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रविवार, 20 नवंबर 2016

492...धन -धर्म- संकट


जय मां हाटेशवरी...

नीरज जी ने क्या खूब लिखा है...

मेरे हिमालय के पासबानो। गुलिस्तां के बागबानों।
उठो सदियों की नींद तजके तुम्हे वतन फिर पुकारता है।
लिखो बहारों के नाम ख़त ऐसा की फूल बन जाये ये खार सारे।
लगा दो रौशनी की कलमें कि जमीं पर उगने लगें सितारे।।
पलट दो पिछले हिसाब ऐसे ,उल्ट दो गम के नकाब ऐसे,जैसे सोई हुई कली का घूंघट भंवरा उघाड़ता है।
उठो सदियों की नींद ताज के की तुम्हे वतन फिर पुकारता है।।
अब पेश है आज की चयनित कड़ियां...

गरीब की  मेहनत 
"क्या हुआ ?"
"बाबूजी सरकार ने पाँच सौ रुपये बंद कर दिए हैं I हमारे देश में काला धन ज्यादा हैं न I "
 बाबूजी की आँखें बोझिल हो रो उठीं I
 "तुझे पता है बिटिया ,मैंने ये पैसे कितनी मेहनत से कमाए हैं और तू कहती है बंद हो गए I "
 "मैं सच कह रही हूँ I
 "रौशनी बिटिया अब मेरे इन रुपयों की कोई अहमियत ही नहीं रही I क्या हम सब भूखे रहेंगे I "
 "बाबूजी नहीं,सरकार नोट के बदले नोट दे रही है बस बैंक में जाना होगा I "
 बाबूजी का चेहरा खिलखिला उठा,मुस्कुराते बोले-"ला बिटिया पाँच सौ रुपये मैं बैंक जाता हूँ I "


तुरुपी चाल..
लम्बी कतार
घंटों का इंतज़ार
सब भूलेंगे
जब मिलेगा न्याय
खत्म होगा अन्याय !


स्‍मृतियों को कभी जगह नहीं देनी पड़ती...
ये खुद-ब-खुद
अपनी जगह बना लेती हैं
एक बार जगह बन जाये तो
फिर रहती है अमिट
सदा के लिए

दरगाह
ख़ामोशी की उसी दरगाह पर
मैंने तुम्हारे नाम
 ऐसे कई प्रेमपत्र चढ़ाएं है
जिन पर किसी को तुम्हारा नाम
ढूंढने पर भी न मिले शायद
लेकिन तुम्हे तुम्हारा वजूद
नाम ,पता और अक्स  समेत
उसकी हर इबारत में महसूस होगा ।

धन -धर्म- संकट
कुछ इन सब चिंताओं से मुक्त होकर इसी लाइन में लगे -लगे महाप्रस्थान कर गए। अर्थ के लाइन में लगकर अनर्थ के शिकार हुए के बलिदान की गाथा नव उदय इतिहास में अवश्य अंकित होगा। गुलाबी रंग पाने की अभिलाषा वातावरण को गुलाब की खुसबू से सुगन्धित कर रखा है। ऐसे मौके जीवन में कभी कभी आते जहाँ आप साबित कर सकते की आप एकाकी नहीं है और अपने इतर समाज और देश  के बारे में भी  सोचते है।  ऐतिहासिक घटनाओ के उथलपुथल में अपना योगदान देना चाहते है। ऐसा मौका जाने न दे और इस पक्ष या उस पक्ष किसी के भी साथ रहे आपके योगदान को रेखांकित अवश्य किया जाएगा। किन्तु फिर भी इस शारीरिक कवायद में शामिल होकर फिलहाल यह परख ले की इस जदोजहद में खड़े होने की क्षमता है या नहीं। नहीं तो इस मशीन के द्वारा त्याज्य अवशेष का विशेष उपभोग नहीं कर पाएंगे।

बनी अब राख पत्थर का किला है
मिला जो प्यार में अब साथ तेरा
नहीं  अब  प्यार  से कोई  गिला है
..
दिखायें दर्द अपना अब किसे हम
हमारे दर्द का यह सिलसिला है
आज बस इतना ही...

अंत में...सोशियल मीडिया से..
एक बड़ा तालाब था, जिसमें कुछ हिंसक मगरमच्छ थे। मटमैले पानी की वजह से मगरमच्छ को राजा के सिपाही पकड़ नहीं पाते। उन्हें पकड़ने के लिए राजा ने फैसला किया तालाब का पूरा पानी सूखा दिया जाये। पर छोटी मछलियां न मरे इसलिए मगर को पकड़ते ही, तालाब में नया साफ पानी छोड़ने का निर्णय भी लिया।
जैसे ही पानी सूखा, मगरमच्छ तो उभयचर था वो जंगल में भाग गया। पर बेचारी छोटी मछलियां पानी के आभाव में तड़प तड़प कर छटपटाने लगी। तब राजा के सिपाहियों ने मछलियों को समझाया जालिम
मगरमच्छ से बचने के लिए यह कदम जरुरी था, कुछ दिन सब्र करो साफ़ पानी आ रहा है।

अब प्रश्न यह है ,
साफ़ पानी आने तक क्या छोटी मछलिया बचेगी?
क्या राजा के सिपाही मगरमच्छ को पकड़ पाएंगे?
साफ पानी आने पर मगर वापस न लौटे, और छोटी मछलियों का बलिदान व्यर्थ न जाये इसके लिए क्या तालाब की तट बंदी होगी? क्या राजा को इस लोक हितकारी कदम के साथ पहले से पर्याप्त साफ पानी की व्यवस्था नहीं करनी चाहिए थी? आगे की कहानी सभी न्यूज चैनलों पर लाइव है, देखते रहिये......

धन्यवाद।













                   

4 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी व समयानुकूल प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. विलम्ब से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ कुलदीप जी ! तीन दिन से नेटवर्क काम नहीं कर रहा था इसलिए मजबूरी थी ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से आभार !

    जवाब देंहटाएं

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