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मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

627...रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं एवं स्नेह....


जय मां हाटेशवरी...
पांच लिंकों का आनंद  परिवार की ओर से...
समस्त पाठकों को...
रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं एवं स्नेह....
आज का पावन दिन हमें राम के व्यक्तित्व एवं उनके चरित्र से कुछ सिखने के लिए
प्रेरित करता है. आज के भाग-दौड़, स्वार्थी एवं व्यक्तिवादी जीवन-शैली में राम के आदर्शों का पुरे मानव-जाति को अपनाने की आवश्यकता है. आधुनिक जीवन-शैली में जहाँ पुरुष अपना धर्म, कर्त्तव्य, मर्यादा एवं उच्च आदर्शों के साथ अपने पुरुषार्थ को खोता चला जा रहा है वहीं महिलाएं अपनी त्याग एवं ममता रूपी छवि नष्ट करने लगीं हैं.

जब धरती पर असुरों का आतंक बढ़ गया तब भगवान विष्णु ने मानव के रूप में जन्म लिया और असुरों का संहार कर धरती को पुनः पाप मुक्त किया . कहते हैं जब जब धरा पर बुराई का भार अच्छाई से अधिक होता हैं तब तब भगवान स्वयं धरती पर आकर धरती को संतुलित करते हैं और मनुष्य जाति का उद्धार करते हैं . उसी तरह जब धरती पर रावण और राक्षसी ताड़का जैसे असुरों  का आतंक सीमा पार हो गया, तब भगवान विष्णु एवम माता लक्ष्मी ने राम एवम सीता के रूप में धरती पर  जन्म लिया और असुरों के संहार के साथ-साथ मानव जीवन एवम एक प्रजा पालक की मर्यादा का उदहारण प्रस्तुत किया।

भगवान राम हमारे संस्कार हैं हमारे आदर्श हैं उनका सम्पूर्ण चरित्र एक उदाहरण है सादा चरित्र उच्च विचार. भगवान् राम को मर्यादा पुरुषोतम कहा जाता है  उनका संपूर्ण जीवन  आने वाले हर सामाजिक ढांचे के लिए एक निर्माण सामग्री है

जो सत्य को समाज में कैसे स्थापित किया जाये हमें समझाती हुई प्रतीत होती है सनातन संस्कृति में जीवन के मूल्य आदर्शवान होने की वजह से ही आज हमारे समाज में मानवता विद्यमान है

राम हमारे गौरव के प्रतिमान हैं
राम हमारे भारत की पहचान हैं
राम हमारे घट-घट के भगवान् हैं
राम हमारी पूजा हैं अरमान हैं
राम हमारे अंतरमन के प्राण हैं
मंदिर-मस्जिद पूजा के सामान हैं
राम दवा हैं रोग नहीं हैं सुन लेना
राम त्याग हैं भोग नहीं हैं सुन लेना
राम दया हैं क्रोध नहीं हैं जग वालो
राम सत्य हैं शोध नहीं हैं जग वालों
राम हुआ है नाम लोकहितकारी का
रावण से लड़ने वाली खुद्दारी का
राम नहीं है नारा, बस विश्वाश है
भौतिकता की नहीं, दिलों की प्यास है
राम नहीं मोहताज किसी के झंडों का
सन्यासी, साधू, संतों या पंडों का
राम नहीं मिलते ईंटों में गारा में
राम मिलें निर्धन की आँसू-धारा में
राम मिलें हैं वचन निभाती आयु को
राम मिले हैं घायल पड़े जटायु को
राम मिलेंगे अंगद वाले पाँव में
राम मिले हैं पंचवटी की छाँव में
राम मिलेंगे मर्यादा से जीने में
राम मिलेंगे बजरंगी के सीने में
राम मिले हैं वचनबद्ध वनवासों में
राम मिले हैं केवट के विश्वासों में
राम मिले अनुसुइया की मानवता को
राम मिले सीता जैसी पावनता को
राम मिले ममता की माँ कौशल्या को
राम मिले हैं पत्थर बनी आहिल्या को
राम नहीं मिलते मंदिर के फेरों में
राम मिले शबरी के झूठे बेरों में
मै भी इक सौंगंध राम की खाता हूँ
मै भी गंगाजल की कसम उठाता हूँ
मेरी भारत माँ मुझको वरदान है
मेरी पूजा है मेरा अरमान है
मेरा पूरा भारत धर्म-स्थान है
मेरा राम तो मेरा हिंदुस्तान है
जय श्री राम...जय श्री राम...जय श्री राम...

