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मंगलवार, 1 नवंबर 2016

473...फिर अंधेरों से क्यों डरें!

जय मां हाटेशवरी...

भाई दूज या भैया दूज का त्योहार आज देशभर में धूमधाम से मनाया जा रहा है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है और इसे यम द्वितीया
भी कहते हैं। भाई दूज में बहनें रोली और अक्षत से अपने भाई को तिलक लगाकर उसके उज्जवल भविष्य की कामना करती हैं। तो वहीं, भाई, बहनों को उपहार देकर उनकी खुशियों
को दोगुना कर देता है। भाई बहन के पर्व के रूप में रक्षाबंधन की ही तरह भाई दूज का भी बड़ा महत्व है, जो दिवाली के 2 दिन बाद आता है। साथ ही यह दीपोत्सव का
समापन दिवस भी है।
भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि
इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा। कार्तिक शुक्ला का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए
निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया।
यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म
है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन
करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।
यमुना ने कहा कि भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करे, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज
ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह की। इसी दिन से पर्व की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें
यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।
आप सभी को मेरी ओर से भाई दूज  की शुभकामनाएं...
अब पेश है...आज के लिये मेरी पसंद की कुछ रचनाएं...

फिर अंधेरों से क्यों डरें!
प्रदीप हम हैं जो
तम से सदा लड़ते रहे,
हम पुजारी, प्रिय हमें है
ज्योति की आराधना,
हम नहीं हारे भले हो
तिमिर कितना भी घना,
है प्रखर आलोक उज्ज्वल
स्याह रजनी के परे

स्ट्राइक बचाकर रखिये ''सरजी-कल'' के लिए..
बयानबाज़ी ऐसे हो रही है मानो देश की सामरिक शक्ति का राजनैतिक इक्षाशक्ति के आगे कोई स्थान नहीं ही है.सत्तारूढ़ पार्टी अपनी पीठ खुद थपथपा रही है, वही विपक्षी
पार्टिया पंजाब और यूपी चुनावों को केंद्रित कर इस मुद्दे पर अपनी अलग टाइप के बयानबाजी से सफलता के सूत्र तलाशने में जुटे है. ऐसी बयानबाजी का क्या लाभ की
बयान आप अपनी सरजमीं में दे रहे है और हिट हो रहे है पाकिस्तानी मीडिया में.

  काहू न कोउ सुख दुख कर दाता।
अर्थः-लक्ष्मण जी मीठी,कोमल,ज्ञान वैराग्य तथा भक्ति से भरपूर वाणी से बोले-ऐ निषादराज! संसार में न कोई किसी को सुख पहुँचा सकता है, न दुःख। हे भाई! सुख दुःख
जीव को अपने कर्मों के अनुसार मिलते हैं। योग अर्थात् मिलाप वियोग अर्थात् बिछोड़ा। भले तथा बुरे कर्मों का भोगना, मित्र-शत्रु तथा मध्यम अर्थात् निष्पक्ष आदि
सब भ्रम का जाल है। इसके अतिरिक्त जन्म-मरण, जहां तक इस संसार का पसारा है-सम्पत्ति-विपत्ति-कर्म और काल-पृथ्वी घर-नगर-कुटम्ब,स्वर्ग व नरक एवं जो कुछ भी संसार
में देखने सुनने और विचारने में आता है, यह सब माया का पसारा है। इसमें परमार्थ नाम मात्र भी नहीं है। जैसे सपने में राजा भिखारी होवे और कंगाल इन्द्र हो जावे
परन्तु जागने पर लाभ या हानि कुछ नहीं-वैसे ही जगत् का प्रपंच स्वप्न के समान मिथ्या है। जागने पर पता लगता है कि न कोई लाभ हुआ है और न कोई हानि हुई है। यह
तो सब माया का खेल था, यथार्थ कुछ भी नहीं था।

