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शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

259....नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।

जय मां हाटेशवरी...

जेएनयू में 9 फरवरी को लगे देश विरोधी नारों के बाद....
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा
 [नई पीढी को भारत माता की जय के नारे लगाना सिखाया जाना चाहिए.]
ओवैसी ने कहा, [मैं 'भारत माता की जय' नहीं बोलूंगा...
अगर आप मेरी गर्दन पर चाकू भी रख देंगे तब भी मैं यह (नारा) नहीं लगाउंगा.]...
 उत्तर में.. शिवसेना ने कहा पाकिस्तान जाओ...
 जावेद अख्तर ने राज्यसभा मे  भारत माता की जय, भारत माता की जय, भारत माता की जय के नारे लगाए...
आज की प्रस्तुति में...
इसी विषय को उजागर करती...
हिंदी ब्लौगरों की कलम से, कुछ रचनाएं.....
क्या है विवाद?
जेएनयू में 9 फरवरी को लेफ्ट स्टूडेंट्स के ग्रुप्स ने संसद पर हमले के गुनहगार अफजल गुरु और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के को-फाउंडर मकबूल भट की
याद में एक प्रोग्राम ऑर्गनाइज किया था। इसे कल्चरल इवेंट का नाम दिया गया था। जेएनयू में साबरमती हॉस्टल के सामने शाम 5 बजे उसी प्रोग्राम में कुछ लोगों ने
देश विरोधी नारेबाजी की। इसके बाद लेफ्ट और एबीवीपी स्टूडेंट्स के बीच झड़प हुई। 10 फरवरी को नारेबाजी का वीडियो सामने आया। दिल्ली पुलिस ने 12 फरवरी को नारेबाजी
के आरोप में देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया। जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडेंट कन्हैया कुमार को अरेस्ट कर लिया। जबकि खालिद अभी फरार है। इस केस में गुरुवार
को क्या हुआ?

अब देशद्रोह के नारों को झुठलाने की कोशिश।
16 फरवरी को पुलिस ने जेएनयू के शिक्षक एस.ए. गिलानी को भी देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन अभी भी उन छात्र का पता नहीं चल रहा, जिन्होंने
खुलेआम भारत विरोधी नारे लगाए थे। गायब छात्रों में उमर खालिद नाम का छात्र भी शामिल है। उमर खालिद ने ही जेएनयू में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति
ली थी, लेकिन जब प्रशासन को यह पता चला कि 9 फरवरी को देशविरोधी घटना हो सकती है तो प्रशासन ने 8 फरवरी को ही सांस्कृतिक कार्यक्रम की मंजूरी को रद्द कर दिया।
इसे कुछ छात्रों की दिलेरी ही कहा जाएगा कि अनुमति नहीं मिलने के बाद भी जेएनयू के केम्पस में खुलेआम भारत की बर्बादी और पाकिस्तान की खुशहाली के नारे लगाए
गए। इस पूरे मामले में अखिल भारतीय आतंकवादी निरोधक मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष बिट्टा का ताजा बयान मायने रखता है। बिट्टा ने कहा कि जब कांग्रेस के शासन में
सिक्ख समुदाय के धार्मिक स्थल स्वर्ण मंदिर में सेना ने प्रवेश कर आतंकवादियों को बाहर निकाला तो अब भाजपा की सरकार जेएनयू के केम्पस से अलगाववादियों को बाहर
क्यों नहीं निकालती? सरकार को जेएनयू को भारत विरोधी तत्वों का अड्डा नहीं बनने देना चाहिए। यदि अभी बड़ा ऑपरेशन नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में देश की
राजधानी दिल्ली में जेएनयू का केम्पस अलगाववादियों का नहीं बल्कि आतंकवादियों का अड्डा बन जाएगा।

