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गुरुवार, 14 सितंबर 2017

790.......हिंदी हमारी भावनाओं की आत्मा है...

सादर अभिवादन। 

14 'सितम्बर' अर्थात 
''हिंदी-दिवस''  
सभी हिंदी-प्रेमियों को हिंदी-दिवस की 
शुभकामनाऐं। 
   भारतीय संविधान द्वारा स्वीकृत 22 भाषाओं में हिंदी का विशिष्ट स्थान है फिर भी इसे संविधान द्वारा राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा नहीं दिया गया।संविधान सभा द्वारा 14 सितम्बर 1949 को हिंदी भाषा को राजभाषा के रूप में स्वीकृत किया।   हिंदी आज भी राजभाषा है जो उत्तर भारत के अधिकांश प्रदेशों में आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकृत है।  दक्षिण भारत से हिंदी के प्रति  विरोधी स्वर उभरता रहता है जिसके स्थानीय कारण हैं। विश्व स्तर पर आज हिंदी के प्रति सम्मान बढ़ा है जो हमारे लिए गौरव का बिषय है। 
    हिंदी को आज लचीला और लोकप्रिय बनाने की महती आवश्यकता है। नई  पीढ़ी  मानक हिंदी लिखने और समझने में अरुचि दिखा  रही है जोकि चिंतनीय बिषय है। दूसरी भाषाओँ के प्रचलित शब्दों को अपनाने में कोताही करना छोड़ना होगा। अँग्रेज़ी में लाठी (हिंदी )+चार्ज़ (अँग्रेज़ी )= लाठीचार्ज़ बन गया ,लेंटर्न को हमने लालटेन बना दिया ,बन्दूक की नली साफ़ करने वाले तार PULL THROUGH को हमने  फुलट्रू  बना दिया।                       
     ऐसे ही आजकल दिल्ली के स्थानीय लोगों से सुनता हूँ "मेरे घर अभी भतेरे दोस्त रक्खे हैं।"   यह वाक्य मानक हिंदी में अस्वीकार्य है फिर भी इसे हिंदी में बोलना कहा जाता है।  मैंने पहली बार "भतेरे" शब्द सुना और पता लगा कि यह "बहुतेरे" का अपभ्रंश है।  
                इसी तरह ग्वालियर (.प्र.) में ऐतिहासिक क़िले पर "सास-बहू का मंदिर "नाम से प्रसिद्द मंदिर है दरअसल यह "सहत्रबाहु का मंदिर" है। अपभ्रंश नया शब्द बन जाता है। अतः भाषा में लचीलापन और नए शब्दों को जोड़ने की प्रक्रिया ज़ारी रहनी चाहिए। 
             हिंदी में नुक्ता को लेकर बड़ा विवाद है लेकिन  कदम (एक पेड़ ) और क़दम (चलते समय दो पैरों के बीच की दूरी)  को कैसे स्पष्ट किया जा सकता हैइसी तरह ज़ंजीर (ZANJIR), जज़्बा (JAZBA) के उच्चारण को नुक्ते के साथ ही उचित ध्वनि के साथ उच्चारित किया जा सकता है। 

चलिए अब आपको ले चलते हैं 
आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर -      

पढ़िए आज हिंदी- दिवस पर 
डॉ. ''हरीश कुमार'' जी 
की विशेष 
प्रस्तुति  

    बचपन से लेकर आज तक कितनी यादें कितने अनुभव और कितनी संवेदनायें इस भाषा की चाशनी में ही तो डूबी है।
जैसे शरीर के भीतर एक निर्मल आत्मा होती है 
उसी प्रकार हिंदी हमारी भावनाओं की आत्मा है 
इसलिए 
'राष्ट्र' भाषा 
कहलाती है। 
इस तरह के शोर और अफवाहें फैला करती हैं कि 
हिंदी भाषा का अस्तित्व संकट में है ,पर ये एक कोरी कल्पना
से अधिक कुछ नहीं।

