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मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

648.....चिकने घड़े, चिकने घड़े की करतूत के ऊपर बैठ कर छिपाते हैं

बहुत गरम है रायपुर..
मन तो करता है कि, सारा ताम-झाम छोड़ कर
शिमला में बस जाऊँ 31 जून तक
असम्भव को सम्भव बना लूँ
जून के महीनें में एक दिन और जुड़वा लूँ..

चलिए थोड़ी राहत मिली..भाई कुलदीप जी की वापसी पर..
पिटारा खोलती हूँ आज का....


स्विमिंग सीखना अच्छा लगा . और सीखने की तो कोई उम्र नहीं होती .. पानी पर सोकर रेस्ट किया था तभी पहली बार....एक बात तो तय है की सीखने की कोई उम्र नहीं होती ,और सीखी हुई कोई चीज या बात कभी बेकार नहीं जाती। ..

क्या सच में 
जीवन का अन्त नहीं ... 
क्या जीवन निरंतर है ... 
आत्मा के दृष्टिकोण से 
देखो तो शायद हाँ ... 
पर शरीर के माध्यम से देखो तो ... 
पर क्या दोनों का अस्तित्व है 


तुम ही तुम हो....श्वेता सिन्हा
मुस्कुराते हुये ख्वाब है आँखों में
महकते हुये गुलाब है आँखों में

बूँद बूँद उतर रहा है मन आँगन
एक कतरा माहताब  है  आँखों में

मृगया.....रश्मि शर्मा
कलि‍यां चटखती हैं
दि‍वस जैसे मधुमास
मैं मृगनयनी
तुम कस्‍तूरी
जीवन में तुमसे ही 
है सारा सुवास 




''कीर्ति स्तम्भ''...एकलव्य
शक्ति बन !जो तू उड़ेगा
मारुति के रूप में,
पुष्प की वृष्टि करेंगे
बन उपासक,देव भी

दीप्तिमान ब्रह्माण्ड होगा
तेरे 'कीर्ति स्तम्भ' से ....

बात समझने की.....डॉ. सुशील कुमार जोशी

‘उलूक’ 
रोक लेता है 
थूक अपना 
अपने गले के 
बीच में ही कहीं 

सारे मुखौटे 
पीठ के पीछे 
से निकल कर 

गधों के चेहरों
पर वापस 
फिर से चिपके 
हुऐ नजर आते हैं 

आज्ञा दीजिए यशोदा को
कल फिर मिलेंगे
सादर












7 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय,धन्यवाद मेरे 'कीर्ति स्तम्भ' को स्थान देने के लिए। "एकलव्य"

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  2. बढ़िया प्रस्तुति। आभार यशोदा जी 'उलूक' के सूत्र को भी जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया हलचल ... आभार मुझे भी शामिल करने का आन की हलचल में ...

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर लिंकों का सार्थक चयन मेरी रचना को मान देने के आभार यशोदा दी।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुप्रभात
    बहुत सुंदर हलचल प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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