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मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

571...टूट जाये पत्थर ऐसा शीशा तलाश करो

जय मां हाटेशवरी...

आज कल टीवी पर तो...
जन-सभाओं की ही चर्चा है...
पर जन-सभाओं में विकास की बात नहीं होती...
केवल बकबास होती है...
मैं तो यही सोचता हूं....
क्या भाषण देने वाले  जनता को पागल समझते हैं...
या वे खुद बेवकूफ हैं...
बेहतर से बेहतर कि तलाश करो
मिल जाये नदी तो समंदर कि तलाश करो
टूट जाता है शीशा पत्थर कि चोट से
टूट जाये पत्थर ऐसा शीशा तलाश करो
ब्लौग पर बहुत कुछ नया लिखा गया है...


मैं सोचती हूँ आजकल कई बार. आप आज किस खेमे में होते ? राष्ट्रवादी या प्रगतिशील ? क्योंकि आप तो
परम्पराओं के भी समर्थक थे और प्रगतिशीलता के भी. कितना मुश्किल होता न आपके लिए आज का यह माहौल? या नहीं शायद। आप तो कह देते कि 'क्या फ़ालतू सोचते रहते हो
तुम लोग. अपना काम करो और बाकियों को अपना करने दो. बाकि सब ऊपर वाले पर छोड़ दो'. नेगिटिविटी आपके शब्दकोष में है ही नहीं न.
 

अँधेरों से जब मैं उजालों की जानिब
बढा़, शम्मा तब ही बुझा दी गई थी।
मुझे तोड़ कर फिर से जोडा़ गया था,
मेरी हैसियत यूं बता दी गई थी।
सफर काटकर जब मैं लौटा तो पाया,
मेरी शख्सियत ही भुला दी गई थी।
गुनहगार अब भी बचे फिर रहे हैं,
तो सोचो किसे फिर सज़ा दी गयी थी।

बेजान फिरता हूँ इन ईमारतों के जंगल में
बचपन की गलियों से गुजरते ज़िंदा होता हूँ।।
कुछ तो मज़बूरी है जीने में "शादाब"
अपनी ही ख़ुशी के गले का फन्दा होता हूँ।।
1- जल तत्व(कनिष्ठा)और अग्नि तत्व(अंगूठे)को एकसाथ मिलाने से शरीर में आश्चर्यजनक परिवर्तन होता है इससे साधक के कार्यों में निरंतरता का संचार होता है-
2- वरुण मुद्रा शरीर के जल तत्व सन्तुलित कर जल की कमी से होने वाले समस्त रोगों को नष्ट करती है तथा वरुण मुद्रा स्नायुओं के दर्द, आंतों की सूजन में लाभकारी
है-
3- जिन लोगों को अधिक पसीना आने की समस्या है इस मुद्रा के अभ्यास से शरीर से अत्यधिक पसीना आना समाप्त हो जाता है-
4- वरुण मुद्रा के नियमित अभ्यास से आपके शरीर का रक्त शुद्ध होता है एवं त्वचा रोग व शरीर का रूखापन भी नष्ट होता है-

         
इस बार मेरी पत्नी ने कुछ नहीं कहा, चुपचाप अपना पर्स खोला, पिस्तौल निकाली और उस घोड़े को गोली मार दी ।
          मुझे ये देखकर बहुत गुस्सा आया और मैं जोर से पत्नी पर चिल्लाया - "ये तुमने क्या किया,  पागल हो गयी हो क्या ?"
          तब पत्नी ने मेरी तरफ़ देखा और कहा - "ये पहली बार है" ।
          और बस उसके बाद से हमारी ज़िंदगी सुख और शांति से चल रही है ।

अब जब हम मिलते हैं
पूछ लेते हैं हाल चाल
घर-बार के
रिश्ते परिवार के
लेकिन अब
कहाँ पूछते हो तुम
और कहाँ कहती हूँ मैं
हाल मेरे मन के
अब जब हम मिलते हैं
प्यार नहीं
औपचारिकताएं निभाते हैं.......

-तुम्हें तो एक दिन सिगरेट मैं ही पीना सीखाउंगा।
क्यों, यह बुरी चीज है इसलिए?
-नहीं, मुझे सिर्फ यही एक चीज पता है इसलिए। मैं इस बात में बेहद यकीन रखता हूं कि कोई इंसान जब किसी से कोई चीज सीखता है तो वह उसे ताउम्र याद रखता है।
ये लाइफ टाइम गिफ्ट होगा मेरा तुम्हारे लिए।


अब अंत में
इस गीत के भाव भी समझिये...

अब मुझको ये है करना, अब मुझे वो करना है
आख़िर क्यूँ मैं ना जानूँ, क्या है कि जो करना है
लगता है अब जो सीधा, कल मुझे लगेगा उल्टा
देखो ना मैं हूँ जैसे, बिल्कुल उल्टा-पुल्टा
बदलूँगा मैं अभी क्या
मानूँ तो क्या मानूँ मैं
सुधारूँगा मैं कभी क्या
ये भी तो ना जानूँ मैं


धन्यवाद।




12 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    टूट जाए पत्थर
    ऐसा शीशा तलाश करो
    सुन्दर अग्रलेख
    आभार
    सादर

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  2. लिंक उत्तम..
    शीर्षक सर्वोत्तम..

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. अब जब हम मिलते हैं
    पूछ लेते हैं हाल चाल...

    बहुत सुंदर। रिश्तों के सतहीपन को दिखाती सहज सरल सुन्दर कविता। वाह वाह।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छी चर्चा है जी !धन्यवाद आपका मेरी रचना प्रकाशित करने हेतु !

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर पोस्ट ............. आभार
    http://savanxxx.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं

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