"मन के पाखी" में पढ़िए प्यारा सा कटाक्ष
हिंदी
साधुवाद बहन श्वेता को
बूढ़ी हो गयी है राष्ट्रभाषा
पूछ रहे अंतिम अभिलाषा
पुण्य तिथि पर करेंगें याद
सबसे प्यारी अपनी हिंदी थी।



जीवन के गूढ़ अर्थों की ओर इंगित करती आदरणीया 
 ''रेणु बाला'' जी 
एक हृदयस्पर्शी बोध-कथा जैसी  रचना- 

                 





        पेड़ ने पूछा चिड़िया से....... रेणु बाला

चिड़िया बोली '' जीवनपथ की मैं अनत यायावर - 
तृप्ति - अमृत घट लाती भर - भर ,
अम्बर की विहंगमता नापूं नन्हे पंखों से -
 छूती विश्व का परम शिख्रर ;
काल के माथे पर लिखा -ये कलरव अजर – अमर है
    कविता , वाणी और वीणा में जो नित नए स्वर रचता है  !!

पढ़िए आदरणीया  
''अनामिका घटक'' जी 
की एक भावविभोर कर देने वाली उत्कृष्ट रचना

      ख्वाव तेरे किरचियाँ बन ........ ...

"अनामिका घटक"

          ख़्वाब तेरी किरचियाँ बन आँखों को अब चुभने लगी 

गम की आँधियाँ इस तरह ख्वाबों के धूल उड़ा गए 

मंज़िल पास थी रास्ता साफ था दो कदम डगभरने थे 

गलतफहमी की ऐसी हवा चली सारे रास्ते धुंधला गए


साहित्य में नए प्रयोग ज़रूरी हैं। पेश है 
आदरणीया 
''अर्चना चावजी'' 
की अनूठी प्रस्तुति


"रूको,तुम्हारे जूते में अब भी मेरा पैर नहीं आता ..... 
हाथ में ले लेने दो .....
.चलना तो है ही पीछे-पीछे ...
शुरू से ही पीछे जो रह गई हूं..... :-("
.ऐसे ही किसी टुकड़ा कहानी से 
जो  जाने कब पूरी होगी ...:-(

2-
चलो खींच दो  अब वो ऊपर से अटकी चुनरी....... 
उचक-उचक थक चुकी ....
दूसरे रंग मैच भी तो नहीं करते इस चणिया चोली से .....
फ़िर कहोगे - ऐसे ही बैठी हो तब से ...?... :-P
. ऐसे ही किसी टुकड़ा कहानी से - जो  जाने कब पूरी होगी ...

ब्लॉग "मेरी धरोहर" पर  
आदरणीया  
''यशोदा अग्रवाल'' जी  
द्वारा प्रस्तुत नामचीन शायर 'फ़ैज़ अहमद' ''फ़ैज़''  की अनुपम कृति - 

 दोनों को अधूरा छोड़ दिया.....फैज अहमद ''फैज''


काम इश्‍क में आड़े आता रहा

और इश्‍क से काम उलझता रहा

फिर आखिर तंग आकर हमने

दोनों को अधूरा छोड़ दिया  



हमेशा की तरह आपके मौलिक सुझावों और प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में। 
फिर मिलेंगे। 

16 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    एक जानदार प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर नमन आदरणीया बहन जी।
      आपके स्नेह और सहयोग के बिना यह संभव न था।
      आभार सादर।

      हटाएं
  2. वाह..
    विश्व हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ
    आदर सहित

    जवाब देंहटाएं
  3. आनन्द आ जाता है आपकी प्रस्तुति देखकर रवीन्द्र जी। हिन्दी दिवस की सभी को शुभकामनाएं।

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    उत्तर
    1. सादर प्रणाम सर।
      जब आप मेरे नाम के साथ "जी" जोड़ते हैं तो जुड़ाव कम महसूस होता है।
      कल आपका "मिग बज़" को दिया साक्षात्कार पढ़ा।
      बहुत प्रेरक और बेबाक है।
      सादर।
      हिंदी-दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं।

      हटाएं
  4. वाह्ह...शानदार संकलन,सुंदर संयोजन,बहुत ही लाज़वाब रचनाएँ और सारगर्भित आपके विचार। बहुत सुंदर अंक रवींद्र जी।बधाई स्वीकार करें।
    सभी चयनित रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएँ।
    दी आपका बहुत बहुत आभार मेरी रचना को मान देने के लिए:))

    जवाब देंहटाएं
  5. शुभप्रभात....
    सुंदर संकलन....
    आभार आप का....

