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गुरुवार, 3 अगस्त 2017

748......हिसाब किताब पीछे पीछे कुछ भी नहीं अब चलेगा


      सादर अभिवादन !
 एक ओर जहाँ माननीय सर्वोच्च न्यायालय में 
 निजता (प्रिवेसी /प्रायवेसी ) के अधिकार  पर 
   बहस छिड़ी हुई है वहीं अंतरजाल पर 
   आभासी दुनिया का विडिओ गेम "ब्लू वेल" 
    अब जानलेवा सिद्ध हो रहा है। इससे प्रभावित होकर  
    1 अगस्त2017  को मुंबई में एक 14 वर्षीय 
       बालक ने सातवीं मंज़िल से छलांग लगाकर
     आत्महत्या कर ली। 
   इस दुखद समाचार ने भारत में इस सुसाइड गेम को लेकर 
      चिंता फैल  गयी है। 
 अति आधुनिकता के दुष्परिणामों से हमें 
      अब सजग हो जाना चाहिए। 
   बच्चों को परिवार से समय,स्नेह और देखरेख की दरक़ार होती है। 

आइये अब चलते हैं आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर -
जनतंत्र में स्वस्थ बहस ही जनता के हितों की रक्षा करती है किन्तु आजकल संसद एक अखाड़े में तब्दील होती जा रही है। आदरणीय  अरुण रॉय जी की यह सामयिक रचना पढ़िए क्या-क्या कहती है -  


      
इस विषय पर कभी नहीं रुकी कोई कार्यवाही कि 

  अस्पतालों में डाक्टर नहीं है 

   नहीं है दवाइयां 

  स्त्रियाँ अब भी मरती हैं लाखों में जनते हुए बच्चा 

  मरे हुए लाश को ढोने के लिए भी नहीं है एम्बुलेंस 


कोमल भावों को ग़ज़ल के शेरों में पिरोकर फिर हाज़िर हैं आदरणीय दिगंबर नासवा जी -       हर युग के कुछ सवाल हैं जो हल नहीं हुए .....दिगंबर नासवा  

सूरज की रोशनी को वो बांटेंगे किस कदर 

 सर पर कभी जो धूप के कंबल नहीं हुए
हो प्रश्न द्रोपदी का के सीता की बात हो  
हर युग के कुछ सवाल हैं जो हल नहीं हुए 


देशप्रेम और त्याग ऐसे जज़्बे हैं जिनका कोई सानी नहीं है।पढ़िए ऋता शेखर 'मधु' जी की एक हृदयस्पर्शी लघुकथा -

                               कसम…….. ऋता शेखर 'मधु'

राहुल तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। उसे किसी ने नहीं बताया था कि तस्वीर उसके पिता की है। जब वह दुनिया में आने वाला था तभी कारगिल युद्ध में वे शहीद हो गए थे। उनके गम में उसकी माँ बहुत कमजोर हो गई और राहुल को जन्म देते समय चल बसी थी।

तब अंजलि ने बढ़कर दुधमुँहे को छाती से लगाया था और अपने बच्चे को जन्म  देने की कसम खाई थी।

समाज में छाई विसंगतियों पर धारदार कटाक्ष और गूढ़ता से लबरेज़ विचारशील रचना का सृजन करते हैं आदरणीय प्रोफ़ेसर डॉ. सुशील कुमार जोशी जी - 

काला पूरा काला सफेद पूरा सफेद अब कहीं नहीं दिखेगा…प्रोफ़ेसर डॉ.सुशील कुमार जोशी 




  ‘उलूक समझ ले 

 हिसाब किताब 

 पीछे पीछे कुछ भी 

 नहीं अब चलेगा 
इस सब 


के बाद 



काला काले 
के लिये ही 
और सफेद 
सफेद के 
लिये ही नहीं 

हिंदी -साहित्य के चमकते सितारे स्वर्गीय धर्मवीर भारती जी की एक महान रचना आदरणीय ''दिग्विजय  अग्रवाल'' जी के ब्लॉग से   टूटा पहिया...... ..धर्मवीर भारती


  इस दुरूह चक्रव्यूह में

 अक्षौहिणी सेनाओं को चुनौती देता हुआ

  कोई दुस्साहसी अभिमन्यु घिर जाए?

  अपने पक्ष को असत्य जानते हुए भी
  बड़ेबड़े महारथी
 अकेली निहत्थी आवाज को
 अपने ब्रह्मास्त्रों से कुचल देना चाहें

   आज की हलचल पर आपके सारगर्भित 
     सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी। 
    अब आज्ञा दें। 
   फिर मिलेंगे।

11 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    सही व सटीक रचनाओं का चयन
    आभार..आज यहा मेरा भी ब्लॉग है
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. नमस्ते, आदरणीय भाई जी आज आपका नाम आगे के लिए मेरी स्मृति में सुधर गया। आभार सादर।

      हटाएं
  2. शुभ प्रभात आदरणीय रवींद्र जी
    आज की प्रस्तुति कुछ अलग है
    अच्छे लिंक संजोये हैं आपने
    विचारणीय मुद्दे !
    आभार,
    "एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर प्रस्तुतिकरण,
    उम्दा लिंक संकलन.....

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय रवींद्र जी,
    आपने बहुत ही गंभीर बात रखी है, बच्चों के संवेदनशील मन को सँभालने की जिम्मेदारी सभी माता पिता पर तो है किंतु समाज का भी उतना ही योगदान होता है।
    आधुनिकता की होड़ और चारदीवारी की बंद संस्कृति में, निरर्थक खेलों मे अपना समय गुजारते बालमन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। ध्यान देना आवश्यक है।
    बहुत सुंदर लिंकों का प्रस्तुतिकरण रवींद्र जी।
    बधाई एवं शुभकामनाएँ स्वीकार करे।

    जवाब देंहटाएं
  5. शुभ प्रभात आदरणीय रवींद्र जी,
    बहुत सुंदर लिंकों का विचारणीय प्रस्तुतिकरण..
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  6. धारदार लिंक ... सामाज से जुड़े विषयों का संकलन ...
    आभार मुझे आज जगह देने का ...

    जवाब देंहटाएं
  7. तकनीकी की अच्छाइयों के साथ बुराइयां भी दखल दे रहीं हैं जीवन में, बड़ों को बच्चों पर नज़र रखने के साथ-साथ समझाना भी जरुरी है ! पर विडंबना यह है कि बड़े भी इस लत के शिकार हो रहे हैं !!

    जवाब देंहटाएं
  8. सुन्दर प्रस्तुति रवीन्द्र जी 'उलूक' उवाच कहिये या 'उलूक' बकवास कहिये बस कहने के लिये है क्योंकि कहना जरूरी है। विचारशील भारी शब्द है। आपने आज के उम्दा सूत्रों के बीच जगह दी उसके लिये दिल से आभार।

    जवाब देंहटाएं

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