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शनिवार, 4 फ़रवरी 2017

568 ... हँसना मना है



यथायोग्य सभी को
प्रणामाशीष


बंद किताब पढ़ी जाए कैसे
परोसी थाली पेट में जाए जैसे

मेहनत लगती है


सपनोंं को सच बनाने में,
हौसला लगता है
बुलन्दियों को पाने में,
बरसोंं लगते है



तक़दीर का फंसाना



उसकी शादी एक मंदिर में हुई जिसमें
ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनो शामिल हुए थे।
लड़की की माँ और उसका रिक्शावाला बाप भी था।
 ख़ुशी की बात यह कि वो लड़की भी थी
जिससे उसकी शादी तय हुई थी।



देवताओं से साक्षात्कार




आओ आग और पानी के देवता से इन, उन से, सबसे
सबसे पता करते हैं कि उनको पता है कि नहीं अपनी असलियत
कि उनके अस़्त्र-शस्त्र अब हो चुके पुराने
और उनके नए रिसर्च में भी कोई चमत्कार नहीं रहा ।




जाड़े अब जा रे



   तुम उग्र रूप दिख लाने लगे,
      बड़े बूढ़ों को ठिकाने लगाने लगे।
      जमाने लगे जमीं आसमां,
      सब आजिज तुम से आने लगे।
अब बसंत के आने से,
तेवर ढीले पड़े तुम्हारे--



Rukhsat



Han bas us din he roi thi,
Par kahan jante ho k phir main kab soi hun,
Tamsha ban gayi thi main,
Bari thi hoi jag hasai bhi,
Main ik bar phir se lauti thi,
Umeed e wafa lekar teray shehr ayi thi,
Par wahan pohnchi to khabr ye suni main ne,
Tmaharay shehr walay,
Kisi or to tum se mansoob hain kar bethay,


<><>
फिर मिलेंगे .... तब तक के लिए
आखरी सलाम


विभा रानी श्रीवास्तव



6 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात दीदी
    सादर नमन
    बेहतरीन प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर प्रस्तुति।मेरी रचना को स्थान देने के लिये बहुत आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर संकलन. पांच लिंकों का आनंद अलग-अलग धाराओं में.

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर प्रस्तुति........... आभार
    http://savanxxx.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं

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