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बुधवार, 11 मई 2016

अंक 299 में आज ग़ज़ल ही ग़ज़ल

सादर अभिवादन..
आज के इस अंक में
कुछ खास तो है
ग़ज़ल ही ग़ज़ल

तो ...चलिए चलें..



चश्म तर थे पर लड़े भी ख़ूब थे
याद है क्या हम मिले भी ख़ूब थे

मंज़िले उल्फ़त रही हमसे जुदा
गो के उस जानिब चले भी ख़ूब थे


छतरी लगा के घर से निकलने लगे हैं हम 
अब कितने एहतियात से चलने लगे हैं हम 

हो जाते हैं उदास कि जब दो-पहर के बाद 
सूरज पुकारता है कि ढलने लगे हैं हम 


कैद से आज़ाद कर के यूँ हवा ले आयेगा !
वक़्त का घोड़ा पता तूफ़ान का ले आयेगा !

है सिकंदर शेर  फिलवक्त ,इसको कट जाने तो दें ,
पर्वतों में रास्ता ,खुद फासला ले आयेगा.


जितना बड़ा है क़द तेरा, उतना अज़ीम है,
ऐ पेड़! तू भी राम है, तू भी रहीम है.

ईमान दार लोगों के, ज़ानों पे रख के सर,
बे खटके सो रहे हो, ये अक़्ले सलीम है.


मन में फुदक फुदक फुदकने वाली चिरई भाग गई 
अब की आई ऐसी गरमी कि बालम चिरई भाग गई 

जाती रहती थी पहले भी इस आंगन से उस आंगन
लेकिन अब की आंगन छोड़ कर जंगल भाग गई 


दिल से उसके जाने कैसा बैर निकला 
जिससे अपनापन मिला वो ग़ैर निकला 

था करम उस पर ख़ुदा का इसलिए ही 
डूबता वो शख़्स कैसा तैर निकला 

और एक ग़ज़ल..जो  कि फिल्मी है
जिसे सुनना पड़ेगा..
आज्ञा दें..
यशोदा






6 टिप्‍पणियां:

  1. तीसरे सैकड़े की ओर अग्रसर हलचल । बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  2. दिल से उसके जाने कैसा बैर निकला
    जिससे अपनापन मिला वो ग़ैर निकला

    उम्दा

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभप्रभात...
    सुंदर संकलन।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  5. Khubsoorat tarashe links, Dhanyewad 1 Dayanand Pande ji ka andaze byan vartman ghatnao ki anubhhoti

    जवाब देंहटाएं

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