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बुधवार, 8 जून 2016

327.....रूद्र अब की बाढ़ में इस देश का कूड़ा गहें

सादर अभिवादन
देखते ही देखते साल गुज़र गया
लगता था रास्ता लम्बा है
अब तो सामने मील का पत्थर भी
दिखाई पड़ने लगा है....

आज लगता है कुछ पढ़ ही नही पाई
सामने जलेबी दिख गई
मगन हो गई उसी में.... 


सच को ..... 
चाशनी में लपेटना ..... 
हमेशा भूल जाती हूँ .....
जबकि जलेबी पसंद है ..... 
लेकिन मिर्ची ज्यादा लुभाती है .....
-विभा रानी श्रीवास्तव उवाच

फेसबुक जैसा असली दुनिया में भी ब्लॉक का आप्शन होना चाहिये था
बार बार साधू की भूमिका नहीं निभानी पड़ती किसी बिच्छू के लिए
नजरों के सामने गुलाटी मारते देखना ज्यादा दंश देता होगा न


आप लाख सिर पटक लीजिए, बिहार में प्रतिभा पर सिफारिश भारी पड़ती है, पड़ती रहेगी। कोई रूबी, कोई सौरभ, सर्वश्रेष्ठ छात्रों की प्रतिभा भर भारी पड़कर श्रेष्ठतम साबित होता रहेगा। जहां कवि की कल्पना भी नहीं पहुंच पाए, वहां पैरवी पहुंचती रहेगी।

मैंने रास्ते से कटीली झाड़ियाँ बटोरीं
और उसके निकास पर बिछा दी
वो उनपर पैर रखकर चला गया
मैंने देखा कुछ दूर जाकर उसने पैर के काटें निकाले



फिक्र बिलकुल न करें आग बुझाने वाले। 
पानी पानी हैं सभी आग लगाने वाले।

मुझको अहसासे-मुहब्बत पे गुमाँ है लेकिन,
उनको अहसास करा देंगे कराने वाले।


ईंट ईंट घर की दरकने लगी
नीव खुद-ब-खुद ही सरकने लगी

बात जब बदलने लगी शोर में
छत दरो दिवार चटकने लगी

आज की शीर्षक रचना...

साधुओं की  बेहयाई है शिखर पर आजकल  
मन वचन कर्मों से डाकू,फिर भी साधू से लगें !

धर्म रक्षक हैं परेशां, ताकत ए साईं की देख
कैसे इस दमदार शिरडी को भी, गेरू से रंगें !


बस भी कर यशोदा
गिनती भूल गई क्या
........




10 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    सस्नेहाशीष छोटी बहना
    बहुत बहुत धन्यवाद आपका

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्तर
    1. शुभप्रभात...
      आभार सर आप का...
      कोशिश तो यही है गिनती जारी रहे...

      हटाएं
  3. बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छे है सभी सूत्र ...
    आभार मुझे शामिल करने का ...

    जवाब देंहटाएं
  5. कभी भूलना भी सुखद रहता है , चाहे किसी और के लिए ही सही ...
    आभार !

    जवाब देंहटाएं

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