही !!!

राह तक पापा की, बिटिया सो गई,
रोई-रोई, रूठी-रूठी, बस यूँ ही !!!


कहानी है मेरी पड़ोसन की....... सुधा सिंह
कहने लगा मुझसे-
आप अपने काम से काम रखो 
आप जब घंटों लगी रहती हो फोन पे 
अपनी सखियों के संग 
तो क्या मैंने कभी डाला है 
आपके रंग में भंग 
आप कौनसा दादी की बात सुनती हो


चुप सो जा मेरे मन ...... सुधा देवरानी
रात छाई है घनी ......
पर कल सुबह होनी नयी,
कर बन्द आँखें , सब्र रख तू ;
मत रो ,मुझे न यूँ सता.......
चुप सो जा.......
मेरे मन.......
चुप सो जा.....!!!

आज बस
कहते हैं न, कापी किसी की..
और लिखे कोई और..
ये पन्ना श्रीमान जी ने खोला था
दो रचनाओं के लिंक रखे थे..
किसी क्लाईन्ट का फोन आया

उन्हें बिलासपुर जाना पड़ा..
कह गए देख लेना...
सो देख ली उन्हें...
य़शोदा ..