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गुरुवार, 15 जून 2017

699 ..... जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध

                                            सादर अभिवादन !


लिखने वालों ने लिखा है -

इश्क़ ख़ुदा है। 

तो फिर क्यों कहते हो -
इश्क़ निगोड़ा ....
इश्क़ कमीना ....  
दिल एक मंदिर है / था
वैचारिक दरिद्रता के दौर में 
             अब "दिल उल्लू का पट्ठा हो गया" .....(?) 



फिसल रही है नेताओं की ज़ुबान 

या 
        भाषा का दिवालियापन घोषित कर रहे हैं ..?

      आदरणीय बापू को तिरस्कार के साथ याद  करना-

"एक चतुर बनिया था वो "
"उसको मालूम था आगे क्या होने वाला है "
"उसने आज़ादी के बाद ...."


एक और नेता ने हमारे थल सेनाध्यक्ष के भाषण पर कहा -

कि  वे "सड़क के गुंडे की तरह भाषण देते हैं "
एक ने अपने बयान पर माफ़ी मांग ली 
एक ने अपने बयान को सही ठहराया ..(?)
                                
मुझे एतराज़ है -
था ,उसको ,उसने  और सड़क के गुंडे शब्दों पर 
जो सीधे हमारी भावनाओं को आहत करते हैं 
हमारी भाषा हमें शालीनता की घुट्टी पिलाती है 
भद्र जनों के लिए अभद्रता नहीं सिखाती है 
दबी हुई कुंठा को हम पर मत थोपो !
चुल्लू भर पानी  में  अपना मुँह  धो लो ! !


चलिए अब आपको शब्दों से भाव जगाने की यात्रा पर ले चलते हैं...... 


ईमानदार सोच को अभिव्यक्ति देने की कला आदरणीय साधना दीदी की इस रचना में परखिये -
                                                     
                                                     lकमाई         साधना वैद

उस वक्त जब रिश्तों का पन्ना 
बिलकुल कोरा था 
एक बहुत ही खूबसूरत 
इबारत लिखने के लिए 
मैंने अहंकार और अभिमानवश 
जो कुछ उस पर लिख दिया था 
उसका यही सिला मुझे मिलना 
लाज़िमी था । 

भावों को करीने  से सजाया है पुरुषोत्तम जी ने अपनी इस रचना में -
ख्वाब जरा सा ख्वाब जरा सा   ..... पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 


मृदुल बसन्त सी चुपके से तुम आना,
किल्लोलों पर गूँजती रागिणी सी कोई गीत गाना,
वो गगन जो सूना-सूना है अब तक,
उस गगन पर शीतल चाँदनी बन तुम छा जाना,

स्त्री - गरिमा  और बंधनों की कशमकश  को प्रस्तुत करती अलका जी की एक सुन्दर रचना - 


कसक बहुत रही है आज

जो तोड़ ना सके थे कायर हाथ

उन बीते दिनों के अनचाहे ...

बंधनों की झूठी लाज ।।


हर्ष वर्धन जोग साहब की यात्राऐं  उपयोगी जानकारी और सुन्दर चित्रावली से परिपूर्ण हैं।  
पेश है मनोरम ,दुर्गम इलाक़े की एक यात्रा की बानगी -


टेहरी की उंचाई लगभग 2000 मीटर है और तापमान गर्मी में 30 तक और सर्दी में 2 डिग्री तक जा सकता है. सालाना बारिश 70 सेंमी तक हो जाती है याने ठंडी जगह है. गर्मी में भी आधी जैकेट की ज़रुरत पड़ सकती है.

टेहरी का पुराना नाम त्रिहरि बताया जाता है. उससे भी एक पुराना नाम है गणेशप्रयाग. यहाँ भागीरथी और भिलांगना नदियाँ मिलती हैं और मिलकर ऋषिकेश की ओर चल पड़ती हैं.


कविवर स्वर्गीय रामधारी सिंह "दिनकर" सामाजिक चेतना के ऐसे कवि हैं जो आत्ममंथन के लिए बहुआयामी भावभूमि का निर्माण करते हैं। पेश है उनकी एक कालजयी ओजस्विनी रचना -



तिमिर पुत्र ये दस्यु कहीं कोई दुष्काण्ड रचें ना
सावधान हो खडी देश भर में गाँधी की सेना
बलि देकर भी बलि! स्नेह का यह मृदु व्रत साधो रे,
मंदिर ' मस्जिद दोनों पर एक तार बाँधो रे। 

समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध।


एक विशेष अनुरोध ....
कल हमारा 700 वां विशेषांक लेकर आ रहे हैं 
भाई राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही" जी। 
आपके सक्रिय सहयोग एवं स्नेह की आकांक्षा के साथ 
 आज्ञा दें रवीन्द्र को ... ....सादर।   

20 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर सार्थक विविधतापूर्ण लिंकों का समायोजन रवींद्र जी।

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  2. बहुत खूबसूरत लिंक्स का चयन किया है आपने रवीन्द्र जी ! मेरी रचना को आज की हलचल में सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यादव जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. रामधारी जी की यह पंक्ति, भाषा की शालीनता और कुशाग्रता का सुन्दर बयान करती है।।।।


    बलि देकर भी बलि! स्नेह का यह मृदु व्रत साधो रे।।।

    अत्यंत तार्किक और भावपूर्ण संकलन।।

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  4. शुभप्रभात ,
    सत्य वचन आदरणीय ''रवींद्र जी''
    जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध
    कुछ सामान्य जनों का यही विचार है
    'ना काहू से दोस्ती ना काहू से वैर'
    उत्तम शीर्षक आज के अंक का ,
    चयनित रचनायें भी स्वयं में श्रेष्ठ हैं
    आपका प्रयास सराहनीय है
    इस तार्किक एवं बेहतरीन लिंक संयोजन हेतु
    शुभकामनायें ,आभार।
    "एकलव्य"

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  5. शुभ प्रभात....
    वाह....
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति
    अच्छा लगा पढ़कर
    सादर

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  6. चयनित रचनायें बहुत बढियाँ..
    समायिक तथ्यों पर टिप्पणी करते हुए प्रस्तुतिकरण उम्दा।
    धन्यवाद।

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  7. इसी उर्जा के साथ आगे बढ़ता रहे पाँच लिंको का आनन्द। टिप्पणियाँ देख कर आनन्द आ रहा है। पाठक बढ़ें इसी तरह लेखकों का उत्साहवर्धन करते हुए। 700वें अंक के आगमन के लिये शुभकामनाएं।

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    1. सादर प्रणाम सर।
      आपके मार्गदर्शन और स्नेह ने हमें कुछ सार्थक करते रहने के आयाम दिए हैं।

      हटाएं
  8. भाई रवींद्र जी की "पांच लिंकों का आनंद" में सम्मलित सूत्र, एक से बढ़ एक हैं। चर्चा की भूमिका में लिखे गए वाक्य मुझे ऐसे लगते हैं मानों रवींद्र जी ने मेरी भावनाओं को शब्द का जामा पहना दिए हों।

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  9. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति ...

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  10. निखरा हुआ अंक तात्कालिक मुद्दों पर सटीक भूमिका के साथ। धन्यवाद पांच लिंकों का आनंद।

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  11. 'टेहरी यात्रा' शामिल करने के लिए धन्यवाद

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  12. बहुत अच्छी रचनाये है.. मजा आ गया...आगे भी पांच लिंको का आनन्द हमारे आनन्द मे इसी तरह वृद्धि करता रहे. अच्छी प्रस्तुति के लिये धन्यवाद..

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  13. सभी रचनाएं और यात्रा वर्णन पढ़े ,सब बहुत अच्छे लगे. आपका धन्यवाद.

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  14. कविवर दिनकर की बचपन में पढी कविता समर शेष है आज फिर पढ़ने को मिली. कितना गहराई से लिखा गया है कि आज भी उतना ही ज़रूरी है जितना तब रहा होगा. अंक के आरंभ में कवितामय वर्णन बहुत अच्छा है. अच्छी प्रस्तुति के लिये धन्यवाद. लाते रहिये साहित्य के समुन्दर से चुनकर मोती.....

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  15. बहुत ही सुन्दर लिंक संयोजन....
    बधाई ,रविन्द्र जी !

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  16. आपका स्नेह और सहयोग पाकर आत्मिक ख़ुशी और संतोष मिल रहा है। आप सभी का "पाँच लिंकों का आनंद " तहेदिल से स्वागत करता है ,आभार व्यक्त करता है। हम चाहेंगे हमारे कल के विशेषांक (700 वां अंक ) पर आप पूरी सक्रियता के साथ स्नेह की बरसात करें। सादर यथायोग्य।

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  17. भाई रवींद्र जी की "पांच लिंकों का आनंद" में सम्मलित सूत्र, एक से बढ़ एक हैं। चर्चा की भूमिका में लिखे गए वाक्य मुझे ऐसे लगते हैं मानों रवींद्र जी ने मेरी भावनाओं को शब्द का जामा पहना दिए हों।

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं

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