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रविवार, 22 जनवरी 2017

555..............चाँद सभी का कहलाता है

सादर अभिवादन
सुबह के छः बजने वाले हैं
भाई विरम सिंह की बनाई प्रस्तुति दिखाई नहीं ही तो
मैं ही बैठ गई आपको ताजा-तरीन रचनाएं पढवाने
चलिएं देखते है अभी तक क्या -क्या लिखा गया है..............
..
क्या तुम्हे पता है?
मै आज भी वैसी ही हूँ?
तुम्हे याद है?
मेरा होना ही तुम्हारे मन मे पुलकन सी,

अपनों से ये दूरी कैसी
रिश्तों कि मजबूरी कैसी
मैं गीत नया गाऊँ कैसे
मैं शब्द नया लाऊँ कैसे

जीवित होते हुए भी 
मर चुके हो तुम 
इस जीवन में अब 
तुम्हारा स्थान वो है जहाँ 
मृत 'अपनों' की यादें रहती हैं 
तुम्हें याद तो किया जाएगा
लेकिन अब बातें न होंगीं तुमसे 

जुग जुग मरो सीरीज की पहली कविता और 
कॉमिक्स के संगम से बनी काव्य कॉमिक्स, 
"मुआवज़ा" 
शराबियों और 
सरकार पर 
कटाक्ष है,  

राक्षसी मुखौटे लगाये
उफनती लहरे
बार बार किनारो पर धकेल देती है
भरसक कोशिश करती है डराने की
मौत का भय दिखाती है

और अंत में मेरे ही ब्लॉग से
मन का कोलाहल
प्रखर हो जाता है
मौन का बसेरा मन
जब पता है 
गहरा समुद्र भी
कभी कभी मौन
हो जाता है 
एकाकी हो कर भी
चाँद सभी का कहलाता है

आज्ञा दें यशोदा को
फिर मिलते हैं कल










5 टिप्‍पणियां:

  1. सुबह की शुरुआत एक कप चाय और साथ में इतनी सुंदर रचना से हो जाए तो क्या कहने । हलचल की बहुत सुंदर प्रस्तुति । धन्यवाद ।

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  2. शुभ प्रभात सुंदर संकलन आभार आपका

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर ।
    कालेज मे lesson का काम ज्यादा होने से प्रस्तुति नही बना पाया और सूचित भी नही कर पाया ।

    जवाब देंहटाएं

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