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रविवार, 13 मार्च 2016

240..उजाले के लिए रातों में, नन्हा दीप जलता है

सभी को प्रणाम 
सुप्रभात 
आइए चलते है
आज की कड़ीयो 
की ओर

उच्चारण पर....रूपचन्द्र शास्त्री

कहीं चन्दा चमकता है, कहीं सूरज निकलता है,
नहीं रुकता, नहीं थकता, समय का चक्र चलता है।
लड़ा तूफान से जो भी, सिकन्दर बन गया वो ही,
उजाले के लिए रातों में, नन्हा दीप जलता है।।





एक  नौकर  का  काम  पानी  भरना  था , वह  दूर  कुएं  से  पानी  निकलता  था । उसके  पास  दो  बड़े  मटके  थे जिसे  वह  पानी  भर  कर  एक  डंडे  में  बाध  कर  कंधे  के  दोनों  तरफ  लटकाता  था  और  अपने  मालिक  को  ले  जाकर दिया  करता  था ।
एक  नौकर  का  काम  पानी  भरना  था , वह  दूर  कुएं  से  पानी  निकलता  था । उसके  पास  दो  बड़े  मटके  थे जिसे  वह  पानी  भर  कर  एक  डंडे  में  बाध  कर  कंधे  के  दोनों  तरफ  लटकाता  था  और  अपने  मालिक  को  ले  जाकर दिया  करता  था ।


फिर उँगलियों के पोरो में,
धागों को उलझा रही हूँ...
कि सुलझा रही हूँ....
उलझे तो तुम्हारे ख्याल हो,
सुलझे तो तुम्हारे जवाब हो.....
मैं फिर धागों में,
हमारे एहसासों को पिरो रही हूँ.....
बिना किसी शर्त के,
बिना किसी वादों के,
मैं बुन रही हूँ,..



दिल से उतर रहे हैं
रिश्ते करवट बदल रहे हैं

पेड़ छाल बदलें जो इक बार फिर से
उससे पहले
चलो शहर को धो पोंछ लो

शगुन अच्छा है

दिल की हरारत से
रिश्तों की हरारत तक के सफ़र में
इस बार मुझे नहीं होना नदी .........

       
            अब दिजिए इजाजत
             आपका विरम सिंह सुरावा 
                     धन्यवाद


5 टिप्‍पणियां:

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