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गुरुवार, 7 सितंबर 2017

783......ज़ुल्म की हर इंतिहा, इक हौसला बन जाएगी........

सादर अभिवादन!    
आजकल देश की हवा को कई मुद्दे लगातार गर्म बनाये हुए हैं।  
बाढ़ का तांडव ,सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन की  कमी से बच्चों की मौतें, लम्पट बाबाओं के कारनामे, नोटबदली की सफलता-असफलता , 2022 के लिए सिद्धि-संकल्प ,पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें , 
रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थी संकट , 
डोकलाम में मिली सफलता के बाद ब्रिक्स में भारत का रुतबा। 
इन सबके बीच जलता हुआ मुद्दा है 
पत्रकार-लेखिका गौरी लंकेश की निर्मम हत्या। 
असहमति और आलोचना अब डरकर बैठ जाए क्या ? सृजन से जुड़े हम सभी एक आपसी रज़ामंदी से ही देश में ख़ुशनुमा माहौल का  निर्माण करते हैं साथ ही विभिन्न मुद्दों पर अलग राय रखते हुए सद्भाव से  एक ठहराव में गुंथे हुए हैं जिसे देश कहते हैं।  यह देश हम सबका है किसी एक की बपौती नहीं है।  यह देश संविधान से चलता है किसी  संकुचित सोच से नहीं। किसी धार्मिक विश्वास से नहीं।   
धर्मान्धता और कट्टरता जब सर चढ़कर बोलती है तब अलगाव और नफ़रत का भाव खाद-पानी ले रहा होता है। आज रंग ,भाषा ,त्यौहार,खानपान ,संगीत ,साहित्य ,सिनेमा ,कलाकार ,पत्रकार ,बुद्धिजीवी ,लेखक ,चिंतक  आदि सब बंटे हुए नज़र आ रहे हैं। दरअसल यह मानसिक  संकीर्णता का परिचायक है जो हमें दायरों में सिकोड़ती जा रही है।  

चलिए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर  ले चलते हैं- 

गौरी लंकेश जी को श्रद्धांजलि अर्पित करती 
आदरणीय गोपेश जैसवाल जी की शब्दांजलि - 
विनम्र श्रद्धांजलि गौरी लंकेश …….गोपेश जैसवाल 

ज़ुल्म की हर इंतिहा, इक हौसला बन जाएगी,

और खूंरेज़ी मुझे, मंज़िल तलक पहुंचाएगी,छलनी-छलनी कर दिया सीना मेरा तो क्या हुआ?ये शहादत, कौम को, जीना सिखाती जाएगी. 



जीवन के तमाम बिषयों को ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति  देती आदरणीय राजेश कुमार राय जी की लाजवाब रचना -

इमदाद मुझे ईमानों की कुछ और जरा दे दे साक़ी----राजेश कुमार राय

वादा करना कायम रहना इतना तो आसान नहीं था
तुम एक जनम में ऊब गये मुझे सातों जनम निभाना है

बस  इक जरा सी हरकत से ही प्यार तुम्हारा टूट गया 

अब वक्त कहाँ है हाथों में बस जीवन भर पछताना है
 
समाज की दोहरी सोच पर प्रहार करती 
सोनाली भाटिया जी की एक प्रेरक लघुकथा -

दोहरापन (कहानी )……… सोनाली भाटिया

और फिर माँ ने  कितना समझाया था उसे की बेटा अभी तू छोटी है सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दे | और उसने प्रशांत को पसंद करने की बात माँ को बतानी चाही तो माँ ने फिर समझाया की तू इस काबिल नहीं है अभी की अपनी ज़िंदगी के इतने अहम फैसले ले सके |
पर आज वही माँ उसकी शादी करा रही है | तो क्या आज उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि  उनकी बेटी अभी छोटी है और अपनी ज़िंदगी के अहम फैसले लेने लायक नहीं है  या उसकी पढाई अभी ज्यादा जरुरी है |