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
    हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  7. रवींद्र जी द्वारा प्रस्तुत भूमिका हिंदी एवं अन्य भाषी के लिए उपयोगी है। इस चर्चा में सम्मलित सभी सारगर्भित रचनाओं के रचनाकार को हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई। हमसभी को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामना।

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  8. जी,नमस्कार..बहुत सुंदर संकलन
    प्रस्तुत भूमिका चर्चा के साथ सुझाव सभी के लिए उपयोगी है।सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामना।

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  9. बहुत सुंदर रचनाओं से सजा अंक हलचल का....आदरणीय यशोदा दीदी व रवींद्रजी, बहुत बहुत धन्यवाद इन उम्दा रचनाओं से एवं उनके रचनाकारों से मिलवाने हेतु । सभी को बधाई एवं शुभकामनाएँ ।

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  10. आदरणीय रविन्द्र जी ------ सर्वप्रथम मेरी ओर से आपको ओंर सभी साहित्य प्रेमी मित्रों को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें | आज के लिंकों का अवलोकन किया | बहुरंगी रचनाएँ बेहद सार्थक , सरस और मन को छू लेने वाली थी | सभी रचनाकारों को बधाई और शुभकामनाएं | भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय है | सबसे बड़ी बात कि आप हिंदी के मानक रूप को लेकर ना केवल सजग हैं बल्कि उस पर सार्थक चिंतन भी करते हैं | इस चिंतन का नितांत अभाव पाया जाता है | मैं इस बात के लिए आपकी प्रशंसा करना
    चाहूंगी कि आप बड़ी विनम्रता से त्रुटियों को संवारने का भी ज़ज्बा रखते हैं | शब्द नगरी में सबसे पहले आपने मुझे मेरी टंकण में
    अशुधि से अवगत करवाया था | ये सच्चे साहित्य साधक की पहचान है | हिंदी में नुक्ते पर बहुत उपयोगी जानकारी हैं | कम से कम हिंदी लेखन से जुड़े लोगों को नुक्ते का प्रयोग जरुर सावधानी से करना चाहिए |हिंदी भारत के माथे की बिंदी है - पर मात्र ये प्रचारित करने की बजाय भावी पीढ़ी में हिंदी के पठन - लेखन के प्रति रूचि जगाना सबसे महत्वपूर्ण है | आज के संयोजन में मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभारी हूँ आपकी |

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  11. बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति उम्दा संकलन....
    हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं...

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  12. आदरणीय ,रविंद्र जी प्रणाम आज का अंक गहन मंथन एवं तार्किक विश्लेषण का परिणाम है आप जैसे बुद्धिजीवी लेखकों की समाज को आवश्यकता है जो प्रमाणिकता के पश्चात् ही अपने विचारों को एक नया आयाम देते हैं। आप सभी गणमान्य पाठकों से अनुरोध करता हूँ कि रचनाओं का सही विश्लेषण करें और उचित तर्क और सलाह भी दें न कि मिथ्या प्रशंसा कर लेखकों को भ्रमित करें, क्योंकि सही निंदा ही एक प्रगतिशील लेखक की लेखनी के उन्नति का मूल है एवं रचनाकारों से निवेदन है कि वे पाठकों के सही आलोचनाओं का स्वागत करें और अपने ज्ञान व लेखनी के महत्व को समझे न कि इसको अपने सम्मान से जोड़कर देखें और मैं अधिक नहीं कहना चाहता क्योंकि यहाँ सभी तर्कशक्ति से परिपूर्ण हैं यह भी सत्य है कोई इस संसार में पूर्ण नहीं है सभी जीवन भर सीखते हैं यही मानव होने की प्रवृति है सभी रचनायें सुन्दर ''हिंदी दिवस'' की हार्दिक शुभकामनायें ,आभार ,"एकलव्य"

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