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सोमवार, 24 अक्टूबर 2016

465.........हिम्मत कर छाप

सादर अभिवादन

अभी समय किसी के पास नहीं है
सब फरमाईशें पूरी करने व करवाने में लगे हैं

आज की मेरी पसंद की रचनाएँ...

लिख देती हूँ.......प्रतिभा स्वाति
आप लिखें वेदना 
और... बिचारा पाठक 
वाह -वाह कर जाता है !
दोष उसका नहीं ,वो 
शिष्टाचार निभाता है !



दिल जो  जलेगा जिन्दगी भर
इच्छाएं रह जाएगी आँखों में
खून खोलेगा मजबूरियों पर
दर्द में होगा बदन, और 
होकर वास्तविकता से रूबरू
होगा इस सफर का अंत.



बिटिया चिंता मुक्त है, रक्षित घर की सींव
प्रहरी भी निश्चिन्त लख, नव नीड़ों की नींव

सेना के संकल्प का, बिटिया रखती मान
देते सैनिक हौसला, छुटकी भरे उड़ान 


चिरनिद्रा सी जीवन तम में,
विराज रही जाने किस भ्रम में!
इक आहट जो होश में लाये,
भयाक्रांत, व्याकुल कर जाए।  
जो क्षण सत्य का भान कराये,


हँसते हुए पति को देख नार मुस्काई
तनखा तेरी बढ़ी नहिं, मुस्कान कहाँ से आई
जा मुस्कान कहाँ से आई, पूछे नार मुंह पिचकाय
आज हंसे तो हंसे भले, आगे अब नै हंसी आए


चार साल पहले 

को
बता कर 
स्पैम
रिपोर्ट 
फटाफट
कर दी 
जायेगी
पोस्ट 
तुरन्त
डीलिट कर
सूचना 
प्रसारित
की जायेगी

आज्ञा दें यशोदा को

4 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया सूत्रों के साथ पेश आज की हलचल में 'उलूक' के अखबार की पुरानी एक खबर 'हिम्मत कर छाप'को फिर से दिखाने के लिये आभार यशोदा जी ।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. वंदना राम सिंह की कविता सुन्दर है. छुटकी की उड़ान में ही देश की उड़ान है.

    जवाब देंहटाएं

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