जेएनयू में लगाये गए नारे अभिव्यक्ति की आजादी नही ।
- जेएनयू में 9 फरवरी को हुए कार्यक्रम में जो पोस्टर और नारे लगाए गए थे उसकी तुलना दिल्‍ली हाईकोर्ट ने संक्रमण से की है। हाईकोर्ट ने कहा है कि यह संक्रमण
जेएनयू के छात्रों में फैल गया है और यह महामारी का रूप ले इससे पहले इस पर नियंत्रण जरूरी है।
- यह राष्ट्रविरोधी नारे लगाने का मामला है जिसका राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा पैदा करने का प्रभाव है। कन्हैया को सशर्त राहत देने वाले उच्च न्यायालय ने कहा
कि वह ऐसी किसी गतिविधि में सक्रिय या निष्क्रिय रूप से हिस्सा नहीं लेंगे जिसे राष्ट्रविरोधी कहा जाए।
-हाईकोर्ट ने कहा है कि नारेबाजी व पोस्टरों में जिस तरह का विरोध हुआ या भावनाएं जाहिर की गईं उससे छात्र समुदाय को आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है।
-हाईकोर्ट ने कहा है कि इस तरह की गतिविधियों से शहीद के परिवारों का मनोबल गिरता है जो सीमा पर देश की रक्षा करते हुए कुर्बानी देते हैं।
-जस्टिस प्रतिभा रानी ने कहा है कि जेएनयू के शिक्षकों को रास्ते से भटके छात्रों को सही रास्ते पर लाने में भूमिका निभानी चाहिए, जिससे कि वे देश के विकास
में योगदान दे सकें, उस लक्ष्य को प्राप्त कर सकें जिसके लिए जेएनयू की स्थापना हुई।
-जेएनयू में कार्यक्रम में जो भी नारे या पोस्टर लगाए गए थे, उसे अभिव्यक्ति की आजादी नहीं कही जा सकती। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी बात कहने का अधिकार है लेकिन
यह अधिकार संविधान के दायरे में होनी चाहिए। अनुच्छेद 51ए में जिम्मेदारियां भी हैं।









... तो भगत सिंह और उनके साथी ये नारे क्यों लगाते थे?
कोई नारा, कोई शख्स या संगठन यूं ही नहीं लगाता. नारों का मुकम्मल दर्शन होता है. वे दर्शन, महज़ चंद शब्दों के ज़रिए विचारों की शक्ल में ज़ाहिर होते हैं.
ये मौजूदा हालात पर टिप्पाणी करते हैं. अक्सर ये आने वाले दिनों का ख़ाका भी ज़ाहिर करते हैं. इसलिए कुछ लोग या संगठन कुछ नारों पर ज़ोर देते हैं और कुछ, कुछ
नारों से दूर रहते हैं. इसलिए नारों के पीछे छिपे विचारों को जानना, उनके इतिहास को समझना ज़रूरी होता है.

भारत माता की जय
और कौमी ताकतें जब भी किसी समाज में मजबूत होती हैं तो वहां उत्तर दक्षिण, जाति- धर्म और क्षेत्र के झगङे बढ़ने लगते हैं। इन ताकतों का उदेश्य ही खुद को दूसरों
से अलग साबित कर अपनी पहचान बनाना होता है। इसलिए नफरत फैलाने और बंटवारे तक से गुरेज नहीं किया जाता। अत: भारत की जय बोलने और भारत माता की जय बोलने में लंबा
वैचारिक फासला है। आप इन दोनों में जो भी बोलें, उससे पहले यह तय कर लें कि आप बसुधैवकुटुम्बकम के विचार के साथ हैं या आप महज राष्ट्रवादी हैं। दोनों एकदम अलग

     भारत माता की जय के नारे लगाना गर्व की बात 
ओवैसी बंधु आए दिन घटिया बयान देते रहतें है.लेकिन इस बार तो ओवैसी ने सारी हदें पार कर दी.दरअसल एक सभा को संबोधित करते हुए ओवैसी ने कहा कि हमारे संविधान
में कहीं नहीं लिखा की भारत माता की जय बोलना जरूरी है,चाहें तो मेरे गले पर चाकू लगा दीजिये,पर मै भारत माता की जय नही बोलूँगा.ऐसे शर्मनाक बयानों की जितनी
निंदा की जाए कम है .इसप्रकार के बयानों से ने केवल देश की एकता व अखंडता को चोट पहुँचती है बल्कि देश की आज़ादी के लिए अपने होंठों पर भारत माँ की जय बोलते
हुए शहीद हुए उन सभी शूरवीरों का भी अपमान है,भारत माता की जय कहना अपने आप में गर्व की बात है.इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है कि जनता द्वारा
चुने गये प्रतिनिधि अपने सियासी हितो की पूर्ति के लिए इस हद तक गिर जाएँ कि देशभक्ति की परिभाषा अपने अनुसार तय करने लगें.


