गौरी लंकेश जी को श्रद्धांजलि अर्पित करती
आदरणीय गोपेश जैसवाल जी की शब्दांजलि -
विनम्र श्रद्धांजलि गौरी लंकेश …….गोपेश जैसवाल
ज़ुल्म की हर इंतिहा, इक हौसला बन जाएगी,
जीवन के तमाम बिषयों को ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति देती आदरणीय राजेश कुमार राय जी की लाजवाब रचना -
वादा करना कायम रहना इतना तो आसान नहीं था
तुम एक जनम में ऊब गये मुझे सातों जनम निभाना है
बस इक जरा सी हरकत से ही प्यार तुम्हारा टूट गया
अब वक्त कहाँ है हाथों में बस जीवन भर पछताना है
समाज की दोहरी सोच पर प्रहार करती
सोनाली भाटिया जी की एक प्रेरक लघुकथा -
दोहरापन (कहानी )……… सोनाली भाटिया
और फिर माँ ने कितना समझाया था उसे की बेटा अभी तू छोटी है सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दे | और उसने प्रशांत को पसंद करने की बात माँ को बतानी चाही तो माँ ने फिर समझाया की तू इस काबिल नहीं है अभी की अपनी ज़िंदगी के इतने अहम फैसले ले सके |
पर आज वही माँ उसकी शादी करा रही है | तो क्या आज उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी बेटी अभी छोटी है और अपनी ज़िंदगी के अहम फैसले लेने लायक नहीं है या उसकी पढाई अभी ज्यादा जरुरी है |
व्यवस्था पर तीखा प्रहार करती विक्रम प्रताप सिंह सचान जी की विचारोत्तेजक रचना-
बुनियादी जरूरतों के सवाल सभी निपटा दिये।
कुछ तो पानी बचायें रखते अपनी आँख में
मौत पर जो रोने गये उनपे भी पहरे बिठा दिये।
इंतज़ार…....श्वेता सिन्हा
भीगती सारी रात
जुगनुओं से खेलती लुका छिपी
काँच की बोतलों में
भरकर ऊँघते चाँद की खुशबू
थक गयी हटाकर
बादलों के परदें
एक झलक भोर के
इंतज़ार में,
आदरणीय( बहन जी) यशोदा अग्रवाल जी द्वारा
"मेरी धरोहर" पर प्रस्तुत
डॉ. निधि अग्रवाल जी की एक गंभीर रचना-
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंएक और अच्छी प्रस्तुति
आभार
सादर
मेहनत झलक रही है
जवाब देंहटाएंसुप्रभात रवींद्र जी,
जवाब देंहटाएंसमसामयिक घटनाओं पर गंभीर मंथन को मजबूर करते आपके उत्तेजक विचार अत्यंत सराहनीय है।सार्थक सारगर्भित लिंकों का सुंदर संयोजन आज के अंक में।
बधाई आपको
सभी चयनित रचनाकारों को शुभकामनाएँ।
मेरी रचना को मान देने के लिए तहेदिल से शुक्रिया आपका।
सर्वप्रथम ,शहीद "गौरी लंकेश" को शत -शत नमन ,हृदय द्रवित हुआ क्षण भर परन्तु मष्तक आकाश से ऊंचा
जवाब देंहटाएंआज वक़्त आ गया है हम कलम के सिपाहियों को बदलने का, मैं इस देश की उस आबादी से कभी आशा नहीं रखता जो राजनीतिक
पार्टियों के लाल ,पीले ,हरे ,नीले झंडों को सर पर उठाये घूम रही है उसके उचित -अनुचित कार्य की भी सराहना करती है मैं अभी भी आशा करता हूँ उन लोगो से जो पार्टी नहीं देश की बात करते हैं धर्म का झूठा राग नहीं आलापते। देश की परिस्थिति बदलने में विश्वास रखते है ,मरण तो निश्चित है तो आज क्यों नहीं ? मैंने अपने पिछले प्रस्तुति में यही कहने की कोशिश की थी "विवादों में आना मेरी प्रसन्नता नहीं परन्तु बने रहना दुःख एवं घोर कुण्ठा का परिचायक अवश्य है।" आदरणीय रविंद्र जी को इस क्रांतिकारी प्रस्तुति हेतु नमन ,ये अंत नहीं प्रारम्भ है ! आभार "एकलव्य"
शुभप्रभात....
जवाब देंहटाएंसुंदर....
ज्वलंत प्रश्नों को उठाती आज की प्रस्तुति....
सुप्रभात रवींद्र जी,
जवाब देंहटाएंसमसामयिक विषयों पर गंभीर मंथन को मजबूर करती..
बहुत सुंदर..
सभी रचनाकारों को बधाई
आभार
बहुत अच्छी सामयिक हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंखूबसूरत लिंक संयोजन । बहुत खूब आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार ।
श्रद्धाँजलि गौरी लंकेश। सुन्दर प्रस्तुति रवीन्द्र जी।
जवाब देंहटाएंMahaul ki sachitra prastuti
जवाब देंहटाएंMahaul ki sachitra prastuti
जवाब देंहटाएंसुन्दर समसामयिक प्रस्तुतिकरण ..उम्दा लिंक संकलन...
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