अब पेश है...आज के चुने हुए लिंक...






अच्छे दिन तो आने दो
भ्रष्टाचार मिटाना हो तो
खुद ही कदम उठाना है।
कालेधन की कोठरियों का
मन से मोह भगाना है।
ज्ञान नही देना दूजों को
सीख अमल में लाने दो।

ख्वाबों की दुनिया...
कोई न कोई खड़ा रहता है
हमारे पर कुतरने को
और शायद मन ही मन
मुस्कुराता है ओ शक्स
अपनी झूठी  जीत पर
पर शायद ये नहीं जानता ओ
कि कुदरत सब देख रही है

चाहत उम्मीद की ...-
छुपा लेना उंगली का वो सिरा
झिलमिलाती है जहां से बर्क उम्मीद की  
आँखें पी लेती हैं तरंगें शराब की तरह
नशा है जो उम्र भर नहीं उतरता
मत छोड़ना नमी जलती आग के गिर्द
भाप बनने से पहले ले लेते हैं पनाह उम्मीद के लपकते शोले

कोई लौटा दे वो नोटबन्दी वाले दिन ......
अगले दिन फिर यही सिलसिला शुरू किया कभी एस.बी.आई. कभी आई.सी.आई.सी.आई. , कभी बी. ओ. आई. , कहीं कुछ एक नोट जमा हो जाते , फिर दूसरा कॉर्नर तलाशते फिर मायूस हो जाते l जहाँ कुछ नोट जमा हो जाते तो हमारे चेहरे पे विजयी मुस्कान आ जाती l हम उसे नोट जमा होने की ख़ुशी ही समझते रहे , लेकिन जीते रहे l मज़ा आने लगा था रम से गए थे उन दिनों की दुनिया में l पता नहीं कौन सी खुमारी आ गई थी l नोट तो ख़त्म होने थे हो गए l लेकिन शायद वो प्यार वाले दिन चले गए l सुनसान सड़कें और बैंक की भीड़ हमें अच्छी लगने लगी थी l साथ – साथ चलने लगे थे न हम दोनों l पैसे जमा होने की ख़ुशी तो थी ही लेकिन उन दिनों का जल्दी बीत जाने का दुःख ज्यादा था l

खेल भावना से देख चोर सिपाही के खेल-
कोई गुनाह
नहीं होता है
लोग अगर
चोर सिपाही
खेल रहे होते हैं

खास उम्र की महिलाएं
चाहें तो समेट ले अपने में,
करा दे खुबसूरत सी जिन्दगी का अहसास .!!
पर, होती हैं, संवेदनाओं और मान्यताओं से बंधी
नहीं चाहती उनके वजूद में कोई और खोये
या वो अधर जो लगे हैं सूखने
नहीं हो किसी और के वजूद से गीले !!
एक सच और भी है
इन को भी चाहने वाले करते हैं इन्तजार, बहुत देर तक !!
इन्तजार !! जान तो नहीं लेगा न !!

आज बस इतना ही...
जय श्री राम...


















9 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात भाई कुलदीप जी
    आप सभी को रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
    अच्छी प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. ज्ञानवर्धक ,रोचक ,एवं सुंदर संकलन आभार। "एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति कुलदीप जी । आभार 'उलूक' के सूत्र 'चोर सिपाही' को जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  4. जय श्री राम ... सुन्दर लिक्स हैं सारे ...
    आभार मेरी रचना को जगह देने का ...

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत प्रभावपूर्ण रचना......
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपके विचारों का इन्तज़ार.....

    जवाब देंहटाएं

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