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गुरुवार, 30 मार्च 2017

622...बहती पुरवाई सी चैताली-


जय मां हाटेशवरी...

वर्ष का तीसरा महिना भी....
"जयकारा माता रानी का" की गूंज के साथ...
बीतने ही वाला है...
31 मार्च के बाद...
नया बजट आरंभ होगा...
कुछ दिनों में वो भी पुराना हो जाएगा...
...देखिये आज के लिये मेरी पसंद...

सिर्फ़ कानुन से नहीं... इन तरीकों से लग सकती है शादी की फ़िजुलखर्ची पर रोक!-
हमारे देश में कानून की हालत यह है कि वहां पर संसद में एक कानून पास भी नहीं होता उसके पहले ही उस कानून से बच निकलने के दस रास्ते हमारे होनहार वकील ढूंढ निकालते है। क्या हमारे यहां कन्या-भ्रूण हत्या, बाल विवाह, दहेज़, भ्रष्टाचार इन पर कानून नहीं बने है? क्या कानून बनने से इन पर रोक लग सकी है? नहीं न? आज किसी भी कानून की असलीयत यह हो गई है कि जितना हम कानून को कठोर बनायेंगे, उतना ही उसे तोड़ने के लिए हम लोगों को प्रोत्साहित करेंगे। लेकिन यह बात सच है की कानून बनने से अपराधो पर पूरी तरह रोक नहीं लग सकती, पर अपराधों में कमी जरुर आती है। ठीक उसी प्रकार कानून बनने से शादी की फ़िजूलखर्ची पर भी सिर्फ़ कुछ प्रमाण में रोक लग सकती है।


बहती पुरवाई सी चैताली-
इसलिए इस दिन को बहुत खास मानती हूँ मैं....इस लंबे रास्ते को देखकर दुःख नहीं होता, खुश होती हूँ.... कि तुम साथ हो....पलाश से दग्ध जंगल और जीवन में भी। यूं भी तुम मुझे चैताली ही कहते हो....बहती पुरवाई सी चैताली .....और तुम .....मेरे पसंद के वो जंगली फूल हो जि‍सका नाम नहीं पता मुझको .....बस सुवासि‍त हूं


खतरनाक होता है प्यार-
ये तोड़ देता है ये समाज की वर्जनाओं को
मिटा देता है जात-पात की लकीरों को
लोगों के मन में भरी दिखावटी शान के दंभ को
चकनाचूर कर देता है आपका प्यार
वाकई बहुत खतरनाक होता है प्यार


ऐसा राजा जिसे इतिहास ने भूला दिया,
महाराज विक्रमदित्य ने केवल धर्म ही नही बचाया उन्होंने देश को आर्थिक तौर पर सोने की चिड़िया बनाई, उनके राज को ही भारत का स्वर्णिम राज कहा जाता है। विक्रमदित्य के काल में भारत का कपडा, विदेशी व्यपारी सोने के वजन से खरीदते थे भारत में इतना सोना आ गया था की, विक्रमदित्य काल में सोने की सिक्के चलते थे ,आप गूगल इमेज कर विक्रमदित्य के सोने के सिक्के देख सकते हैं।
विक्रमदित्य का काल राम राज के बाद सर्वश्रेष्ठ माना गया है, जहाँ प्रजा धनि और धर्म पर चलने वाली थी
पर बड़े दुःख की बात है की भारत के सबसे महानतम राजा के बारे में इतिहास भारत की जनता को शून्य ज्ञान देता है,

झूठ या सच राम जानें...-
कौन हो-हल्ला करे किसको पुकारे साथ को
अब मुझे तनहाइयों से घर सजाना आ गया
इसमें रत्ती भर हमारे यार की गलती नहीं
अपनी उम्मीदें ही बैरी थीं, मिटाना आ गया

रोटियों से भी लड़ी गयी आज़ादी की जंग
    भारत छोड़ो आन्दोलन का यह क्रान्तिकारी स्वरूप गांधी जी की अहिंसा और उनकी ‘स्व पीड़न’ की नीति पर एक तमाचा था। इस तमाचे और अहिंसावादियों के तमाशे के बीच सिर उठाती कटु सच्चाई केवल यही बयान करती है कि भारतवर्ष गांधी जी की अहिंसा से नहीं, क्रान्ति की फैलती ज्वाला के कारण आजाद हुआ। इस तथ्य को ‘चर्चिल’ इग्लैंड की लोकसभा में इस प्रकार रखते हैं-‘‘कांग्रेस ने अब अहिंसा की उस नीति को, जिसे गांधी जी एक सिद्धांत के रूप में अपनाने पर जोर देते आ रहे थे, त्याग दिया है और क्रान्तिकारी आन्दोलन का रास्ता अपना लिया है।’’

क्या है ज़िन्दगी ?
सब चीज़ों से परिपूर्ण नहीं, सब चीज़ों में परिपूर्ण है ज़िन्दगी
आत्मसुख नहीं, आत्मअनुभव है ज़िन्दगी |
फूलो की खुसबू , पंछी की आवाज़, पत्तो की सरसराहट, नदी का बहाव,
ज़िन्दगी वो नहीं जो तुम बनाओ, ज़िन्दगी वो है जो तुम्हे बनाये |

तलाक़ का ग्राउंड
जज साहब ने चश्मे के पीछे से महिला को भरपूर नज़रों से निहारा - हां, तो मोहतरमा, यह बताएं कि तलाक़ की ग्राउंड क्या है? महिला ने फुर्ती से जवाब दिया - जनाब, दो एकड़ में फैला एक आलिशान बंगला और...
जज साहब ने मुस्कुराते हुए बात काटी - आप समझीं नहीं। ग्राउंड से मेरी मुराद यह है कि ज़मीन क्या है?
महिला - वही तो मैं अर्ज़ कर रही थी कि आपने टोक दिया। हां, तो मैं बता रही थी कि दो एकड़ ज़मीन पर आलिशान बंगला और साथ में आम और अमरूद का बगीचा भी है।
जज साहब समझ गए किसी बेवकूफ़ पाला पड़ा है। आधा दिमाग रोज़ घरवाली खाली करती ही है। आज बाकी दिमाग यहां पहले ही केस में हो जाना है। उन्होंने महिला को समझाने की

धारा 375-भारतीय दंड संहिता
यौन उत्पीड़न एक ऐसा अपराध जिसमे पुरुष हमेशा शोषक व् नारी हमेशा पीड़ित की भूमिका में रहे हैं और इसी कारण कानून ने यहाँ भी इन्हें यही भूमिका दी है किन्तु विज्ञान के नए नए प्रयोग जोड़कर वर्त्तमान में कानून ने नारी की स्थिति को जो मजबूती दी है वह सुरक्षा पुरुष के व्यक्तित्व को नहीं दी या यूँ कहें कि नारी को
जो सुरक्षा दी गयी है उसके कारण पुरुष की सुरक्षा आज खतरे में पड़ गयी है और कानून का काम न्याय है सभी के साथ न कि किसी एक के साथ . नारी की प्राकृतिक दुर्बलता के कारण वह इस अपराध का शिकार बनती रही है किन्तु इसम भी दो राय नहीं कि वह इस धारा को पुरुष के खिलाफ हथियार रूप में इस्तेमाल करती
भी आ रही है और इसका अवसर स्वयं कानून उसे दे रहा है इस तरह-




धन्यवाद।



7 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    अविस्मरणीय अंक
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. तार्किक संकलन एवं ज्ञानवर्धक। आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्दा चर्चा... मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  4. बहुत सुन्दर हलचल । मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं

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