व्यवस्था पर तीखा प्रहार करती विक्रम प्रताप सिंह सचान जी की विचारोत्तेजक रचना-


मुआवजा घोषित हुआ, जाने किसको मिला 
बुनियादी जरूरतों के सवाल सभी निपटा दिये। 

कुछ तो पानी बचायें रखते अपनी आँख में 

मौत पर जो रोने गये उनपे भी पहरे  बिठा दिये। 

  प्रकृति से जुड़े बिषयों की सशक्त हस्ताक्षर 
श्वेता सिन्हा जी की एक मर्मस्पर्शी रचना - 

इंतज़ार…....श्वेता सिन्हा
 भीगती सारी रात
चाँदनी की बारिश में
जुगनुओं से खेलती लुका छिपी
काँच की बोतलों में
भरकर ऊँघते चाँद की खुशबू
थक गयी हटाकर
बादलों के परदें
एक झलक भोर के
इंतज़ार में,

स्त्री जीवन से जुड़े मनोभावों को अभिव्यक्त करती 
आदरणीय( बहन जी) यशोदा अग्रवाल जी द्वारा 
"मेरी धरोहर" पर प्रस्तुत 
डॉ. निधि अग्रवाल जी की एक गंभीर रचना- 

प्रेम-समर्पण...........डॉ. निधि अग्रवाल

  स्त्री  तो  होती है जड़ों के मानिंद

अपनी मिट्टी से जुड़ी रहती हैं,

टूटती नहीं ये अपमानों से

प्यार के बोल सुन सब्र खोती हैं,

ओढ़ लेती हैं धानी चुनर मुस्कानों की

और फिर किसी कोने में छुप रो लेती हैं.



धन्यवाद
आपके सारगर्भित सुझावों की प्रतीक्षा में । 
अब आज्ञा दें। 
फिर मिलेंगे। 
          


12 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    एक और अच्छी प्रस्तुति
    आभार
    सादर

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  2. सुप्रभात रवींद्र जी,
    समसामयिक घटनाओं पर गंभीर मंथन को मजबूर करते आपके उत्तेजक विचार अत्यंत सराहनीय है।सार्थक सारगर्भित लिंकों का सुंदर संयोजन आज के अंक में।
    बधाई आपको
    सभी चयनित रचनाकारों को शुभकामनाएँ।
    मेरी रचना को मान देने के लिए तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  3. सर्वप्रथम ,शहीद "गौरी लंकेश" को शत -शत नमन ,हृदय द्रवित हुआ क्षण भर परन्तु मष्तक आकाश से ऊंचा
    आज वक़्त आ गया है हम कलम के सिपाहियों को बदलने का, मैं इस देश की उस आबादी से कभी आशा नहीं रखता जो राजनीतिक
    पार्टियों के लाल ,पीले ,हरे ,नीले झंडों को सर पर उठाये घूम रही है उसके उचित -अनुचित कार्य की भी सराहना करती है मैं अभी भी आशा करता हूँ उन लोगो से जो पार्टी नहीं देश की बात करते हैं धर्म का झूठा राग नहीं आलापते। देश की परिस्थिति बदलने में विश्वास रखते है ,मरण तो निश्चित है तो आज क्यों नहीं ? मैंने अपने पिछले प्रस्तुति में यही कहने की कोशिश की थी "विवादों में आना मेरी प्रसन्नता नहीं परन्तु बने रहना दुःख एवं घोर कुण्ठा का परिचायक अवश्य है।" आदरणीय रविंद्र जी को इस क्रांतिकारी प्रस्तुति हेतु नमन ,ये अंत नहीं प्रारम्भ है ! आभार "एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं
  4. शुभप्रभात....
    सुंदर....
    ज्वलंत प्रश्नों को उठाती आज की प्रस्तुति....

    जवाब देंहटाएं
  5. सुप्रभात रवींद्र जी,
    समसामयिक विषयों पर गंभीर मंथन को मजबूर करती..
    बहुत सुंदर..
    सभी रचनाकारों को बधाई
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत अच्छी सामयिक हलचल प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  7. खूबसूरत लिंक संयोजन । बहुत खूब आदरणीय ।
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  8. श्रद्धाँजलि गौरी लंकेश। सुन्दर प्रस्तुति रवीन्द्र जी।

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर समसामयिक प्रस्तुतिकरण ..उम्दा लिंक संकलन...

    जवाब देंहटाएं

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