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शनिवार, 23 अप्रैल 2016

281~ ब्रजेश कानूनगो



यथायोग्य सभी को
प्रणामाशीष

तसल्ली की बात है कि
उम्मीद के कुछ परिंदे देशांतर से अभी भी
आते रहते हैं पर्यटन करने 
भरोसा यह भी है कि
संगिनी बजाएगी सितार
और कर लेगी किसी विलायती चिड़िया से नई दोस्ती ~ ब्रजेश कानूनगो





ऋतुराज ब्याहने  आ पहुँचा,
जाने की जल्दी आज पड़ी हो।
और कोकिला  कूँक-कूँक  कर, गाये मंगल ज्योनार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार ~ आनन्द विश्वास




आम का शर्बत और ठंडाई भाये
आइसक्रीम बहुत ललचाये रे
सजन एसी लगा दो
टप- टप-टप-टप पसीना टपके
सोलह श्रृंगार बहा जाय रे ~ कंचन प्रिया





अति उत्साहित था मेरा मन,
नजरों में बसा था तेरा तन।
नहीं सब्र था पलभर मुझको,
स्पर्श किया उद्धेलित हो तुमको।
सहलाया मैंने बड़े प्रेम से ~  जयन्ती प्रसाद शर्मा






ज़िंदगी जीने के दो ही तरीके हैं..पहला..
ऊपरवाले पर सबकुछ छोड़ दो और निश्चिंत हो जाओ...किस्मत जो भी दे, 
उसे खुशी-खुशी स्वीकारो..अच्छा मिले तो बढ़िया..नहीं मिले तो कड़वा घूंट समझ कर पी जाओ...
दूसरा..जीतोड़ मेहनत करो और अपना भाग्य खुद बनाओ...
दोनों में से कोई भी तरीका अच्छा या बुरा नहीं है ~ अंशु प्रिया प्रसाद







होड़ में दौड़ते पैकेटों के समय में 
शुक्रवारिया हाट से चुनकर लाई गयी है बेहतर मक्का
सामने बैठकर करवाई है ठीक से पिसाई
लहसुन के साथ लाल मिर्च कूटते हुए
थोड़ी सी उड़ गयी है चरपरी धूल आँखों में
बड़ गई है मोतियाबिंद की चुभन कुछ और ज्यादा ~ ब्रजेश कानूनगो


ब्रजेश कानूनगो की कविता को जरुर से पढ़ें
समझेंगे मैंने 10 दस लिंक्स लगाये



फिर मिलेंगे ..... तब तक के लिए
आखरी सलाम


विभा रानी श्रीवास्तव


4 टिप्‍पणियां:

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