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शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

560....बधाई है बधाई है बधाई है बधाई है

बधाई है, बधाई है, बधाई है, बधाई है
आप सभी को गणतंत्र दिवस की बधाई है
सादर अभिवादन स्वीकारें

आइए चलें मिली-जुली रचनाओं की ओर...

आया है गणतंत्र का, शुभ दिन देखो आज
दुल्हन सी दिल्ली सजी, हर्षित सकल समाज !

इतिहास के अध्याय में
क्रांति वीर से ही शान है
स्वार्थ लोलुप सभ्यता से
रो उठा अभिमान है.

आज़ादी की सांस सुखद
बसंत सा एहसास निराला ,
कैसे दीवाने आज़ादी के अपने 
जीये बस वे हमारे सपने
खुद विषपान किये ,
थमा गए हमें अमृत  प्याला……

पहचान कर भी, मुझसे वे अनजान बनते हैं,
मतलब निकल पड़े तो, मुझे भाईजान कहते हैं,
जानता हूँ इस तरह के लोगों को बहुत ख़ूब
रंग बदलने ये गिरगिट को भी शर्मसार करते हैं। 

जमाने में शराफ़त की शिकायत भी लगी होने
जलालत की इसी हरकत से नफ़रत और बढ़ती है

फ़िजा महफ़ूज़ होगी तब कटे ना जब शज़र कोई
हवा में ताज़गी रहती तो सेहत और बढ़ती है

मज़दूर औरत की पीठ पर
बंधा बच्चा, होती है
ज़िन्दगी
अधपर ही झूलना
है जिसकी नियति
संदिग्ध मगर बेख़ौफ़ !

पर्व खुशियों के मनाने का बहाना है 
डोर उमंगो की बढाओ गीत गाना है  

घुल रही है फिर हवा में गंध सौंधी सी 
मौज मस्ती स्वाद का उत्सव मनाना है

शरम की 
बात नहीं 
बेशर्मी नहीं 
बेहयाई नहीं 
‘उलूक’ की 
चमड़ी 
खुजली 
वाली है 
खुजलाई है 

आज्ञा दें दिग्विजय को फिर मिलेंगे
सादर













13 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमन
    सही व सटीक रचनाएँ
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात सुंदर संकलन आभार आपका

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात सुंदर संकलन आभार आपका

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर सूत्रों का चयन किया है आपने आज ! मेरी प्रस्तुति को भी शामिल करने के लिए आपका हृदय से आभार दिग्विजय जी ! धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति दिग्विजय जी ।आभार 'उलूक' के सूत्र 'बधाई' को शीर्षक देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर लिंकों से सजी हलचल दिग्विजय जी।

    जवाब देंहटाएं
  7. पांच लिंकों का आनंद " में मेरी को जगह देने के लिये धन्यवाद सर

    जवाब देंहटाएं
  8. पांच लिंकों का आनंद " में मेरी रचना को जगह देने के लिये धन्यवाद सर

    जवाब देंहटाएं
  9. पांच लिंकों का आनंद " में मेरी रचना को जगह देने के लिये धन्यवाद !!

    जवाब देंहटाएं

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