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बुधवार, 16 नवंबर 2016

488.....चेहरे को खुद ही बदलना आखिर क्यों नहीं आ पाता है

सादर अभिवादन..
आज से माह अगहन शुरु
माता अन्नपूर्णा की कृपा आप सभी पर बनी रहे

आज की चयनित रचनाएँ.....

नव प्रवेश...


सवेरा........... शुभा मेहता
उठो जागो मन.....
हुआ नया सवेरा
आ गये आदित्य
लिए आशा किरन नई




घर मेरा है
चलेगी मर्जी मेरी
स्व का सोचना
छी खुदगर्जी तेरी


हमारे कॉलेज में कक्षा 6 से लेकर कक्षा 8 तक एक वैकल्पिक विषय होता था. हमको पुस्तक कला, काष्ठ कला और ज्यामितीय कला में से कोई एक विषय चुनने की आज़ादी थी. काष्ठ कला बड़ा बोरिंग और कठिन विषय माना जाता था



अगर पड़ोसी मुल्क को मुँह की चटा देने के लिए ही इस १००० के नोट का कत्ल हुआ है तो इसे शहादत मान कर इसकी मौत को शहीद का दर्जा मिलना चाहिये और इस तरह से शहीद हो जाने पर १ करोड़ का मुआवजा तो बनता ही है उस पालक का, जिसने इसे अब तक बड़े जतन से पाला और संभाला था...


दिन-दोपहर मे नजर आ रहे इनको तारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी,
सब 'फेंकू' की सर्जिकल स्ट्राइक के मारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी।


आज का शीर्षक..

कुछ मत कहना 
समय के 
साथ
कुछ चेहरे
बहुत कुछ
नया भी 
करना
सीख ही
ले जाते हैं

लेती हूँ इज़ाज़त आप सबसे
सादर
यशोदा






5 टिप्‍पणियां:

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