कानून को जानें व समझें
4. माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जनहित याचिका क्रमांक-173, 177/99 में दिनांक 17.10.2006 को पारित आदेश के अनुसार राज्य शासन के महिला एवं बाल विकास विभाग
द्वारा महिला उत्पीड़न मामले की सतत निगरानी करने, महिला अत्याचार के विरूद्ध कारगर कार्यवाही कर पीड़ित महिलाओं को समुचित मार्गदर्शन एवं सहायता दिलाने के लिये
प्रत्येक जिले में महिला उत्पीड़न निवारण समिति का गठन करना आवश्यक किया गया है।
5. राज्य शासन द्वारा समेकित बाल विकास सेवा योजना, पोषण आहार कार्यक्रम, किशोरी शक्ति योजना, स्वयंसुधा, एकीकृत महिला सशक्तीकरण कार्यक्रम, आयुष्मती योजना,
बालिका समृद्धि योजना, दत्तक पुत्री शिक्षा योजना, महिला जागृति शिविर, महिला कोष्ठ की़ ऋण योजना, महिला सशक्तीकरण मिशन, स्व-शक्ति परियोजना कार्यक्रम महिला
एवं बाल कल्याण हेतु दिलाया जाता है। इसके साथ ही नारी निकेतन, बाल संरक्षण गृह, शासकीय झूला घर, मातृ कुटीर, बालवाड़ी सह संस्कार केन्द्र भी संचालित होते हैं।
दिवाली पर लक्ष्मी पूजन क्यों ?
 गीता में श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं -अर्जुन जो मुझे जिस रूप में भजता है मैं भी उसे उसी रूप में भजता हूँ प्राप्त होता है। अब चाहे आप गणेश को पूजो या
लक्ष्मी को ,देवताओं को पूजने से प्राप्ति जल्दी होती है लेकिन वह टिकाऊ नहीं होती सारा लक्ष्मी पूजन लाभ केंद्रित है ,शुभ लाभ ,वणिक वर्ग के लिए इसका ,लक्ष्मी
पूजन का बड़ा महत्व है। इति आपका मान्यवर एक बार फिर से शुक्रिया आपने बड़ा प्रासंगिक सवाल उठाया सकाम कर्म से जुड़ा हुआ -लक्ष्मी पूजन क्यों दिवाली पर।
पावर्स सारी एक की हैं उसे कृष्ण कहो या राम ,राम कहो या रहीम ,अलबत्ता देवताओं को अंतरित की गई हैं।
विज्ञानियों ने अक्सर हिग्स फील्ड की सर्व -व्यापकता की बात की है लेकिन इसकी पुष्टि के लिए स्वयं हिग्स बोसॉन के अस्तित्व पर मोहर लगना ज़रूरी था। स्विट्ज़रलेंड
के प्रयोगों से आदिनांक अर्द्ध सत्य ही सामने आया है। आ -दिनांक कोई नहीं जानता -पदार्थ के बुनियादी कणों को पदार्थ होने का बुनियादी गुण द्व्यमान (संहति या
मॉस )कौन प्रदान करता है। अनुमान मात्र है यह काम हिग्स बोसॉन का है जो द्रव्य का एक बुनियादी लेकिन अति -अल्पकालीन कण है जिसका अस्तितिव वन टेंथ सेकिंड्स आफ
ए सेकटीलियन (टेन टू दी पावर माइनस ट्वैंटीटू )बताया गया है।

दीपों का अभिनन्दन -
इस भू-लक्षमी् की पूजा में तत्पर हो ,
जो दीप जग रहे सरहद की देहरी पर ,
वे दूर-दूर तक रोशन करें दिशायें ,
जन-जन के उर की  स्नेह -धार से सिंच कर  .
सिसकते घाव
कैसा  छलावा दिया,
भोली नदिया को,
ऐ सागर तूने,
मिलन की आस
दोनों में है,
पर
पतन
नदी ही सहती है ।।

फिर मिलते हैं'
अब की बार नही
अगली  बार मिलेंगे
बहुत काम बाकी हैं
जो हमारे साझी थे
कुछ मेरे और कुछ तुम्हारे
तुम्हारे पास शायद फुर्सत है
कुछ पुनरावलोकन कर लो
अगली बार ऐसा करना
मेरे और तुम्हारे काम साझा करना
अगर उसने चाहा तो
तो एक बार और सही
“चलो फिर मिलते हैं .”
लगता है...दिवाली का जोष थमा नहीं है...
इस लिये रचनाएं पांच से अधिक हो गयी...
फिर मिलते हैं...
धन्यवाद।




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