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रविवार, 29 जनवरी 2017

562....आखिर क्यों

सुप्रभात दोस्तो 

     हमेशा की तरह  रविवार 
की पाँच लिंको को लेकर  मै हाजिर 
आप के लाए है पाँच बेहतरीन लिंक 


गुठली



चूसकर फेंकी गई जामुन की एक गुठली 
नरम मिट्टी में पनाह पा गई,
नन्ही-सी गुठली से अंकुर फूटा,
बारिश के पानी ने उसे सींचा,
हवा ने उसे दुलराया.


आजकल तो ऑनलाइन सभी चीजें मिल रही है 
लाइनों में खड़े होने का चलन फिर भी वही है 
बैंक,एटीएम में और सिनेमा में है  कतारें 
टिकिट तो है ऑनलाइन ,बैठने में पर कतारे 
और उनके आशिकों की ,लम्बी लाइन लग रही है 
आजकल तो ऑन लाइन सभी चीजे मिल रही है    

चाहिए दूल्हा या दुल्हन,गए पण्डित,गए नाइ 

जब नहीं आए थे तुम...


- अली सरदार जाफरी

जब नहीं आए थे तुम, तब भी तो तुम आए थे
आँख में नूर की और दिल में लहू की सूरत
याद की तरह धड़कते हुए दिल की सूरत

तुम नहीं आए अभी, फिर भी तो तुम आए हो
रात के सीने में महताब के खंज़र की तरह
सुब्‍हो के हाथ में ख़ुर्शीद के सागर की तरह


मेरा होना बड़ा ज़रूरी था .....रहती दुनिया के लिए . मैं दुनिया के होने की सबसे अद्भुत निशानी थी और उसके होने का कारण भी. फिर भी कुछ ज़रूरी नहीं था मेरा होना. अपने होने कीयूँ और यहाँ होने की सफाई देते देते मैंने कई जिंदगियां काट दीं. 

आखिर क्यों ...

...................................
......................................

आखिर क्या और कितना
चाह सकती है
बंद हथेली से कब का छूट चुकी उँगली सी देह वाली 
किसी पुरानी किताब की गंध में
दबी पड़ी रह गई एक सिल्वर-फिश ...




अब दीजिए इजाजत 

6 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    बहुत सुन्दर
    मोबाईल से ब्लॉग पर लिंक जोड़ना हँसी खेल नही
    हौसला वनाए रखिए विरम भाई
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात अति सुंदर आभार आपका

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!! बहुत सुंदर प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बढ़िया लगा नए कलेवर में हलचल प्रस्तुति .. धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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