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बुधवार, 23 नवंबर 2016

495.......तालियाँ एक हाथ से बज रही होती हैं उसका शोर सब कुछ बोल रहा होता है

सादर अभिवादन..
पाँच कदम और
फिर चलेगा निन्यानबे का चक्कर

आज की चयनित रचनाएँ.....




शाम का मंज़र कितना सुहाना होता न , 
मन मोह लेता है 
सारे पंछी अपने 
घरोंदों की तरफ 
उड़ान भरते हैं , 

पैसों से हैं, बनते बिगड़ते
रिश्ते ऐसे क्यों मैं निभाऊँ

हैं झूठी तारीफ के भूखे
अब इनको मैं क्या समझाऊँ 


घर का दरवाज़ा तो चौड़ा है बहुत
दिल का दरवाज़ा अगरचे तंग है

आइना काहे उसे दिखलाए हैं
उड़ गया चेहरे का देखो रंग है

जरा सोचो तो आखिर वे हवाएं
जो मौसम के अनुसार
बदल देती हैं अपनी दिशाएं पूर्णतया
ला सकती हैं मानसून


आज का शीर्षक...
कानों 
में अपने 
अपने ही 
हाथ लगाये 
अपना 
ही कहा 
अंधेरे में 
ढूँढने की
खातिर 
डोल रहा 
होता है 
............................

इज़ाज़त दीजिए यशोदा को
सादर


पुनः- क्षमा कीजिएगा अपने आपको रोक नहीं पाई
एक मिनट और दीजिए 









4 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर लिंक्स हैं .... आभार मुझे शामिल करने का ...

    जवाब देंहटाएं
  2. कार्टून को भी सम्‍मि‍लि‍त करने के लि‍ए आभार जी.

    जवाब देंहटाएं
  3. मेंढक अच्छा है :)
    बधाई /यशोदा जी और समस्त चर्चाकार/ ब्लाग हलचल के 100 अनुसरणकर्ता हो जाने के लिये ।
    और आभार 'उलूक' के सूत्र का शीर्षक बनाने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं

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