आजादी के संघर्ष के प्रतीकों की परीक्षा
आजाद भारत में सत्ता के राष्ट्रवाद और सत्ता से आजादी के नारे तले आकर खडी हो जायेगी यह किसने सोचा होगा। क्योंकि राष्ट्रवाद का प्रतीक भारत माता की जय तो संघर्ष
का प्रतीक भगत सिंह। तो क्या आजादी के संघर्ष के प्रतीकों के आसरे मौजूदा राजनीति देश के भीतर आजादी से पहले के भारत के हालात देख रही है। या फिर मौजूदा वक्त
में भारत माता और भगत सिंह को दो राजनीतिक विचारधाराओं में बांट कर राजनीति का नया ककहरा गढ़ा जा रहा है। जिससे एक तरफ भारत माता की जय, राष्ट्रवाद के अलघ को
जगाये और मौजूदा राजनीति की धारा बने। तो दूसरी तरफ भगत सिंह का इन्कलाब आजादी के संघर्ष की तर्ज पर मौजदा राजनीतिक सत्ता को आजादी के नारे से ही चुनौती देता
नजर आये। जाहिर है यह दोनों हालात देश के मौजूदा हालात में कहा और कैसे फिट बैठेगें यह कोई नहीं जानता। ठीक उसी तरह जिस तरह 1967 में नक्सलबाडी से जो लाल सलाम
का नारा निकला उसे 2011 में पश्चिम बंगाल की जनता ने ही खारिज कर दिया। और 1990 में अयोध्या आंदोलन के वक्त जय श्रीराम के नारे ही जिस तरह हिन्दुत्व का प्रतीक
बन गया । लेकिन आजतक ना अयोध्या में राम मंदिर बना और ना ही जय श्रीराम का नारा बचा। तो फिर भारत माता के आसरे जिस राजनीतिक राष्ट्रवाद को मौजूदा वक्त में खोजा
या नकारा जा रहा है, उसका सियासी हश्र होगा क्या यह कोई नहीं जानता। लेकिन भारत में भारत माता के नाम पर दो मंदिर ऐसे जरुर है जो बताते है कि आजादी से पहले
और आजादी के बाद भी भारत माता को जिस रुप में देखा-माना गया उस रुप में मौजूदा राजनीति भारत माता को मान्यता नहीं दे रही है। क्योंकि वाराणसी और ॠषिकेश में
मौजूद भारत माता के मंदिर के आसरे राष्ट्रवाद के उस सच को भीजाना समझा जा सकता है जब आजादी को लेकर संघर्ष भी था और भारत माता के लिये जान न्यौछवर करने का जुनून
भी था। और दोनों ही मंदिरों की पहचान उस भारत से जुड़ी है संयोग से जिसे मौजूदा सियासी राजनीति ने हाशिये पर ठकेल दिया है।


वन्दे मातरम् पर देश द्रोहियों को चेतावनी देती एक माइक्रो पोस्ट ............................ MICRO POST ON VANDE MATRAM
अब हमें इस पर कोई फतवा स्वीकार नहीं है | अगर इस पर कोई विवाद था भी तो वो 1947  के पहले सुलझा लिया गया था | एक और प्रयास 2006 में भी किया जा चुका है | किन्तु
अब हम सभी भारत माता के बच्चों की हैसियत से इन फतवा जारी करने वालों को और उनके सरपरस्तों को अंतिम चेतावनी दे रहे हैं |
समझ गए तो ठीक वरना ...................................... | "
भारत माता की जय ||


अब अंत में...
उदयप्रताप सिंह जी की ये कविता....
चाहे जो हो धर्म तुम्हारा चाहे जो वादी हो ।
नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।‍‍‌
जिसके अन्न और पानी का इस काया पर ऋण है
जिस समीर का अतिथि बना यह आवारा जीवन है
जिसकी माटी में खेले, तन दर्पण-सा झलका है
उसी देश के लिए तुम्हारा रक्त नहीं छलका है
तवारीख के न्यायालय में तो तुम प्रतिवादी हो ।
नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।
जिसके पर्वत खेत घाटियों में अक्षय क्षमता है
जिसकी नदियों की भी हम पर माँ जैसी ममता है
जिसकी गोद भरी रहती है, माटी सदा सुहागिन
ऐसी स्वर्ग सरीखी धरती पीड़ित या हतभागिन ?
तो चाहे तुम रेशम धारो या पहने खादी हो ।
नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।
 जिसके लहराते खेतों की मनहर हरियाली से
रंग-बिरंगे फूल सुसज्जित डाली-डाली से
इस भौतिक दुनिया का भार ह्रदय से उतरा है
उसी धरा को अगर किसी मनहूस नज़र से खतरा है
तो दौलत ने चाहे तुमको हर सुविधा लादी हो ।
नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।
अगर देश मर गया तो बोलो जीवित कौन रहेगा?
और रहा भी अगर तो उसको जीवित कौन कहेगा?
माँग रही है क़र्ज़ जवानी सौ-सौ सर कट जाएँ
पर दुश्मन के हाथ न माँ के आँचल तक आ पाएँ
जीवन का है अर्थ तभी तक जब तक आज़ादी हो ।
नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।
चाहे हो दक्षिण के प्रहरी या हिमगिरी वासी हो
चाहे राजा रंगमहल के हो या सन्यासी हो
चाहे शीश तुम्हारा झुकता हो मस्जिद के आगे
चाहे मंदिर गुरूद्वारे में भक्ति तुम्हारी जागे
भले विचारों में कितना ही अंतर बुनियादी हो ।
नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।


धन्यवाद।



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