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सोमवार, 3 अप्रैल 2017

626...जरूरी नहीं कुछ जले और धुआँ भी उठे

सादर अभिवादन..
कहर टूट पड़ा है..उत्तर प्रदेश में
बरस रही है अच्छाइयाँ ही अच्छाइयाँ
कभी आपने सुना है कि मीडिया ने किसी की सराहना की हो
वह तो हर वक्त उगलते रहता है..धुआँ
आइए चले आज की रचनाओं की ओर..  

कौन कहता है सफलता जिन्दगी का गीत है
असफल हुआ न जो कभी,मानव नही वह पूर्ण है
कौन कहता है कि जीवन खुशियों का संगीत है
गम नही जीवन मे जिसके,मानव वह अपूर्ण है

तराशते तराशते जब,
पहुँच जाओ उस हिस्से तक,
जिसे दिल कहते हैं,
रुक जाना तब, मेरे शिल्पकार !
वह अभी नहीं हुआ पत्थर,
बसता है उसमें प्यार !
ओ मेरे शिल्पकार ! 


तुम मरते किरदार को जिन्दा रखो.....विशाल मौर्य विशु
दुश्मन के हर वार को जिन्दा रखो
जीतोगे, बस हार को जिन्दा रखो

हर झूठ को दफ्न हो ही जाना है
सच लिखते अखबार को जिन्दा रखो




मैंने देखा था नदी को
गणगौर पर्व में और
संजा पर्व में -
जब विदा करती थी उसे
गले लगा -उसी नदी में

मेरी कोई भी अच्छाई
जो मेरे होते
कोई मायने नहीं रखती थी
उसे अर्थहीन ही रहने देना
सामाजिकता का ढकोसला मत करना
मेरे मृत शरीर पर
फूल मत चढ़ाना  ....


धुआँ बनाना
तो और भी 
मुश्किल काम है
कब कौन क्या 
जला ले जाता है
किसी को पता 
नहीं चल पाता है
हर कोई अपना 
धुआँ बनाता है
हर कोई अपना 
धुआँ फैलाता है
कहते हैं 
आग होगी
तो धुआँ 
भी उठेगा

आज्ञा दें दिग्विजय को..
सादर


11 टिप्‍पणियां:

  1. हृदयस्पर्शी संकलन ! "दिग्विजय जी" आभार।

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  2. वाह्ह्ह बहुत सुंदर मनभावन संकलन👌

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया प्रस्तुति। आभार दिगविजय जी 'उलूक' के धुएं को जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  4. Very good presentation. मेरी कविता को स्थान देने के लिए धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  5. Very good presentation. मेरी कविता को स्थान देने के लिए धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर संकलन, मेरी कविता को शामिल करने हेतु सादर धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर संकलन, मेरी कविता को शामिल करने हेतु सादर धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं

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