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सोमवार, 4 जनवरी 2016

170....नहीं कर सकूँगा लक्ष्यभेद अब केशव

वर्ष का चौथा दिन
नहीं लगता कि 
साल नया है
उल्लास, उमंग
जानों ऊँघ रहे हैं
सारे के सारे 
नेट के संग ही
झूम, गा और 
नाच रहे हैं
और मैं उन्हीं के लिए
प्रस्तुति बना रही हूँ
अलग नहीं न हूँ मैं उनसे..
चलिए...देखते हैं..

लाख तुमने पहन रखा हो
खामोशियों का जिरह बख्तर
मेरी आहें इतनी भी बेअसर नहीं
कि तुम्हारे इस कवच को
पिघला न सकें ! 


नहीं कर सकूँगा लक्ष्यभेद अब केशव
द्रोणाचार्य के आगे नतमस्तक होना भी मुमकिन नहीं
पितामह की वाणशय्या के निकट बैठ लूँगा
पर,
कोई अनुभव,
कोई निर्देश नहीं सुन सकूँगा


ज्ञात होता यदि मुझे उद्देश्य मेरा,
व्यर्थ न मैं व्यथा का जीवन बिताता ।
छोड़ देता पत्थरों के संग्रहों को,
यदि कहीं मैं सत्य का उपहार पाता ।।

चोर-चोर  सब  मौसेरे भाई
भ्रष्टाचार की  खूब कमाई .!
गज़ब एकता उनमे होती ,
मिलकर खाते खीर मलाई !


मँहगाई सी रातें 
सीमित खातों जैसे दिन ।
हुए कुपोषण से ,
ये जर्जर गातों जैसे दिन ।

और ये है आज के प्रस्तुति की अंतिम कड़ी


नये साल पर माँ ने चेताया कि 
अनजाने लोगों से ज्यादा मत मिला कर,
और अकेले तो बिलकुल ही मत मिला कर .....
आजकल अखबार में बहुत -सी 
खबरें आती है .... जानने वाले ही धोखा दे देते हैं ....

आज्ञा दें..यशोदा को
फिर मिलते हैं









5 टिप्‍पणियां:

  1. शुभप्रभात...
    सुंदर रचनाओं को स्थान दीया है...
    आभार दीदी आप का...

    जवाब देंहटाएं
  2. चुने हुए बेहतरीन लिंक्स और बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! मेरी रचना को आज की हलचल में सम्मिलित करने के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं

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