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शनिवार, 30 जनवरी 2016

अहिंसा




30 जनवरी के लिए चित्र परिणाम



सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष

दुखद अन्त हिंसा का होता हमेशा
सुखद खूब होती अहिंसा की रोटी
नई इस सदी में, सघन त्रासदी में
नई रोशनी के दिये फिर जलाएँ।
चलो फिर अहिंसा के बिरवे उगाएँ।
:- डॉ जगदीश व्योम



उदय की दुनिया

झूठों की इस बस्ती में
फ़ंस जाने से डरता हूं
'सत्य' न झूठा पड जाये
इसलिये "कलम" दिखाते चलता हूँ




वीनापति

एकतरफ हम अपनी पीठ ठोंककर कहतें हैं
कि     भारतीय फ़ौज   विश्व में सर्व श्रेष्ट है
हम     हर मुकाबले           को तैय्यार हैं
पर          मुकाबले के    समय !अपनी
दुम दबाते  हैं! पता नहीं हम ऐसा क्यों करते हैं




गांधी बन जाओ

जन्मदिन  2 अक्टूबर 1869 काठियावाड़  पोरबंदर गुजरात -
मृत्यु - नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारने से 30.जनवरी 1948 दिल्ली
 (भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्ति दिलाने में
हमारे शहीदों के साथ महान योगदान , अहिंसा के मतवाले , छुआ-छूत  
भेद भाव मिटाने वाले , अमन चैन फैलाने वाले  , सत्य और अहिंसा के प्रयोग
और आत्म-शुद्धि के प्रसार कर्ता




काव्य प्रवाह

उन छद्म अहिंसकों से ,
जो अपनी नपुंसकता छुपाते हैं /
हिंसक अच्छे हैं ,
जो मानवता बचाते  हैं /
यह मात्र विद्रोह नहीं
विचारणीय सवाल है ,




विचार

Quote 68: Contradiction is not a sign of falsity,
nor the lack of contradiction a sign of truth.
In Hindi: विरोधाभास का होना झूठ का प्रतीक नहीं है
और ना ही इसका ना होना सत्य का .
Blaise Pascal ब्लेज़ पास्कल

आकाश को छू लो

अँधेरे में जो बैठे हैं, उनकी जीवन में प्रकाश भरो
              "काम देश के आएं हम भी" ऐसी इच्छा मन में करो
              जिसमे देशहित हो सर्वोपरि, सपनो को वो पत्ते खोलो
              अपनी कीर्ति ही न देखो, कमियों को भी कभी टटोलो
              बैठ किसी सुख की नैया में सपनो की लहरों पे न झूलो




नया सवेरा

हारने को तो कोई भी, कहीं भी, किसी से भी हार जाता है
और जीत का भी, लग-भग यही पैमाना होता है !!

पर
वह इंसान, कभी नहीं हारता, जिसकी लड़ाई
सत्य के सांथ, अहिंसा के पथ पर होती है
फिर, भले चाहे, लड़ाई -
सबसे ताकतवर आदमी से ही क्यों न हो !



फिर मिलेंगे ....... तब तक के लिए

आखरी सलाम


विभा रानी श्रीवास्तव



8 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    दुखद अन्त हिंसा का होता हमेशा
    सुखद खूब होती अहिंसा की रोटी
    नई इस सदी में, सघन त्रासदी में
    नई रोशनी के दिये फिर जलाएँ।
    चलो फिर अहिंसा के बिरवे उगाएँ।
    - डॉ जगदीश व्योम

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    अँधेरे में जो बैठे हैं, उनकी जीवन में प्रकाश भरो
    "काम देश के आएं हम भी" ऐसी इच्छा मन में करो
    सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्तर
    1. शुभ प्रभात भाई
      आखिर आपको पता चल ही गया
      कि मैं आपके सद्य प्रकाशित रचना पढ़ने
      उलूक के दफ्तर में गई थी
      ये तिवारी है कौन
      मुझे कल ही लाइसेंस मिला है
      रिवाल्वर का..
      सोचती हूँ कि
      प्रयोग कर के देखूँ
      सादर

      हटाएं
  4. बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  5. उत्तम प्रस्तुति विभा जी ..और.. मेरी कविता "अहिंसा और कायरता " जो "वीनापति" नामक इ पत्रिका में छपी थी.. को इस प्रस्तुति में स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .. आज ही मैंने अपनी तीन चुनिन्दा कवितायेँ इ मेल से आपको भेजी हैं "तू हरजाई ".."बचपन और कागज़ी नाँव " तथा "पिताजी"..यदि आपको जंचे तो साहित्यकुंज में स्थान दीजियेगा ..

    जवाब देंहटाएं

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