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शनिवार, 27 मई 2017

680... अहम




सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष

खुद को तीसमारखां समझने लगी हूँ



अहम





फलसफा


मंदिर में मूरत  की पूजा लगता महज दिखावा है
मन में जिनके पाप भरा वे कहते क्या पहनावा है
बातों की बतकही बनाने मीडिया में कितने आ बैठे
चुप चुप अब तक मनमोहन जी इसका एक पछतावा है ।।
बेशक अपना या हो पराया करना होगा अब प्रतिकार




साररूप



‘गुलेरी’ का वर्णन इसलिए किया है कि ‘उसने कहा था’
कहानी में उनकी कल्‍पना का चमत्‍कारिक प्रभाव आज भी
कथाकारों के लिए अनुकरणीय है। ऐसी कल्‍पना, कथा में ही देखी जा सकती है।
कथायें पौराणिक, ऐतिहासिक और कल्‍पनात्‍मक प्रस्‍तुति का मिश्रण होती हैं।
कहानी में कल्‍पना को यथार्थ नहीं बनाया जाता अपतिु
यथार्थ को कहानी का स्‍वरूप दिया जाता है।



अहंकार



"जिनकी विद्या विवाद के लिए, धन अभिमान के लिए,
बुद्धि का प्रकर्ष ठगने के लिए तथा उन्नति संसार के तिरस्कार के लिए है,
 उनके लिए प्रकाश भी निश्चय ही अंधकार है।" -क्षेमेन्द्र



जाने किस वक्त



वो आकाशगंगायें जब
हथेलियों में बन्द होतीं,
मेहँदी ख़ुशबू बिखरती..

जाने कौन सा वक़्त होता
जो क़यामत लगता था,
खुलते जूड़े के
भँवर से फिसलकर..

फिर मिलेंगे

विभा रानी श्रीवास्तव





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